नई दिल्ली: इसरो ने चंद्रयान 3 के बारे में एक अहम जानकारी दी है। इसरो ने बताया है कि जब चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतरा तो इसने 2.06 टन चंद्रमा की मिट्टी को 108.4 वर्ग मीटर के क्षेत्र में विस्थापित किया। जैसे ही विक्रम नीचे आया और चंद्रमा की सतह पर उतरा उसने अपने थ्रस्टर्स को सक्रिय कर दिया। इसके परिणामस्वरूप चंद्रमा का सतह से मिट्टी और धूल निकल कर विक्रम लैंडर के आसपास इकट्ठा हो गई। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक अब अब "परावर्तन विसंगति" या 'इजेक्टा हालो' कह रहे हैं।
लैंडिंग के वक्त तक चांद की जमीन पर 108.4 वर्ग मीटर क्षेत्र की करीब 2.5 टन मिट्टी उड़कर अपनी जगह से हट गई। मिट्टी हटने की वजह से चांद की सतह पर एक गड्ढेनुमा संरचना बनी है, इसे ही विज्ञान की भाषा में 'इजेक्टा हालो' कहा जा रहा है।
बता दें कि चंद्रयान-3 फिलहाल स्लीपिंग मोड में है। इसे दोबारा शुरू करने के प्रयास इसरो द्वारा लगाताक किए जा रहे हैं। हालांकि इसरो प्रमुख एस सोमनाथ पहले ही साफ कर चुके हैं कि चंद्रयान 3 का उद्देश्य पूरा हो गया है और अगर ये दोाबारा सक्रिय नहीं भी होते हैं तो इससे कोई नुक्सान नहीं होने वाला है।
एस. सोमनाथ बता चुके हैं कि उनके चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-3’ के रोवर ‘प्रज्ञान’ ने वह काम कर दिया है जो इससे किये जाने की अपेक्षा की गई थी और यदि यह वर्तमान निष्क्रिय अवस्था (स्लीप मोड) से सक्रिय होने में विफल रहता है तो भी कोई समस्या नहीं होगी। इसरो प्रमुख ने कहा था कि चंद्रमा पर तापमान शून्य से लगभग 200 डिग्री सेल्सियस नीचे जाने पर अत्यधिक प्रतिकूल मौसम के कारण इसके इलेक्ट्रॉनिक सर्किट यदि क्षतिग्रस्त नहीं हुए हैं।
अगले मिशन के लिए तैयार है इसरो
चंद्रयान-3 की कामयाबी के बाद इसरो अपने अगले मिशन के लिए तैयार है। इसरो अब एक्सपीओसैट या एक्स-रे पोलरिमीटर उपग्रह के लिए तैयारी कर रहा है। एक्सपोसैट को पीएसएलवी रॉकेट के जरिए प्रक्षेपित किया जायेगा। अभी तक किसी तारीख की घोषणा नहीं की गई है। इसका प्रक्षेपण नवंबर या दिसंबर में किया जा सकता है। एक और मिशन ‘इन्सैट-3डीएस’ की भी तैयारी है, जो एक जलवायु उपग्रह है और जिसे दिसंबर में प्रक्षेपित किया जायेगा। इसके बाद एसएसएलवी डी3 का प्रक्षेपण किया जाएगा। इसके बाद नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार या निसार की बारी आयेगी। इसे अगले साल फरवरी में प्रक्षेपित किया जायेगा।