Amit Shah Exclusive Interview: केंद्र की मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में गृह मंत्री अमित शाह एक तेज तर्रार मंत्री के रूप में अपनी पहचान रखते हैं। वह जितने आत्मविश्वास के साथ संसद में अपनी बात रखते हैं, उतनी दृढ़ता के साथ उसे पालन कराने का दावा भी करते हैं। बीते सप्ताह नई दिल्ली में ढलती शाम के बीच उनके साथ नए कानूनों के विषय में सवाल-जवाब के साथ देश के वर्तमान राजनीतिक हालातों पर भी करीब एक घंटे तक उनके निवास पर चर्चा हुई। प्रस्तुत हैं लोकमत समूह के संयुक्त प्रबंध संचालक और संपादकीय संचालक ऋषि दर्डा और नेशनल एडिटर हरीश गुप्ता की गृह मंत्री से बेबाक बातचीत के अंश...
यहां पढ़े इंटरव्यू की खास बातें
सवाल : महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों पर रोक लगाने के लिए नए कानून में क्या कुछ ठोस प्रावधान किए गए हैं?
उत्तर : सरकार की प्राथमिकता में सबसे पहले बच्चों और महिलाओं का पूरा अध्याय लिया। सामूहिक बलात्कार के मामलों में 13 साल की नाबालिग बच्ची की उम्र को अब 18 साल कर दिया है। इसके साथ- साथ सामूहिक बलात्कार के लिए मौत और आजीवन कारावास मतलब अंतिम सांस तक जेल में रहना कर दिया है। अब 14 साल की सजा नहीं रही। सबसे से ‘क्रुशियल’ चीज, पीड़िता का बयान, जिससे हाथ से लिखा जाता था। वह क्या लिखवा रही हैं? क्या लिखा जा रहा ? वो तो किसी को मालूम नहीं था... हमने अब पीड़िता की रिकॉर्डिंग को अनिवार्य किया है। पीड़िता जो बोलेगी वही रिकॉर्ड होगा। उसका मेडिकल टेस्ट आनाकानी के चलते नहीं कराया जाता था, हमने मेडिकल टेस्ट भी अनिवार्य कर दिया।
सवाल : ये पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में भी तो टाइम लगेगा, क्योंकि सारे पुलिस स्टेशन के अंदर रिकॉर्डिंग की सुविधा जरूरी होगी?
उत्तर : ‘रिकॉर्डिंग’ का मतलब मोबाइल से ‘रिकॉर्डिंग’ है।
सवाल : तकनीक से जो जोड़ना है वो इन्फ्रास्ट्रक्चर...?
उत्तर : उस पर हम पांच साल से काम कर रहे हैं। आज देश के 99.9 प्रतिशत पुलिस स्टेशन ऑनलाइन हो गए हैं। एक ही सॉफ्टवेयर से चलते हैं। भारतीय भाषाओं में चलते हैं, उनके अंदर वीडियो कॉफ्रेंसिंग की व्यवस्था हैं। मैं नहीं मानता कि कोई पुलिस थाने या अस्पताल में रिकॉर्ड न कर पाए ऐसा कोई मोबाइल नहीं होगा। और फिर सर्वर पर ट्रान्सफर करना है तो हमने पूरी तरह से आधुनिकीकरण पर पांच साल काम किया है।
सवाल : मगर पुलिस की जवाबदेही केंद्र शासित प्रदेशों में तो आप तय कर सकते हैं, लेकिन राज्यों का क्या होगा?
उत्तर : हमारी घोषणा के बाद यह सभी राज्यों में लागू हो जाएगा। ये केंद्र और राज्य दोनों का विषय है।
सवाल : कई बार राज्य सरकार भी पुलिस पर दबाव डालती है। कुछ ही नहीं, बहुत सारे मामलों में ऐसा हो सकता है?
उत्तर : हमने 6 साल और उसके ऊपर की सजा में इसके अंदर फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) को अनिवार्य कर दिया। अब आपके फिंगर प्रिंट मिल जाते हैं, फिर क्या दबाव डालेंगे। बताइए ? फिंगर प्रिंट पुलिस नहीं लेती है और एफएसएल की रिपोर्ट सीधी कोर्ट में भेजनी है। पुलिस को कॉपी भेजनी है।
सवाल: मगर कई लोग कहते हैं कि इतने सारे फॉरेन्सिक कार्यों के लिए ‘मैन पावर’ कहां है?
