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"छत्तीसगढ़ 'शराब घोटाले' में 2,161 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार हुआ", ईडी ने कोर्ट में कहा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: July 6, 2023 11:29 IST

ईडी ने रायपुर की विशेष अदालत में कहा कि छत्तीसगढ़ में शराब बिक्री से हासिल की गई जिस 2,161 करोड़ रुपये की धनराशि को राज्य के खजाने में जानी थी। वह भ्रष्ट नेताओं, अफसरों और अन्य आरोपियों के जेब में गई।

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ठळक मुद्देईडी का दावा छत्तीसगढ़ के कथित "शराब घोटाले" में हुआ 2,161 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचारवरिष्ठ नौकरशाहों, राजनेताओं और उनके सहयोगियों के सिंडिकेट ने दिया शराब घोटाले को अंजामईडी ने 13,000 पन्नों के दस्तावेजों को आधार बनाते हुए शराब घोटाले को 2,161 करोड़ रुपये का बताया

रायपुर:प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दावा किया है कि छत्तीसगढ़ के कथित "शराब घोटाले" में 2,161 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार हुआ है, जो 2019 में सूबे के वरिष्ठ नौकरशाहों, राजनेताओं, उनके सहयोगियों और उत्पाद शुल्क विभाग के अधिकारियों की मिली भगत का परिणाम है।

ईडी ने छत्तीसगढ़ के कथित शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में रायपुर की विशेष अदालत के समक्ष बीते मंगलवार को दायर अपनी 'अभियोजन शिकायत' में कहा कि शराब बिक्री से हासिल की गई जिस 2,161 करोड़ रुपये की धनराशि को राज्य के खजाने में जानी चाहिए थी। वह भ्रष्ट नेताओं, अफसरों और अन्य आरोपियों के जेब में गई।

ईडी ने इस केस में कांग्रेस नेता और रायपुर के मेयर ऐजाज ढेबर के भाई अनवर ढेबर, छत्तीसगढ़ राज्य विपणन निगम लिमिटेड (सीएसएमसीएल) के प्रबंध निदेशक अरुणपति त्रिपाठी, शराब व्यवसायी त्रिलोक सिंह ढिल्लन, होटल व्यवसायी नितेश पुरोहित और अरविंद सिंह को आरोपी बनाया गया है।

कोर्ट में ईडी के वकील सौरभ पांडे ने कहा कि 13,000 पन्नों के दस्तावेजों को आधार बनाते हुए जांच एजेंसी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में यह अभियोजन शिकायत धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों के तहत अदालत में दायर कर रही है।

ईडी ने अपनी शिकायत में कहा कि जांच से पता चला है कि राज्य के उत्पाद शुल्क विभाग में 2019 से 2023 के बीच कई तरीकों से "अभूतपूर्व भ्रष्टाचार" किया गया था और इसमें शामिल सिंडिकेट द्वारा लगभग 2,161 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार किया गया। जिसे राज्य के खजाने में जाना चाहिए था और उससे केंद्र और राज्य सरकारों के लिए राजस्व प्राप्त होना चाहिए था।

ईडी का दावा है कि जिस उत्पाद शुल्क विभाग की मुख्य जिम्मेदारियों में शराब की आपूर्ति को विनियमित करना, जहरीली शराब की त्रासदियों को रोकने के लिए गुणवत्तापूर्ण शराब सुनिश्चित करना और राज्य के लिए राजस्व अर्जित करना था लेकिन हाल ही में रिटायर हुए आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा और अनवर ढेबर की अगुवाई में आपराधिक सिंडिकेट ने इसके ठीक उल्टा किया और बड़े पैमाने पर शराब भ्रष्टाचार को अंजाम दिया।

ईडी ने आरोप लगाया कि राज्य के वरिष्ठ नौकरशाह, राजनेता, उनके सहयोगी और उत्पाद शुल्क विभाग के अधिकारियों ने एक सिंडिकेट बनाकर शराब नीति को अपनी इच्छा से बदला और उसके जरिये अधिकतम व्यक्तिगत लाभ उठाया।

फरवरी 2019 में भारतीय दूरसंचार सेवा अधिकारी अरुणपति त्रिपाठी को इस कारण से सीएसएमसीएल (शराब की खरीद और बिक्री के लिए राज्य निकाय) का प्रमुख बनाया गया ताकि शराब सिंडिकेट भ्रष्टाचार को अंजाम दे सके। उस साल मई में ढेबर के आदेश पर अरुणपति त्रिपाठी उन्हें को प्रबंध निदेशक बनाया गया था।

इसमें आरोप लगाया गया है कि त्रिपाठी को सीएसएमसीएल द्वारा खरीदी गई शराब पर एकत्रित रिश्वत कमीशन को अधिकतम करने और सीएसएमसीएल द्वारा संचालित दुकानों के माध्यम से गैर-शुल्क भुगतान वाली शराब की बिक्री के लिए आवश्यक व्यवस्था करने का काम सौंपा गया था।

इस साजिश के तहत सीएसएमसीएल के एमडी केवल पसंदीदा निर्माताओं से शराब खरीदते थे और जो कमीशन नहीं देते थे, उन्हें दरकिनार कर देते थे। एजेंसी ने आरोप लगाया कि ईडी को दिए गए बयानों के अनुसार अनवर ढेबर शराब से मिले कमीशन को इकट्ठा करते थे और उसमें से बड़ा हिस्सा सत्ताधारी दल के नेताओं के साथ साझा करता था।

सिंडिकेट ने सीएसएमसीएल द्वारा संचालित दुकानों के माध्यम से बेहिसाब अवैध शराब के निर्माण और बिक्री की साजिश रची। ईडी ने कहा कि साजिश के हिस्से के रूप में सिंडिकेट द्वारा डिस्टिलर्स को डुप्लिकेट होलोग्राम प्रदान किए गए थे और डिस्टिलर्स द्वारा डुप्लिकेट बोतलें नकद में खरीदी गई थीं।

एजेंसी ने आरोप लगाया कि डिस्टिलर, ट्रांसपोर्टर, होलोग्राम-निर्माता, बोतल-निर्माता, उत्पाद शुल्क अधिकारी, उत्पाद शुल्क विभाग के उच्च अधिकारी, ढेबर, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और राजनेता सहित सभी को बाकायदा उसका हिस्सा दिया जाता था। अभियोजन पक्ष की शिकायत पर प्रतिक्रिया देते हुए ढेबर और ढिल्लों के वकील फैजल रिजवी ने कहा कि उनके मुवक्किलों को मामले में झूठा फंसाया जा रहा है।

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