आप (शरद पवार) 10 वर्ष देश के कृषिमंत्री थे, फिर भी आज देश में किसान आंदोलन हो रहे हैं- से लेकर विपक्ष को एकजुट कर क्या आप उनका नेतृत्व करेंगे. क्या सोनिया गांधी और आपके बीच के मतभेद खत्म हो गए. क्या आपके सुझाव के कारण उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने, क्या अजित पवार को राकांपा के संचालन सूत्र सौंपेंगे, कांग्रेस का भविष्य क्या है..? तक. लोकमत समूह के एडिटोरियल बोर्ड के चेयरमैन विजय दर्डा के इन सीधे सवालों के जवाब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने उतने ही बेबाक अंदाज में दिए. उन्होंने कहा कि प्रतिभा पाटिल में मुख्यमंत्री पद संभालने की क्षमता थी, लेकिन कांग्रेस ने अलग फैसला किया. साथ ही पवार ने कहा कि नरेंद्र मोदी विपक्षी सदस्यों से चर्चा नहीं करते और वे जो बताते हैं, वह पूरी तरह सच नहीं है. पवार के मुताबिक, बराक ओबामा को राहुल गांधी के बारे में नहीं बोलना चाहिए था, यह हमारे देश का आंतरिक मामला है. साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि मैं लोगों में भगवान देखता हूं. उनके साथ हुई सीधी बातचीत-
विजय दर्डा : देश का नेतृत्व आपको करना चाहिए और यह आपकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा भी थी.. इसके पीछे दो भावनाएं थीं. एक- देश की धर्मनिरपेक्षता अबाधित रहे और दूसरी- महाराष्ट्र को यह पद मिले..
शरद पवार : इस संबंध में मेरा दृष्टिकोण अलग है. राजनीति में या समाजसेवा में आने वाले व्यक्ति की कुछ परिकल्पनाएं होती हैं. यदि कल्पना और वास्तविकता में काफी अंतर हो, तो किसी को उस कल्पना की छाया में नहीं रहना चाहिए. उदाहरण के लिए मेरे बारे में कहा जाता है, लिखा जाता है कि मुझे राष्ट्रीय स्तर पर जाना चाहिए, कुछ होना चाहिए.
लेकिन दूसरी ओर देश की संसद में आप आठ और दस सदस्य लेकर बैठेंगे और मैं देश का नेतृत्व करने का रवैया अपनाऊंगा, यह समझदारी का लक्षण नहीं है. हमें यहां वास्तविकता प्रस्तुत करनी चाहिए. हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि हमारे पास ऐसा आंकड़ा नहीं है. सत्य और वास्तविकता को नजरंदाज कर राजनीति की गई, तो आप में निराशा आती है. और मैं निराशा की दिशा में कभी नहीं जाऊंगा.
वर्तमान परिस्थितिमें सभी की राय है कि एक सशक्त विपक्षी दल होना चाहिए. कांग्रेस को जो भूमिका निभानी चाहिए, या उसके सहयोगी दलों के भी अपनी भूमिका अपेक्षित रूप से नहीं निभा पाने के कारण देश में भाजपा की अलग तरह की स्थिति बन गई है. यह बात सच है. मैं अकेले कांग्रेस को ही दोष नहीं दूंगा.
भारतीय जनता पार्टी की नीतियां मंजूर नहीं हैं
लेकिन, जिन्हें भारतीय जनता पार्टी की नीतियां मंजूर नहीं हैं और जिन्हें लगता है कि देश में प्रभावी विकल्प होना चाहिए, उन्हें समान विचार वाले दलों को एकत्र लाने की भूमिका स्वीकार करनी चाहिए. .. और इसे स्वीकारते समय उनमें से बड़े दलों को थोड़ा समझौते वाला रुख अपनाना चाहिए. अब समझौते का अर्थ क्या है?
उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व में सरकार है. ममता बनर्जी का पूरा संघर्ष भाजपा विरोधी है. ऐसे में वहां कांग्रेस हो या वाम विचारधारा के लोग हों, जिन्हें भाजपा मंजूर नहीं है उनका ममता के विरोध में आर-पार का रवैया अख्तियार करना योग्य नहीं है. इस बारे में विचार करने की आवश्यकता है कि आमने-सामने बैठकर क्या इसमें से कोई राह निकल सकती है.
