Mokama: बिहार विधानसभा चुनाव में मोकामा विधानसभा क्षेत्र इस बार बाहुबली राजनेताओं का अखाड़ा बनने जा रहा है। सूरजभान की पत्नी वीणा देवी और जदयू के बाहुबली अनंत कुमार सिंह के बीच मुकाबला दिलचस्प होने की संभावना है। लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी प्रसाद यादव के राजद ने मोकामा सीट से मुंगेर की पूर्व सांसद वीणा देवी को टिकट दे दिया है। मोकामा में पहले चरण में चुनाव है। नामांकन का आखिरी दिन शुक्रवार है। इस बीच वीणा देवी ने आज अपना नामांकन दाखिल कर दिया। जदयू के उम्मीदवार और बाढ़ के बाहुबली अनंत सिंह 14 अक्टूबर को पर्चा भर चुके हैं।
अनंत सिंह इस सीट से पहले पांच बार लगातार जीते हैं। 2022 में अनंत सिंह को एके 47 रखने के केस में जब सजा हुई तो विधायकी जाने के बाद उनकी पत्नी नीलम देवी उप-चुनाव जीती थीं। अनंत सिंह 2005 से 2010 तक तीन बार जदयू के टिकट पर जीते, 2015 में निर्दलीय जीत गए और 2020 में राजद के सिंबल पर जीते।
2022 में नीलम देवी राजद से ही जीती, लेकिन 2024 में नीतीश कुमार के बहुमत परीक्षण में सरकार के साथ चली गईं। विधानसभा के रिकॉर्ड में यह सीट राजद के ही खाते में दर्ज है। दूसरी ओर सूरजभान सिंह 2000 में मोकामा से पहली बार और आखिरी बार विधायक बने थे। तब उन्होंने अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह को बड़े अंतर से हराया था।
दिलीप सिंह राजद के दबंग नेता और राबड़ी देवी की सरकार में कद्दावर मंत्री थे। 2004 में सूरजभान सिंह लोजपा के टिकट पर बलिया से लोकसभा सांसद बन गए। एक दौर ऐसा भी था जब रेलवे का कोई ठेका सूरजभान सिंह की ‘मंजूरी’ के बिना पास ही नहीं होता था। पटना से लेकर गोरखपुर तक उनका नाम पहचान का पर्याय बन चुका था।
2004 में वे रामविलास पासवान की लोजपा से सांसद बने और संसद तक पहुंचे। बृज बिहारी प्रसाद हत्याकांड में दोषी करार दिए जाने के बाद चुनावी राजनीति से उन्हें किनारा करना पड़ा। इसके बाद सत्ता और प्रभाव की कमान उनकी पत्नी वीणा देवी और भाई चंदन सिंह के हाथों में आ गई। खुद चुनाव नहीं लड़ पाए तो 2014 में पत्नी वीणा देवी को मुंगेर से लोजपा का सांसद बनाया।
वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह लोजपा से ही नवादा के सांसद बने। सूरजभान के मोकामा छोड़ने के बाद से अनंत सिंह और पिछले तीन साल से उनकी पत्नी विधायक रही हैं। 25 साल दोनों का परिवार चुनावी अखाड़े में आमने-सामने हो गया है।
मोकामा की सियासत का इतिहास बताता है कि यहां जीत सिर्फ संगठन या पार्टी के बूते नहीं मिलती, बल्कि जनाधार, प्रभाव और स्थानीय समीकरणों का संतुलन तय करता है कि कौन बाजी मारेगा। इस बार भी यहां का मुकाबला बेहद दिलचस्प और हाई-प्रोफाइल होने जा रहा है। राजनीतिक समीकरण, पुरानी अदावत और गठबंधन इस चुनाव को न सिर्फ स्थानीय स्तर पर बल्कि राज्य राजनीति में भी अहम बना रहे हैं।
बता दें कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी(रालोजपा) से इस्तीफा देने के बाद बाहुबली सूरजभान सिंह ने बुधवार की देर रात राजद का दामन थाम लिया। सूरजभान को तेजस्वी यादव ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई। सूरजभान की पत्नी वीणा देवी पहले से ही राजद में हैं।