मुंबई: लोकसभा चुनाव 2024 में सबसे दिलचस्प सियासी खेल महाराष्ट्र में होता हुआ दिखाई दे रहा है। इसमें कोई दोराय नहीं कि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों की तरह दूसरे नंबर पर 48 सीटों के साथ महाराष्ट्र की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है दिल्ली की सत्ता को तय करने में।
यही कारण है कि महाराष्ट्र का चुनावी खेल 2019 के मुकाबले बिल्कुल जुदा नजर आ रहा है क्योंकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पावर के एनसीपी का विभाजन नहीं हुआ था।
2019 के चुनाव में मातोश्री की शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर कांग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाली अविभाजित एनसीपी को कड़ी टक्कर दी थी लेकिन साल 2024 में सत्ता का ऐसा बदला निजाम है कि एकनाथ शिंदे की शिवसेना, अजित पवार की एनसीपी भाजपा के साथ मिलकर एनडीए की छतरी तले महाविकास अघाड़ी (जिसमें उद्धव की शिवसेना, कांग्रेस और शरद पावर की नई एनसीपी) से सीधी टक्कर हो रही है।
भाजपा इस लोकसभा चुनाव में किसी भी कीमत पर महाविकास अघाड़ी की राजनीति को धराशायी करने के लिए पूरे दमखम के साथ रणनीति बना रही है और यही कारण है कि महाराष्ट्र में अपनी लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए भाजपा अब उद्धव के चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे को भी एनडीए के पाले में लाने की जुगत कर रही है।
समाचार वेबासाइट एनडीटीवी के अनुसार भाजपा के बुलावे पर राज ठाकरे को भी लग रहा है कि वो इसी बहाने महाराष्ट्र की राजनीति में वजूद के लिए संघर्ष कर रही एमएनएस को फिर से सत्ता के गलियारों में एंट्री दिला सकते हैं। वहीं भाजपा उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से मिल रही कड़ी चुनौती को कुंद करने के लिए राज को अपने पाले में लाना चाहती है।
मालूम हो कि राज ठाकरे कल रात दिल्ली पहुंचे और आज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। जाहिर तौर पर दोनों नेताओं के बीत हुई इस मुलाकात में महाराष्ट्र में एनडीए के समीकरण और मनसे की संभावनाओं पर बात हुई होगी। मनसे प्रमुख ने दिल्ली में कहा, "मुझे दिल्ली आने के लिए कहा गया था। इसलिए मैं आया। देखते हैं आगे क्या होता है।"
वहीं मनसे नेता संदीप देशपांडे ने कहा है कि वे शाह और राज ठाकरे के बीच हुई बैठक का विवरण साझा करेंगे। उन्होंने कहा, "बैठक में जो भी निर्णय लिया जाएगा वह व्यापक तौर से मराठियों, हिंदुत्व और पार्टी के हित में होगा।"
समझा जा रहा है कि मनसे एनडीए से तीन सीटें दक्षिण मुंबई, शिरडी और नासिक अपने पक्ष में चाहती है। अब सावल उछता है कि भाजपा मनसे से संपर्क क्यों कर रही है इसका जवाब इस बात में निहित है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से महाराष्ट्र का राजनीतिक परिदृश्य कैसे बदल गया है। पिछले आम चुनाव में भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था। एनडीए गठबंधन ने प्रतिद्वंद्वियों को परास्त कर दिया और राज्य की 48 सीटों में से 41 सीटें जीत लीं।
हालांकि उसने बाद राज्य में सत्ता के हिस्सेदारी को लेकर हुए मतभेद के कारण उद्धव ठाकरे की तत्कालीन शिवसेना को एनडीए से अलग होना पड़ा। इसके बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई।
लेकिन असली ड्रामा 2022 में उस समय हुआ, जब शिवसेना के एकनाथ शिंदे ने ठाकरे से विद्रोह करते हुए उन्हें सीएम की गद्दी से उतारा और भाजपा के सहयोग से खुद मुख्यमंत्री बन गये। उसके बाद हुई कानूनी लड़ाई मेंउद्धव ठाकरे ने अपनी पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह भी खो दिया और उनके खेमे का नाम शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) हो गया।
आश्चर्यजनक रूप से इसी तरह, शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा उनके भतीजे अजीत पवार के नेतृत्व में विद्रोह के बाद विभाजित हो गई। राकांपा के दिग्गज नेता ने भी अपनी पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न खो दिया और अब राकांपा (शरदचंद्र पवार) नामक गुट का नेतृत्व कर रहे हैं।
यही कारण है कि 2024 में अब सियासी समीकरण बदल गये हैं। महाराष्ट्र लोकसभा चुनाव की लड़ाई अब एक बहुआयामी लड़ाई है, जिसमें एक तरफ भाजपा, एनसीपी और शिवसेना हैं और दूसरी तरफ कांग्रेस और शरद पवार और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले खेमे हैं।
भाजपा को 370 लोकसभा सीटें जीतने के लिए महत्वपूर्ण है कि वो उद्धव ठाकरे फैक्टर का मुकाबला करने के लिए उनके चचेरे भाई राज ठाकरे को अपने पाले में करे। 2006 में राज ठाकरे ने चचेरे भाई उद्धव के साथ मतभेदों के कारण शिवसेना छोड़कर मनसे बना ली।
मनसे ने 2009 के राज्य चुनावों में अपना सर्वश्रेष्ठ चुनावी प्रदर्शन दर्ज किया जब उसने 13 सीटें जीतीं। हालांकि, 2014 के चुनावों में मनसे केवल एक सीट जीतकर बड़ी हार का शिकार हुई और 2019 के चुनावों में भी उसकी संख्या में कई परिवर्तन नहीं आया।
पिछले एक दशक में राज ठाकरे ने मीडिया में अक्सर विवादास्पद टिप्पणियों के साथ राजनीतिक सुर्खियों में बने रहने के लिए संघर्ष किया है। जब शिवसेना विभाजित हो गई, तो वह पार्टी के संकट के लिए अपने चचेरे भाई को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके खिलाफ हो गए।
राज ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के प्रति भी गर्मजोशी दिखाई है और दोनों नेताओं के बीच कई मौकों पर मुलाकात हुई है। यदि भाजपा के साथ सीट-बंटवारे की बातचीत अंतिम रूप ले लेती है, तो शायद मनसे को अपनी राजनीतिक किस्मत को पुनर्जीवित करने का मौका मिल सकता है।