केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने सोमवार को कहा कि वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) शुष्क क्षेत्रों में भूजल के स्रोतों का पता लगाने के लिए नवीनतम तकनीक का उपयोग कर रही है, जिससे पेयजल के रूप में इन स्रोतों का जल इस्तेमाल करने में मदद मिलेगी। सिंह ने कहा कि यह नरेंद्र मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम जल जीवन मिशन को आगे बढ़ाएगा। इस मिशन का लक्ष्य सभी ग्रामीण घरों में पाइप के जरिए पेयजल की सुविधा मुहैया कराना है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के साथ सीएसआईआर ने भूजल संसाधनों को बढ़ाने के लिए उत्तर पश्चिमी भारत के शुष्क क्षेत्रों में हाई-रेजोल्यूशन जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन का कार्य किया है। सीएसआईआर-एनजीआरआई की यह हेलीबोर्न भूभौतिकीय मानचित्रण प्रौद्योगिकी जमीन के नीचे 500 मीटर की गहराई तक उपसतह की हाई-रेजोल्यूशन वाली 3डी छवि उपलब्ध कराती है। सीएसआईआर की एक बैठक में सिंह ने कहा कि जलशक्ति मंत्रालय ने सीएसआईआर-एनजीआरआई को शुष्क क्षेत्रों में भूमिगत स्रोतों का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी है। इस बैठक में प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन, सीएसआईआर के महानिदेशक शेखर मांडे और अन्य मुख्य वैज्ञानिकों ने भाग लिया। सिंह ने कहा, ‘‘सीएसआईआर इस नई एवं अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके शुष्क क्षेत्रों में भूमिगत स्रोतों का पता लगा रही है और इन स्रोतों के पानी का इस्तेमाल पेयजल के रूप में करने में मदद मिलेगी, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी ‘हर घर नल से जल’ योजना को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।’’ मंत्री ने कहा कि राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्सों समेत उत्तर-पश्चिमी भारत में शुष्क क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 12 प्रतिशत है और इन क्षेत्रों में आठ करोड़ से अधिक लोग रहते हैं। हाई-रेजोल्यूशन जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन किफायती और सटीक है तथा यह कम समय में बड़े क्षेत्रों (जिलों/राज्यों) का मानचित्रण करने में उपयोगी है। यह पूरा काम 2025 तक पूरा हो जाएगा, जिसमें 141 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ 1.5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया जाए। उन्होंने कहा कि इस परियोजना का उद्देश्य भूजल निकासी और संरक्षण के लिए संभावित स्थलों का पता लगाना है और इन परिणामों का उपयोग शुष्क क्षेत्रों में भूजल संसाधनों के जलभृत मानचित्रण, पुरुद्धार और प्रबंधन के व्यापक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाएगा।
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