5 साल में 50 लाख से ज्यादा बड़े पेड़ खेतों से गायब हुए, नीम, जामुन, महुआ जैसे छायादार पेड़ तेजी से घट रहे हैं, शोध में आया सामने
By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: May 19, 2024 02:47 PM2024-05-19T14:47:32+5:302024-05-19T14:48:34+5:30
नीम, महुआ, जामुन, कटहल, खेजड़ी (शमी), बबूल, शीशम, करोई, नारियल आदि जैसे बहुउद्देशीय पेड़ों का खत्म होना चिंताजनक है। ये न केवल पर्यावरण के लिए उपयोगी हैं बल्कि किसानों को फल, लकड़ी, जलावन, चारा, दवा जैसे उपयोगी उत्पाद भी देते हैं।
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2018 और 2022 के बीच खेतों से 50 लाख से अधिक पेड़ गायब हो गए
नई दिल्ली: एक शोध में पाया गया है कि पिछले एक दशक में भारतीय खेतों में पाए जाने वाले लाखों बड़े पेड़ गायब हो गए हैं। शोधकर्ताओं ने बताया है कि 2010 और 2018 के बीच कई क्षेत्रों में कृषि भूमि में आधे से अधिक बड़े पेड़ नष्ट हो गए।
नेचर सस्टेनेबिलिटी जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार मध्य भारत, विशेष रूप से महाराष्ट्र और तेलंगाना के क्षेत्रों में लाखों की संख्या में ऐसे पेड़ों की संख्या कम हुई है जो खेतों में पाए जाते थे। 2011 और 2018 के बीच इन क्षेत्रों में लगभग 25 लाख पेड़ नष्ट हो गए। सबसे अधिक घनत्व राजस्थान और छत्तीसगढ़ में था जहां हां प्रति हेक्टेयर 22 पेड़ थे।
सबसे बड़ी चिंता इस बात से जताई गई है कि अकेले 2018 और 2022 के बीच खेतों से 50 लाख से अधिक पेड़ गायब हो गए। यह जानकारी परेशान करने वाली है। कृषि वन सामाजिक पारिस्थितिक लाभ प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि भारत में एग्रोफॉरेस्ट के पेड़ कृषि उपयोग के लिए साफ किए गए जंगलों के बचे हुए भाग हैं। ये मानव उपयोग के लिए फल, ईंधन लकड़ी, रस, दवा, गीली घास, फाइबर, चारा और लकड़ी प्रदान करते हैं।
कोपेनहेगन विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए। शोधकर्ताओं ने 10 वर्षों तक पेड़ों की निगरानी की। पाया गया कि नीम, महुआ और जामुन जैसे पेड़ों की संख्या में सबसे ज्यादा कमी आई है।
नीम, महुआ, जामुन, कटहल, खेजड़ी (शमी), बबूल, शीशम, करोई, नारियल आदि जैसे बहुउद्देशीय पेड़ों का खत्म होना चिंताजनक है। ये न केवल पर्यावरण के लिए उपयोगी हैं बल्कि किसानों को फल, लकड़ी, जलावन, चारा, दवा जैसे उपयोगी उत्पाद भी देते हैं। सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि इतनी बड़ी संख्या में पेड़ किसी बीमारी या जलवायु परिवर्तन के कारण नष्ट नहीं हुए बल्कि इन्हें काटा गया है।