मुंबईः बंबई उच्च न्यायालय ने अपने माता-पिता के खिलाफ निरोधक आदेश का अनुरोध करने वाले एक व्यक्ति को राहत देने से इनकार करते हुए कहा है कि आज के युग में, परवरिश में कुछ गड़बड़ है, जिसमें एक बेटा अपने बुजुर्ग माता-पिता को श्रवण कुमार की तरह तीर्थयात्रा पर ले जाने के बजाय उन्हें अदालत में घसीट रहा है।
न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की पीठ ने बृहस्पतिवार को दिए गए एक आदेश में उस व्यक्ति को कोई राहत देने से इनकार कर दिया, जिसने अपने माता-पिता को इलाज के लिए मुंबई आने पर उपनगरीय गोरेगांव स्थित उसके घर का इस्तेमाल करने से रोकने का आदेश देने का अनुरोध किया था।
याचिकाकर्ता ने मुंबई की एक सिविल अदालत के जनवरी 2018 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसके माता-पिता को आवासीय परिसर का इस्तेमाल करने से रोकने से इनकार कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि यह एक और उदाहरण तथा ‘‘दुखद स्थिति’’ है,
जहां एक बेटे ने अपने बीमार और वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने का नैतिक कर्तव्य निभाने के बजाय, उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया है। न्यायमूर्ति जैन ने कहा, ‘‘हमारी संस्कृति में निहित नैतिक मूल्य इस हद तक गिर गए हैं कि हम श्रवण कुमार को भूल गए हैं, जो अपने माता-पिता को तीर्थयात्रा पर ले गए थे।’’
गौरतलब है कि श्रवण कुमार हिंदू महाकाव्य रामायण में वर्णित एक पात्र थे, जो अपने माता-पिता की सेवा के लिए जाने जाते हैं। मामले का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति जैन ने कहा कि उनका मानना है कि याचिकाकर्ता को अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल करनी होगी।