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झारखंड में मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून, दोषी को सश्रम आजीवन कारावास और 25 लाख रुपये तक का जुर्माना...

By एस पी सिन्हा | Updated: December 21, 2021 17:00 IST

झारखंड विधानसभा में मंगलवार को शून्यकाल के दौरान ध्यानाकर्षण प्रस्तावों पर चर्चा के प्रारंभ में ही हजारीबाग से भाजपा विधायक मनीष जयसवाल ने जेपीएससी के मुद्दे पर अपने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव की प्रति यह कहते हुए फाड़ दी कि उन्हें अब इस सरकार से कोई उम्मीद नहीं है.

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ठळक मुद्देभाजपा के नेतृत्व में अधिकतर विपक्षी दलों ने विरोध जारी रखा.सदन की कार्यवाही का बहिष्कार भी कर दिया.मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी जयसवाल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.

रांचीः झारखंड में अब मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून लागू होने जा रही है. सूबे में हेमंत सरकार ने मॉब लिंचिंग पर लगाम लगाने के लिए भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग निवारण विधेयक के आज सदन में पारित हो गया. इस कानून के तहत डीजीपी लिंचिंग की रोकथाम की निगरानी और समन्वय के लिए अपने समकक्ष के अधिकारी को राज्य समन्वयक नियुक्त करेंगे.

वहीं इसके नोडल अधिकारी कहलायेंगे. नोडल अधिकारी जिलों में स्थानीय खुफिया इकाइयों के साथ माह में एक बार नियमित रूप से बैठक करेंगे. प्राप्त जानकारी के अनुसार इस कानून के तहत मॉब लिंचिंग के दोषी को सश्रम आजीवन कारावास और 25 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकेगा. जुर्माने की राशि 25 लाख तक बढ़ायी जा सकती है.

लिंचिंग का अपराध सिद्ध होने पर शुरुआत में एक साल का कारावास हो सकता है, जिसे तीन साल के लिए बढाया जा सकता है. जुर्माना राशि भी एक लाख से तीन लाख तक हो सकती है. दोषी का कृत सामान्य से ज्यादा होने पर जुर्माना तीन से पांच लाख रुपये तथा एक से दस वर्ष तक की सजा हो सकती है.

इसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, आहार, व्यवहार, लैंगिक, राजनैतिक संबद्धता, नस्ल अथवा किसी अन्य आधार पर किसी को लिंच करने के लिए भीड को उकसाने का आरोप सिद्ध होने पर इसके तहत सजा मिल सकती है. मॉब लिंचिंग कानून बनाने का उद्देश्य अतिरिक्त सतर्कता और भीड़ द्वारा हिंसा या लिंचिंग की प्रवृत्तियों के अस्तित्व की निगरानी करना है. 

बताया जाता है कि नोडल अधिकारी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म या किसी अन्य माध्यमों से आपत्तिजनक सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए भी कदम उठायेंगे. हर जिले में एसपी या एसएसपी समन्वयक होंगे. वह डीएसपी के माध्यम से हिंसा और लिंचिंग रोकने के उपाय पर काम करेंगे.

इसमें गवाह का नाम और पता गोपनीय रखा जायेगा. पीड़ित अगर चाहेंगे तो उन्हें नि:शुल्क कानूनी सहायता दी जायेगी. इस कानून के तहत गवाह का संरक्षण किया जायेगा और पीड़ित के नि:शुल्क उपचार की व्यवस्था भी की जायेगी. 

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