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निर्भया कांड का दोषी पवन गुप्ता अंतिम समय तक मांगता रहा दया की भीख, जानें उसके बारे में सबकुछ

By गुणातीत ओझा | Updated: March 20, 2020 07:29 IST

वारदात को अंजाम देने वाले छह दरिंदों में एक उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले का रहने वाला पवन गुप्ता उर्फ कालू अपने आप को बचाने के लिए कोर्ट का दरवाजा अंतिम समय तक खटखटाता रहा।

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ठळक मुद्देनिर्भया केस में दोषी पवन ने सुप्रीम कोर्ट में डाली थी क्यूरेटिव याचिका, कोर्ट ने कर दी थी खारिजनिर्भया के सभी गुनहगारों को आज तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई

नई दिल्लीः 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली की सड़कों पर चलती बस में निर्भया के साथ दरिंदगी की गई और बाद में उसे मौत के घाट उतार दिया गया। इस जघन्य और अमानवीय कृत्य में दरिंदा पवन गुप्ता भी पाप का भागी बना था। इस खौफनाक वारदात को अंजाम देने वाले छह दरिंदों में एक उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले का रहने वाला पवन गुप्ता उर्फ कालू अपने आप को बचाने के लिए कोर्ट का दरवाजा अंतिम समय तक खटखटाता रहा। पवन मरते दम तक दावा करता रहा कि घटना के वक्त वह नाबालिग था। सुप्रीम कोर्ट ने पवन गुप्ता की दलीलों को दरकिनार कर उसकी फांसी की सजा बरकरार रखी और आज उसे सूली पर लटका दिया गया।

बस में निर्भया से दरिंदगी करने वालों में पवन भी था। बस्ती जिले के जगन्नाथपुर के रहने वाले पवन के परिवार के लोग दिल्ली के आरकेपुरम रविदास कैंप में रहते हैं। पवन के दोस्तों ने बताया था कि कालू को क्रिकेट का बहुत शौक था। उसने महादेवा में नमकीन बनाने की फैक्ट्री खोली लेकिन वह चल नहीं पाई थी। इसके बाद वह दिल्ली चला गया और वहां जूस का व्यवसाय करने लगा था।

पवन के पिता, दादी और बहन समेत परिवार के सदस्य आरकेपुरम इलाके में उसके साथ संत रविदास कैंप में रहते थे। उसकी बहन और दादी ने 2017 में फांसी की सजा के बाद अदालत और कानून पर टिप्पणी की थी। दोनों का मानना था कि पवन को न्याय पाने के लिए प्रयास करने का मौका नहीं दिया गया था। पवन के चाचा भी दिल्ली में रहकर काम करते हैं। निर्भया कांड के बाद पवन की मां की मौत पर पिता एक बार अपने गांव जगन्नाथपुर आए थे, लेकिन वह क्रिया-कर्म के बाद लौट गए थे।

दो भाई व दो बहन में सबसे बड़ा पवन दुकानदारी के अलावा ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी कर रहा था। पिता ने यहां लालगंज थाने के महादेवा चौराहे के पास गांव में भी जमीन ली थी और उस पर मकान बनवाना शुरू किया था, मगर 16 दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद से काम ठप हो गया। निचली अदालत ने 10 सितंबर 2013 में जब उसे फांसी की सजा सुनाई तो गांव में लोगों ने समर्थन किया लेकिन दादी ने उसके छूटने की बात की थी।

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