लोकसभा चुनाव की गहमा-गहमी चरम पर है। भारतीय जनता पार्टी ने टिकट बंटवारे में इस बार एक नई रणनीति अपनाई है। एक तरफ कई वरिष्ठ नेताओं का टिकट काटा गया तो दूसरी तरफ पैराशूट उम्मीदवारों को टिकट बांटे जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव से जुड़े तमाम मुद्दों और विवादों पर मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने विस्तार से बातचीत की। पढ़िए इस बातचीत के प्रमुख अंश-
चुनाव के समय दल-बदल का माहौल है। अभी हम लोग जब ये साक्षात्कार कर रहे हैं उस वक्त स्पष्ट नहीं है कि शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी में हैं या कांग्रेस में?
चुनाव के दौरान थोड़ी उठापटक होती है। प्रत्याशियों के नाम फाइनल किए जाने के बाद ये फेज खत्म हो जाएगा। कांग्रेस में बहुत सारे अच्छे नेता हैं। जिनको समझ आ गया है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का कोई भविष्य दिखाई नहीं देता। इसलिए बहुत सारे लोग चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी बीजेपी में आएंगे। हम अच्छे लोगों का स्वागत करते हैं।
इस बार बीजेपी से एक पीढ़ी बाहर क्यों हो रही है? आडवाणी जी, जोशी जी, कोश्यारी जी... लंबी फेहरिस्त है।
ये एक नीतिगत निर्णय है जिसका सभी को स्वागत करना चाहिए। राजनीति में काम करने की कोई उम्र नहीं होती लेकिन एक वक्त के बाद चुनावी राजनीति से बाहर हो जाना चाहिए। हमारे यहां 1977 में नाना जी देशमुख ने 60 साल की उम्र के बाद चुनावी राजनीति से खुद इस्तीफा दे दिया। 75 के ऊपर हमारे जितने नेता हैं- कलराज मिश्र, कोश्यारी, खंडूरी, हुकुमदेव नारायण यादव और करिया मुंडा... इन सब लोगों ने खुद कहा कि चुनाव नहीं लड़ेंगे।
सिर्फ पुरानी पीढ़ी ही नहीं, बल्कि आपकी पीढ़ी के कई लोगों ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। इसमें अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, उमा भारती इत्यादि शामिल हैं। क्या इससे नकारात्मक संदेश नहीं जाएगा?
गलत संदेश नहीं जाएगा। जितने भी आपने नाम लिए उनमें अधिकांश राज्यसभा में हैं। सिर्फ सुषमा और उमा जी लोकसभा में हैं और उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से चुनाव ना लड़ने का फैसला किया है।
2014 में प्रचंड बहुमत मिला था इसके बावजूद इतने मौजूदा सांसदों का टिकट क्यों कटा? छत्तीसगढ़ में सारे सांसदों का टिकट कट गया। यूपी में एक तिहाई सांसदों का।
चुनाव जीतने के लिए होते हैं। अगर लगा कि मौजूदा सांसद जीत सकता है तो उसे टिकट मिलता है। अगर उसकी जगह कोई दूसरा होता है तो उसे टिकट मिलता है। इसे सिर्फ ऐसे ही समझना चाहिए। चुनाव जीतने के लिए प्रबल समर्थन वाले को टिकट मिलना चाहिए।
आपके पास राजस्थान का प्रभार है। वहां 100 प्रतिशत सीटें आपने जीती थीं इसलिए आपकी चुनौती बड़ी है। वहां 25 में से 25 सीटें जीते थे लेकिन विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। क्या करेंगे?
