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जब दिलीप कुमार की इस फिल्म को सेंसरबोर्ड ने बता दिया था अश्लील, 250 जगहों पर लगा दी थी कैंची, नेहरू तक पहुंची थी शिकायत

By अनिल शर्मा | Updated: December 11, 2021 16:16 IST

60 के दशक में कई फिल्में कीं। इसी वक्त उन्होंने अपनी फिल्म गंगा जमुना का निर्माण भी किया था। लेकिन फिल्म सेंसरबोर्ड में अटक गई थी। फिल्म रिलीज ही नहीं हो रही थी। आरोप था कि फिल्म में अश्लीलता और हिंसा को दिखाया गया है।

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ठळक मुद्देएक बार दिलीप कुमार की फिल्म को सेंसर बोर्ड ने रोक दिया थाफिल्म का नाम था- गंगा जमुना, जिसपर सेंसर बोर्ड ने अश्लील होने का आरोप लगा दिया थापंडित जवाहर लाल नेहरू के आदेश के बाद फिल्म रिलीज हुई थी

मुंबईः दिलीप कुमार अगर जीवित होते तो आज वह अपना 99वां जन्मदिन मना रहे होते। कोरोनाकाल में कई दिग्गजों ने इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया। दिलीप कुमार भी इस साल साथ छोड़ गए। वे ऐसे अभिनेता थे जिनकी आंखें ही सब कुछ कह जाती थीं। 60 के दशक में कई फिल्में कीं। इसी वक्त उन्होंने अपनी फिल्म गंगा जमुना का निर्माण भी किया था। लेकिन फिल्म सेंसरबोर्ड में अटक गई थी। फिल्म रिलीज ही नहीं हो रही थी। आरोप था कि फिल्म में अश्लीलता और हिंसा को दिखाया गया है। सेंसरबोर्ड के काफी चक्कर लगाने के बाद भी जब कुछ बात नहीं बनी तो दिलीप कुमार ने अपनी बात नेहरू तक पहुंचाई। फिर क्या था। तब के तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री बालकृष्ण विश्वनाथ केसकर (बीवी केसकर) की कुर्सी तक चली गई थी।

राजकमल से प्रकाशित चर्चित लेखक और वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई की किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री: देश, दशा, दिशा’ में इस घटना का विस्तार से जिक्र किया गया गया है। किताब में किदवई लिखते हैं, साल 1961 की शुरुआत में फिल्म ‘गंगा जमना’ तैयार हो चुकी थी। इस फिल्म को दिलीप कुमार ने ही बनाया था और कहानी भी उन्होंने लिखी थी। लेकिन सेंसर बोर्ड ने फिल्म में हिंसा व अश्लीलता का जिक्र करते हुए 250 जगह काट-छांट करने के निर्देश दे दिए थे।

किताब में इस बात का जिक्र है कि केसकर के इशारे पर ही सेंसरबोर्ड ने दिलीप कुमार की फिल्म पर रोक लगाई थी। सेंसर बोर्ड के रवैए से परेशान होकर दिलीप कुमार ने  इंदिरा गांधी की मदद से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात की। पंडित नेहरू ने पूरी बात सुनी और फिल्म को रिलीज करने का निर्देश दे दिया। यहां तक कि पंडित नेहरू ने केसकर को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से भी हटा दिया। दिलीप कुमार की जीवनी लिखने वाले रयूबेन ने यहां तक कहा है कि सेंसर बोर्ड भगवान या तानाशाह की तरह व्यवहार कर रहा था। वह कोई भी बात सुनने को राजी नहीं होता था।

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