दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल की अध्यक्षता वाले गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून अधिकरण ने केन्द्र सरकार द्वारा खालिस्तान समर्थक समूह ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ (एसएफजे) पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा है।
अधिकरण ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि समूह की गतिविधियां ‘‘गैरकानूनी’’ और ‘‘विध्वंसकारी’’ हैं और ‘‘भारत की सम्प्रभुता, एकता तथा क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा हैं।’’ न्यायमूर्ति पटेल ने यह भी कहा कि साक्ष्यों से साबित होता है कि एसएफजे ‘‘भारत विरोधी समूहों और बलों के साथ काम कर रहा था।’’
अधिकरण ने कहा, ‘‘ऐसे में, केन्द्र सरकार के पास यूएपीए के तहत सिख्स फॉर जस्टिस को गैर कानूनी घोषित करने संबंधी कार्रवाई के लिए पर्याप्त कारण हैं।’’ उसने कहा, ‘‘सिख्स फॉर जस्टिस को गैर कानूनी समूह घोषित करने संबंधी 10 जुलाई, 2019 की भारत सरकार की अधिसूचना की पुष्टि की जाती है।’’
केन्द्र ने 10 जुलाई, 2019 की अधिसूचना में एसएफजे को गैरकानूनी समूह घोषित करते हुए उस पर पांच साल के प्रतिबंध लगा दिया था। केन्द्र ने कहा था कि समूह की स्थापना का प्राथमिक उद्देश्य पंजाब में ‘‘स्वतंत्र और सम्प्रभु’’ राज्य की स्थापना करना था, इसने खुल कर खालिस्तान का समर्थन किया और भारत की सम्प्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती दी।
अगस्त में यह जांचने के लिए अधिकरण का गठन किया गया कि क्या एसएफजे को प्रतिबंधित करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त कारण हैं। अधिकरण ने छह जनवरी के अपने आदेश में कहा कि अमेरिका स्थित संस्था एसएफजे को अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के विदेशी नागरिक चलाते हैं।
इन्होंने ही ‘रेफरेंडम 2020’ अभियान चलाया जिसमें पंजाब को भारत से अलग कर पृथक राज्य बनाने की मांग थी। उसने कहा कि उन्होंने भारत के एक हिस्से को अलग करने के लिए जनमतसंग्रह की बात की थी जो अपने-आप में अपराध है। एसएफजे ने अपने भाषणों, सोशल मीडिया पोस्ट और अन्य भावों तथा संवादों से स्पष्ट किया है कि वह भारत की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता के लिए खतरा है।