ब्लॉग: देश की युवा शक्ति आखिर कहां व्यस्त है?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: May 24, 2024 10:22 AM2024-05-24T10:22:47+5:302024-05-24T10:24:19+5:30

शहरी भारत में कुछ लोग पेशेवर खेलों-मुख्य रूप से क्रिकेट-में व्यस्त हैं; जबकि अन्य टीवी पर संगीत कार्यक्रमों में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. इससे भी बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में खेती से जुड़ा हुआ है या बस निष्क्रिय पड़ा है.

Where is the country's youth busy ISRO Chairman and scientist S. Somnath | ब्लॉग: देश की युवा शक्ति आखिर कहां व्यस्त है?

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष और प्रसिद्ध वैज्ञानिक एस. सोमनाथ ने युवा पीढ़ी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, जिसके बारे में हममें से भी कई लोग चिंतित होंगे. केरल के एक मंदिर में एक अन्य दिग्गज अंतरिक्ष वैज्ञानिक जी. माधवन नायर के हाथों पुरस्कार प्राप्त करते समय इसरो प्रमुख ने आश्चर्य व्यक्त किया कि युवा कहां हैं? उन्होंने कहा कि उन्हें ‘इस पुरस्कार वितरण समारोह में बड़ी संख्या में युवाओं के मौजूद होने की उम्मीद थी लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है.’

पुरस्कार समारोह पिछले सप्ताह तिरुवनंतपुरम के श्री उदियान्नूर देवी मंदिर में आयोजित किया गया था. मुझे नहीं पता कि इस विशेष समारोह में युवा लड़कियों और लड़कों की अनुपस्थिति पर इसरो प्रमुख की टिप्पणी का वास्तव में क्या मतलब था, लेकिन उनका संकेत कई लोगों को विचार में डालने के लिए काफी था, जो कि सही भी है.

आमतौर पर चर्चा में नहीं रहने वाले लो-प्रोफाइल वैज्ञानिक ने यह भी सुझाव दिया कि मंदिर प्रबंधन को युवाओं को आकर्षित करने के लिए मंदिरों में पुस्तकालय स्थापित करने चाहिए. सोमनाथ का मानना था कि मंदिरों में केवल वयस्क लोग ही आते हैं. उनका मानना है कि मंदिरों को ‘समाज के कायापलट का स्थान’ बनाने के लिए कुछ किया जाना चाहिए. क्या मंदिरों को (आंशिक रूप से) पुस्तकालयों में बदला जा सकता है, इसके व्यावहारिक पक्ष पर मुझे संदेह है. एक और मुद्दा यह है कि क्या शहरों और गांवों के महाविद्यालयों में  पुस्तकालय पर्याप्त संख्या में युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं? क्या भारतीय युवा अपने पाठ्यक्रम के अलावा कुछ और पढ़ रहे हैं या वे तथाकथित व्हाट्सएप्प विश्वविद्यालय में अधिक व्यस्त हैं? हाल ही में गलगोटिया विवि  के छात्रों द्वारा दिए गए सामान्य ज्ञान के उत्तर देश को याद हैं, जिन्होंने हलचल मचा दी थी. इस छोटी सी घटना ने हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली पर एक बड़ी बहस छेड़ दी है.

देश भर में ऐसे कई सामाजिक संगठन हैं जो इसरो प्रमुख द्वारा संयमित ढंग से व्यक्त की गई चिंता से इत्तेफाक रखते हैं. उनकी भी यह शिकायत है कि साल भर आयोजित होने वाले उनके विभिन्न कार्यक्रमों, जिनमें प्रतिष्ठित लोगों के सेमिनार और व्याख्यान भी शामिल हैं, से युवा गायब रहते हैं. मैंने कई बार 65 साल पुरानी प्रतिष्ठित ग्रीष्मकालीन व्याख्यान श्रृंखला में भाग लिया है, जिसमें समाज के विभिन्न क्षेत्रों के नामवर लोगों ने इंदौर में भाषण दिए थे, लेकिन राजनीति, कला, विज्ञान, खेल और पर्यावरण सहित अन्य क्षेत्र के दिग्गजों की ज्ञानपूर्ण बातों को सुनने के लिए युवा मौजूद नहीं थे. और अब हम जब केरल के इस शहर के बारे में सुनते हैं जो इंदौर से भी अधिक साक्षर है, तो फिर युवा कहां हैं, यह प्रश्न स्वाभाविक ही है.