जवाब: इसलिए हमने पहले से ही वर्ष 2020 में फॉरेन्सिक साइंस यूनिवर्सिटी स्थापित की हैं। महाराष्ट्र में बन गई है। देश में नौ और बन रही हैं। अब उनसे 30 से 35 हजार स्नातक हर साल बाहर आएंगे। हमने लॅबोरेटरी की जगह एक नई व्यवस्था विकसित की है। हम हर जिले में एक मोबाइल फॉरेन्सिक वैन दे देंगे। हम एक देंगे, एक राज्य लेगा। मोबाइल फॉरेन्सिक वैन किसी भी ‘क्राइम सीन’ पर बीस मिनट में पहुंच जाएगी। हमारे पास उपलब्ध एनसीआरबी के आंकड़ों के विश्लेषण से भी पता चलता चलता है कि काम तो एक ही वैन से हो सकता है, फिर हम दो दे रहे हैं। इससे हमारी सजा दिलाने की दर 90 फीसदी के ऊपर पहुंच । इससे भी पहले हमने ढेर सारा डेटा, ऑनलाइन उपलब्ध करा दिया है। 'नफीस' सॉफ्टवेयर पर छह करोड़ लोगों की फिंगर प्रिंट उपलब्ध है।
सवाल : मगर गैंगस्टर जेल से ही अपनी करतूतें कर रहे हैं। वे एक हाथ आगे हैं ?
उत्तर : जेलों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। जिसमें विशिष्ट प्रकार के जैमर का प्रावधान है। लगभग दो साल में हर जेल जैमर से युक्त कर देंगे।
सवाल : भारत में बहुत सारे जेल में ऐसे लोग हैं, जिन्हे जमानत नहीं मिलती है, गरीब हैं, उनके लिए कोई व्यवस्था?
उत्तर : बहुत बड़ा प्रावधान कर दिया है. जो ‘फर्स्ट टाइम ऑफेंडर’ है, जैसे ही उसकी 33 प्रतिशत सजा समाप्त होती है, उसे कोर्ट में जाने की जरूरत नहीं है। सेकंड टाइम ऑफेंडर है, उसकी 50 प्रतिशत सजा पूरी होती है तो उसे जमानत मिल सकती है। इसके अलावा बहुत सारे छोटे- छोटे अपराधों के लिए जेल जाने वालों के लिए जेल की जगह साफ-सफाई, ‘वॉलेंटरी वर्क’ जैसे प्रावधान किए हैं। इससे जेल में कैदियों की संख्या भी कम हो जाएगी। इसके लागू होने से पहले तीन महीने में देश के करीब 32 प्रतिशत कैदी बाहर आ जाएंगे।
सवाल : लेकिन ऐसा भी कहा जा रहा है कि इसके कारण न्यायाधीशों की शक्ति कम होगी। क्या यह सही है?
उत्तर : जो गुनाह आपका साबित नहीं हुआ। उसकी सजा का 50 प्रतिशत आपने जेल में बिता दिया फिर सुनवाई किस बात के लिए? सुनवाई के बिना ही जेल में रहना पड़ेगा क्या? इसे तो समाज के रूप में न्यायसंगत बनाना होगा।
सवाल : आपने तीनों कानूनों में बदलाव तो तय कर लिया है। मगर इतने बड़े परिवर्तन को लागू करने में वक्त बहुत लगेगा?
उत्तर : वह तो दिमाग पर निर्भर है. कुछ लोगों का दूसरे दिन से हो जाता है। धीरे- धीरे हो जाएगा। ऐसा सोच कर कोई नई शुरूआत नहीं करनी चाहिए। डेढ़ सौ साल पुराना कानून किस तरह से चल सकेगा? अप्रासंगिक हो गया था। हमने इसमें बहुत सारी नई शुरुआत की है।आज तक देश में आतंकवाद की व्याख्या ही नहीं थी। इतना आतंकवाद झेलने के बाद भी अदालत पूछती है कि आतंकवादी की व्याख्या क्या है? तो हमारे कानून में व्याख्या नहीं थी।
सवाल : पुराने कानून में तो संगठित अपराध की भी व्याख्या नहीं थी?
उत्तर : हमने व्याख्या कर दी है। संगठित अपराध सिर्फ 120 बी से चलता था। साजिश की इतनी विस्तृत परिभाषा थी, अलग- अलग राज्यों में अपराध करने वालों का कुछ भी नहीं हो पाता था। पहली बार गैंग खत्म करना, सिंडिकेट्स खत्म करना, बच्चों से भीख मंगवाने वाले सिंडिकेट्स, महिलाओं की तस्करी करने वाले, मादक पदार्थों का कारोबार करने वाले सब संगठित अपराध करने वालों की श्रेणी में आएंगे। आज तक हमारे कानून में संगठित अपराध की व्याख्या ही नहीं थी।