देखिए लोग हर चुनाव के लिए अलग तरीके से विचार करते हैं। 1999 में महाराष्ट्र में हमारी सत्ता थी.. और तब मुंबई और अन्य शहरों में हमारे खिलाफ माहौल बन रहा है तो एक वोट से हमारी सरकार गिर गई। हमने विधानसभा और लोकसभा के मध्यावधि चुनाव एकसाथ कराने का फैसला किया लेकिन एक ही दिन हुए चुनाव में लोकसभा में हमें 40 प्रतिशत वोट मिले और विधानसभा में हमें 30 प्रतिशत वोट मिले। लोकसभा में हम ज्यादा सीटें जीते लेकिन विधानसभा में हम सत्ता से बाहर हो गए।
इस लोकसभा चुनाव में जनता तीन मुद्दों पर वोट देगी- देश को सुरक्षित कौन करेगा, देश को तरक्की की ओर कौन ले जाएगा, सबका साथ और सबका विकास कौन करेगा? इन तीनों सवालों का जवाब है नरेंद्र मोदी।
मिशन शक्ति की घोषणा के बाद पीएम मोदी को लेकर विवाद पैदा हो गया है। देश में नई डिबेट शुरू हो गई है।
इसमें कोई विवाद नहीं है। ये वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि है जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभिनंदन किया है। आज हम जल, थल, नभ और अंतरिक्ष में तैयार हैं किसी भी विपत्ति से निपटने के लिए। ये राजनीतिक मुद्दा नहीं है। मोदी जी ने ये थोड़े ही कहा कि बीजेपी को वोट दो।
अब ये श्रेय की लड़ाई हो गई है। प्रियंका गांधी ने कहा कि डीआरडीओ नेहरू के जमाने में बना था।
इतना पीछ जाएंगे तो राम और कृष्ण तक पहुंच जाएंगे। सवाल इतना है कि आज ये वास्तविकता है कि 2008 में सेना ने दहशतगर्दी हमलों के बाद अनुमित मांगी थी पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों को बर्बाद करने की तो मनमोहन सरकार ने अनुमति नहीं दी। मोदी सरकार ने इसकी अनुमति दी।
चुनाव से पहले बीजेपी पर आरोप लगते रहे हैं कि वो चुनाव से पहले हिंदू-मुसलमान और भारत-पाकिस्तान का मुद्दा उछालने लगती है?
हम नहीं कर रहे। सेना की कार्रवाई पर सवाल उठाने वाले ऐसा कर रहे हैं।
पाँच साल में बीजेपी के नेताओं के, मंत्रियों के अमर्यादित जो बयान हैं.. गैर जिम्मेदार बयान हैं तो उसमें आप लोग हैं एक जो कभी भी आलोचना करते हुए अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल नहीं करते हैं लेकिन अभी क्या पार्टी के अंदर कोई लगाम नहीं रहती या कार्रवाई नहीं होती.. या जब राष्ट्रीय अध्यक्ष बीजेपी ने दो साल पहले कहा था कि लोकल स्तर के नेता हैं लेकिन उनको गंभीरता से नहीं लेना चाहिए.. लेकिन बड़े-बड़े नेता.. मैं नाम नहीं लेना चाहता कई मंत्री भी इसमें हैं?
नहीं.. मैं बताता हूं.. इसमें दो बातें हैं.. प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष हमेशा बताते हैं कि कोई भी जो पार्टी की लाइन है.. लेंथ है.. उसके सिवा अलग से बयान न करें.. जिनको बयान देने का काम दिया है उनको ही करने दें.. बिना पूछे बिना बताए ऊटपटांग बयान कभी मंजूर नहीं है.. और नहीं रहेंगे.. आप देखा होगा मैं 2003 से प्रवक्ता था.. तो 2003 से 14 तक 11 साल मैंने झेला है कि हमारी पार्टी के लोग ऐसा-ऐसा बयान देते थे और हर एक्जिक्यूटिव काउंसिल के पहले और बाद में और बीच में इतने लोग बोलते थे माइक पर.. अब कोई नहीं बोलता है.. जिसका तय है वही बोलते हैं..
लेकिन कई बार शीर्ष नेता भी ऐसा करते हैं। जैसे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का ही एक बयान चल रहा है कि पुलवामा पर राहुल गांधी ऐसे बिहैव कर रहे जैसे उनका चचेरा भाई हो.. या कल वीएचपी के एक बड़े नेता ने राहुल गांधी के पिता पर सवाल उठाए हैं... इस तरह के बयान जो बहुत व्यक्तिगत स्तर के हैं।
विश्व हिंदू परिषद का तो मैं जवाब नहीं दूंगा लेकिन बात साफ है कि पाकिस्तान की भाषा कांग्रेस वाले बोलें तो लोग ही उनकी थूथू कर रहे हैं। ..और कांग्रेस के नेताओं के भाषण यहां जितने छपते हैं उससे ज्यादा अगर पाकिस्तान में छपने लगें तो इसका मतलब क्या होता है? ..और ये बताना कोई गलत नहीं है।
अगर एनडीए को बहुमत नहीं मिलता तो पीएम प्रत्याशी के लिए कौन उम्मीदवार हो सकता है?
आज देशभर का रूप देखने के बाद हमें पूरा भरोसा है कि 300 से ज्यादा सीटें बीजेपी की आएंगी। देश प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को दोबारा देखना चाहता है।