सोमनाथ के अनुसार, बुजुर्ग लोगों की तुलना में युवा मंदिरों में भी कम ही जाते हैं. हां, यदा-कदा इन्हें परीक्षाओं और उनके नतीजों के आने के दौरान मंदिरों में देखा जाता है. लेकिन यह एक व्यक्तिगत पसंद है. तो, वे वास्तव में क्या कर रहे हैं? क्या उनका सरकार द्वारा समुचित ध्यान रखा जा रहा है? क्या कोई उनकी समस्या सुन रहा है?
भारत दुनिया का सबसे युवा देश है जहां लगभग 70 करोड़ लोग 35 वर्ष से कम उम्र के हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने बेरोजगारों की संख्या 80% आंकी है. इनमें से कई पढ़ी-लिखी लड़कियां हैं.

वे कहां हैं? वे क्या कर रहे हैं? उनकी ऊर्जा, कौशल और समय का उपयोग भारत प्रगति के कदम उठाने में क्यों नहीं करता? क्या वे एनसीसी पाठ्यक्रमों में भाग ले रहे हैं? प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो रहे हैं? कला, विदेशी भाषाएं या कम्प्यूटर सीख रहे हैं? यूक्रेन युद्ध के दौरान अचानक ही भारतवासी यह जानकर चौंक गए कि हमारे हजारों लड़के और लड़कियां एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के लिए उस छोटे से देश में गए थे. मुझे भी शर्मिंदगी महसूस हुई. वह मुद्दा थोड़ा अलग है.

कुछ पूछताछ करने पर मुझे पता चला कि बहुत से शिक्षित युवा लोग किसी न किसी प्रकार की नौकरियों में व्यस्त हैं; शहरी भारत में कुछ लोग पेशेवर खेलों-मुख्य रूप से क्रिकेट-में व्यस्त हैं; जबकि अन्य टीवी पर संगीत कार्यक्रमों में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. इससे भी बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में खेती से जुड़ा हुआ है या बस निष्क्रिय पड़ा है. पेशे के हिसाब से सटीक आंकड़े मेरे पास उपलब्ध नहीं हैं. फिर हममें से अधिकांश ने देश भर में हाल की राजनीतिक रैलियों में बड़ी संख्या में युवाओं को मामूली पैसों के लिए एक या दूसरी पार्टी के नेताओं के साथ देखा है.
सोमनाथ ने संक्षेप में जो मुद्दा उठाया है और युवाओं को आकर्षित करने का एक रास्ता सुझाया है, उसे विभिन्न मंदिर ट्रस्टों द्वारा आजमाया जा सकता है, लेकिन उससे निकलने वाले बड़े गंभीर मुद्दों को समाजशास्त्रियों और नीति आयोग या राज्य सरकार द्वारा हल किया जाना चाहिए यानी युवाओं को देश के लाभ और उनके अपने कल्याण के लिए शिक्षित करना.

इतनी विशाल युवा शक्ति को अधिक समय तक यूं ही तो नहीं गंवाया जा सकता. उन्हें एक कुशल और प्रशिक्षित श्रम शक्ति में परिवर्तित करने और उचित तरीके से संभालने की आवश्यकता है. इससे अपराधों में भी कमी आएगी और समाज की भलाई को बढ़ावा मिलेगा. प्रत्येक वर्ष केवल विवेकानंद जयंती को ‘युवा दिवस’ के रूप में मनाना और हो-हल्ला करना पर्याप्त नहीं होगा. हमें सोमनाथ ने जो कहा है, उसके अभिप्राय को समझना चाहिए. यह एक यक्ष प्रश्न है. इसका उत्तर समाज और सरकार को तुरंत खोजना होगा.

Web Title: Where is the country's youth busy ISRO Chairman and scientist S. Somnath

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