गुजरात उच्च न्यायालय से शनिवार को तीस्ता सीतलवाड़ को बड़ा झटका लगा है। समाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को हाईकोर्ट ने बिना देरी किए आत्मसमर्पण करने का आदेश जारी करते हुए उनकी नियमित जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। वरिष्ठ वकील मिहिर ठाकोर ने अदालत से फैसले के कार्यान्वयन पर 30 दिनों की अवधि के लिए रोक लगाने की गुहार लगाई।
गौरतलब है कि उन्हें गुजरात में साल 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर झूठे सबूत पेश करने के मामले में कोर्ट ने ये आदेश दिया है।
गौरतलब है कि सीतलवाड़ को पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदान की गई अंतरिम जमानत के माध्यम से गिरफ्तारी से बचा लिया गया था। परिणामस्वरूप, उसे चल रहे मामले में न्यायिक हिरासत से रिहा कर दिया गया।
इस मामले में 15 जून को राज्य के अभियोजन पक्ष ने उच्च न्यायालय में नियमित जमानत के लिए सीतलवाड़ की याचिका का विरोध करते हुए इस बात पर जोर दिया कि सीतलवाड़ के खिलाफ आरोप कथित तौर पर झूठे सबूत गढ़ने से संबंधित हैं।
अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि 2002 में दंगों के बाद गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को अस्थिर करने के उद्देश्य से उन्हें दिवंगत कांग्रेस नेता अहमद पटेल से 30 लाख रुपये मिले थे।
अदालत में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने सीतलवाड को गुजरात को बदनाम करने का काम करने वाले एक राजनेता का उपकरण करार दिया।
मालूम हो कि सीतलवाड़ को सह-आरोपी पूर्व आईपीएस आरबी श्रीकुमार के साथ पिछले साल 25 जून को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया था। यह गिरफ्तारी 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में निर्दोष व्यक्तियों को झूठा फंसाने की कथित साजिश के संबंध में अहमदाबाद डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच (डीसीबी) द्वारा दर्ज की गई पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के बाद हुई।
जानकारी के अनुसार, सात दिन की पुलिस रिमांड के बाद सीतलवाड़ को 2 जुलाई को न्यायिक हिरासत में रखा गया था। उनकी गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को विशेष जांच दल (एसआईटी) की क्लीन चिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका खारिज करने के एक दिन बाद हुई थी।
तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सरकारी वकील अमीन ने आपत्ति जताई थी जिसमें जोर दिया गया था कि उन्होंने दो पुलिस अधिकारियों, श्रीकुमार और संजीव भट्ट के साथ मिलकर बड़ी साजिश के पहलू को प्रचारित करने की साजिश रची थी, जो 2002 में दुखद गोधरा ट्रेन घटना के तुरंत बाद गुजरात सरकार को अस्थिर करना था।