ऐसा अनेक राज्यों में हो रहा है. इसका फायदा भाजपा को मिल रहा है. मेरे जैसे व्यक्ति की इच्छा है कि सभी भाजपा विरोधी पार्टियों के प्रमुखों के साथ एक बार सुसंवाद साधा जाए. प्रयास किया जाए कि क्या इसमें कोई सुधार हो सकता है. लेकिन सच कहें तो पिछले चार महीनों में कोरोना की वजह से बैठकेंआयोजित करने की प्रक्रिया ही बंद हो गई है. अब संसद का सत्र शुरू होगा, तब संभवत: यह अवसर मिले. लेकिन ऐसा प्रयास करना राष्ट्रीय आवश्यकता है.
इस देश में आज के दौर में तीन बड़े नेता हैं. एक- नरेंद्रभाई मोदी, दो- सोनिया गांधी और तीसरे- आप. ऐसी परिस्थिति में क्या ऐसा लगता है कि सभी लोगों को साथ बिठाकर उनका आप नेतृत्व करें?
नहीं, आपके इस मत से मैं सौ फीसदी सहमत हूं कि साथ बैठना चाहिए. इसके पीछे की यह भावना भी मुझे पूरी तरह मान्य है कि इसके जरिए हमें वैकल्पिक ताकत का निर्माण करना चाहिए. लेकिन, ऐसा करते समय यदि यह कहा जाए कि किसी व्यक्ति को नजरों के सामने रखकर ही यह करें, तो एकता कभी भी नहीं होगी. इसलिए एकत्र आने की भूमिका का निर्णय एकत्रित रूप से लें. फिर तय करें कि उसका नेतृत्व कौन करेगा. वह कोई भी हो सकेगा.. जो सभी को मंजूर हो वह..
उस व्यक्ति में सभी को साथ लाने की क्षमता भी होनी चाहिए ना?
साथ लाने की क्षमता होना एक भाग है. लेकिन, जिस व्यक्ति पर विश्वास करेंगे, उस व्यक्ति को नेतृत्व देने की जिम्मेदारी दूसरा भाग हुआ. लेकिन, यह बात उस व्यक्ति को तय नहीं करनी है. बाकी सभी लोग मिलकर यह तय करें, तो उसमें से कुछ निकलकर सामने आएगा.
आज विपक्षी दलों की जो अवस्था है, उसे देखकर क्या ऐसा नहीं लगता कि इसके लिए आप भी जिम्मेदार हैं..?
इसमें दो राय नहीं कि हम सभी जिम्मेदार हैं. लेकिन, मुझे ऐसा लगता है कि जब सुसंवाद साधने का योग्य समय आएगा, तब इन सभी बातों का विचार करना पड़ेगा. वह समय ज्यादा दूर नहीं है. जल्द ही संसद का अधिवेशन होने जा रहा है. उस समय साथ आने, साथ बैठने का अवसर सभी को मिलने वाला है.
क्या आपको लगता है कि आज देश में जो परिस्थिति बन गई है, उसमें सेंध लगाकर आप मोदीजी के नेतृत्व को धक्का पहुंचा सकते हैं?
किसी व्यक्ति के बारे में द्वेष या विरोध के लिए विरोध करने जैसा रवैया अपनाकर नहीं चलेगा. जब हम विकल्प देने की बात करते हैं, तो वैकल्पिक कार्यक्र म दिया जाना चाहिए. हम क्या करना चाहते हैं, कैसे करना चाहते हैं.. और इसके जरिए बहुसंख्य लोगों को विश्वास दिलाना चाहिए. जब हम साथ बैठेंगे, तब सिर्फ विकल्प देकर काम नहीं चलेगा. हम इन सभी बातों पर चर्चा करने वाले हैं कि साथ बैठने पर हमारा कार्यक्रम क्या होगा, नेतृत्व कौन करने वाला है और हम किस राह पर चलेंगे.
राज्य की बागडोर उद्धव ठाकरे के हाथ में
राज्य की बागडोर मेरे हाथ में नहीं है. वह उद्धव ठाकरे के हाथ में है. राज ठाकरे को चुनाव में भले ही अपेक्षा के मुताबिक सफलता नहीं मिली हो, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि युवाओं के मन से उनकी क्रेज चली गई है.