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हिजाब विवादः सड़कों पर जो चाहे पहनें छात्र पर स्कूल में ड्रेस कोड अनिवार्य, कर्नाटक के मंत्री ने कहा- सरकार हिजाब या केसरी के पक्ष में नहीं

By अनिल शर्मा | Updated: February 9, 2022 15:19 IST

कर्नाटक के मंत्री ने कहा कि सरकार दोनों के पक्ष में नहीं है। बकौल राजस्व मंत्री- छात्र सड़कों पर जो चाहें पहन सकते हैं, लेकिन स्कूलों में ड्रेस कोड अनिवार्य है।

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ठळक मुद्देमहिलाओं को तय करने का अधिकार है कि वह क्या पहनेगीः प्रियंका गांधीजय श्रीराम व अल्लाहू अकबर, दोनों ही नारेबाजी रुकेंः शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदीकर्नाटक के राजस्व मंत्री आर. अशोक ने कहा कि इस राजनीति के पीछे कांग्रेस है

कर्नाटकः राज्य में छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने पर विवाद के बीच राज्य के राजस्व मंत्री आर. अशोक ने बुधवार को कहा कि सरकार हिजाब या केसरी के पक्ष में नहीं है। कर्नाटक के मंत्री ने कहा कि सरकार दोनों के पक्ष में नहीं है। बकौल राजस्व मंत्री- छात्र सड़कों पर जो चाहें पहन सकते हैं, लेकिन स्कूलों में ड्रेस कोड अनिवार्य है। हमने छात्रों की सुरक्षा के लिए एहतियात के तौर पर स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए हैं। इस राजनीति के पीछे कांग्रेस है।

उधर, एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, हिजाब पर प्रतिबंध का समर्थन करते हुए मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि सरकार अनुशासन को प्राथमिकता देगी। हिजाब स्कूल ड्रेस का हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे पहनना स्कूलों में प्रतिबंधित होना चाहिए। परंपराओं का पालन लोगों को अपने घरों में करना चाहिए न कि स्कूलों में। हम स्कूलों में ड्रेस कोड को सख्ती से लागू करने पर काम कर रहे हैं।

महिलाओं को तय करने का अधिकार है कि वह क्या पहनेगी

बढ़ते विवाद के बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने बुधवार को ट्वीट किया, "चाहे बिकिनी हो, घूंघट हो, जींस हो या हिजाब, यह तय करना एक महिला का अधिकार है कि वह क्या पहनना चाहती है।" उन्होंने आगे कहा, "भारतीय संविधान में यह अधिकार मिला है। महिलाओं को परेशान करना बंद कीजिए।"

 

जय श्रीराम व अल्लाहू अकबर, दोनों ही नारेबाजी रुकें

शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कर्नाटक में हिजाब विवाद के बीच कहा है, "हालात ऐसे हैं कि युवा छात्र धार्मिक नारे लगा रहे हैं। जय श्रीराम हो या अल्लाहू अकबर हो, दोनों ही नारेबाज़ी रुकें।" उन्होंने कहा, "रुककर सोचिए कि छात्र जीवन को क्या बना दिया गया है। धार्मिक पहचान का रक्षक बनने में कोई बहादुरी नहीं है। दुखद।"

टॅग्स :कर्नाटकKarnataka High Court
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