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रेलवे के पहले CEO के सामने चुनौतियों का होगा अंबार, 12 सालों में 50 लाख करोड़ रुपये का निवेश हासिल का लक्ष्य

By संतोष ठाकुर | Updated: December 26, 2019 09:16 IST

रेलवे के नए सीईओ के लिए सबसे बड़ी चुनौती 12 साल में 50 लाख करोड़ रुपये का निवेश हासिल करने की होगी.

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ठळक मुद्देट्रेनों को समय से चलाना, सभी को कंफर्म टिकट देना और सभी क्षेत्रों तक रेलवे का समयबद्ध विस्तार की भी चुनौती होगी. रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी. के. यादव मृदभाषी, कर्मचारियों के हितैषी हैं.

रेलवे ने 114 साल बाद रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन करते हुए इसके सदस्यों की संख्या पांच तक सीमित कर दी है. साथ ही रेलवे बोर्ड के चेयरमैन की जगह आने वाले समय में मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) के पद को सृजित करने का भी ऐलान किया है. फिलहाल इसके पहले सीईओ विनोद कुमार यादव होंगे जो इस समय रेलवे बोर्ड के चेयरमैन भी हैं. उनके पास चेयरमैन सह सीईओ का दोहरा पद रहेगा.

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इसे ऐतिहासिक कदम करार देते हुए कहा कि इससे आने वाले समय में रेलवे को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी, लेकिन सच्चाई यह भी है कि नए रंग-रूप में सामने आने वाले रेलवे बोर्ड और रेलवे के नए सीईओ के सामने चुनौती कम होने की जगह बढ़ने वाली है. उनके सामने 12 साल में रेलवे के लिए 50 लाख करोड़ रुपए का निवेश हासिल करने की सबसे बड़ी चुनौती होगी.

रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि रेलवे के पहले सीईओ के सामने चुनौतियों का अंबार होगा. रेलवे में निवेश जुटाने के अलावा उनके सामने यह चुनौती भी होगी कि वह किस तरह से पहले से चल रहे रेलवे के आठ संवर्ग के अधिकारियों को शांत करते हैं. इसकी वजह यह है कि इस समय खत्म किए गए आठ रेलवे सेवाओं में करीब 8500 अधिकारी विभिन्न पद पर हैं. पहले जब इन अलग संवर्गों से रेलवे बोर्ड में सदस्य बनते थे, तो वरीयता क्रम और मैरिट का पैमाना होता था.

नए आदेश के बाद रेलवे बोर्ड का स्वरूप छोटा हो गया है. ऐसे में मैरिट और वरीयता के किसी भी क्रम में पुरानी आठ सेवाओं के सभी अधिकारियों के साथ न्याय नहीं हो पाएगा. उनमें रोष पनपने से रेलवे को नुकसान हो सकता है. इसके अलावा ट्रेनों को समय से चलाना, सभी को कंफर्म टिकट देना और सभी क्षेत्रों तक रेलवे का समयबद्ध विस्तार की भी चुनौती होगी.

शायद अधिकारियों के विरोध से बच जाएं :

अधिकारी के अनुसार यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार रेलवे के नए सीईओ को नीति आयोग के सीईओ की तरह आजादी देगी या फिर सिर्फ पदनाम ही बदला जा रहा है. रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी. के. यादव मृदभाषी, कर्मचारियों के हितैषी हैं. ऐसे में संभवत: वह अधिकारियों के विरोध से बच जाएं, लेकिन यह आशंका भी जताई जा रही है कि आने वाले समय में बाहर से अन्य सेवा के अधिकारी को भी सीईओ बनाया जा सकता है. ऐसे में बाहर से आने वाला सीईओ किस तरह रेलवे में स्वयं को समाहित करता है, यह देखना भी रोचक रहेगा.

टॅग्स :भारतीय रेलपीयूष गोयल
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