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Sarzameen Review: देश की सरहद, परिवार की हद एक हृदय विदारक गाथा!

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 25, 2025 07:37 IST

Sarzameen Review: कहानी का मूल आधार हैं कर्नल विजय मेनन (पृथ्वीराज सुकुमारन), जिन्होंने अपना समूचा जीवन राष्ट्र सेवा के यज्ञ में समर्पित कर दिया है.

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ठळक मुद्देएक सैन्य अभियान के दौरान, विजय को यह चौंकाने वाला सत्य ज्ञात होता है.अकल्पनीय चौराहे पर खड़ी हो जाती है, जहाँ से कोई सीधा रास्ता नहीं दिखता.

Sarzameen Review: कुछ फ़िल्में महज़ सिल्वर स्क्रीन पर उभरती और मिट जाती हैं; जबकि कुछ ऐसी होती हैं, जो आपकी आत्मा में गहराई तक पैठ कर एक अमिट पदचिह्न छोड़ जाती हैं. कायोज़ ईरानी की 'सरज़मीं' इसी दुर्लभ श्रेणी की कृति है. यह अपनी दास्तान की शुरुआत तो बड़ी ही सहजता से करती है, लेकिन धीरे-धीरे एक ऐसे भावनात्मक भँवर में तब्दील हो जाती है, जो आपको साँस लेने तक का अवसर नहीं देता. कश्मीर के अशांत और संवेदनशील भूभाग पर आधारित यह फ़िल्म बिना किसी अनावश्यक भूमिका के सीधे अपने मर्मस्पर्शी कथानक में प्रवेश करती है, दर्शकों को एक ऐसे परिवार के हृदय-विदारक संघर्ष से रूबरू कराती है, जो भीतर ही भीतर बिखर रहा है. कहानी का मूल आधार हैं कर्नल विजय मेनन (पृथ्वीराज सुकुमारन), जिन्होंने अपना समूचा जीवन राष्ट्र सेवा के यज्ञ में समर्पित कर दिया है.

उनकी जीवनसंगिनी, मेहर (काजोल), ने अपने इकलौते बेटे को हर आँच से बचाने में अपनी समस्त शक्ति लगा दी. किंतु नियति का क्रूरतम विधान तब सामने आता है, जब उनका ही रक्त, हरमन (इब्राहिम अली खान), उसी राष्ट्र के लिए एक गंभीर संकट बन जाता है, जिसकी रक्षा की विजय ने शपथ ली थी. एक सैन्य अभियान के दौरान, विजय को यह चौंकाने वाला सत्य ज्ञात होता है:

उनका लापता पुत्र हरमन एक आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया है. इस कड़वी सच्चाई का सामना करते हुए, मेहर भावनात्मक रूप से टूट जाती है, क्योंकि व्यक्तिगत संबंधों और राष्ट्रीय कर्तव्यों के बीच की रेखाएँ धुंधली पड़ने लगती हैं, और वह एक ऐसे अकल्पनीय चौराहे पर खड़ी हो जाती है, जहाँ से कोई सीधा रास्ता नहीं दिखता.

अभिनय की कसौटी: दिग्गज सितारों का सामंजस्य और इब्राहिम का प्रभावशाली पदार्पण

काजोल अपनी चिर-परिचित तीव्रता के साथ अपने किरदार में प्राण फूँक देती हैं. उनके दर्द का चित्रण कोई नाटकीय अतिशयोक्ति नहीं है, बल्कि यह एक गहरी, आंतरिक पीड़ा है, जो दर्शकों के अंतर्मन को भीतर तक झकझोर देती है. वहीं, पृथ्वीराज भी उतने ही सशक्त लगते हैं, जो एक पिता की उस अनूठी यातना को बख़ूबी दर्शाते हैं,

जो अपने बेटे के देशद्रोही बनने की अकल्पनीय सच्चाई से जूझ रहा है – एक ऐसी स्थिति जहाँ 'अनुशासन' जैसा पवित्र शब्द भी 'विश्वासघात' जैसा लगने लगता है. दोनों अनुभवी कलाकार दमदार प्रदर्शन करते हैं, और आप उनके किरदारों के दुख और दुविधा में पूरी तरह से लीन हो जाते हैं. लेकिन फ़िल्म का सबसे बड़ा आश्चर्य और उपलब्धि इब्राहिम अली खान हैं.

वह हरमन को महज़ एक क्रूर खलनायक के रूप में चित्रित नहीं करते, बल्कि एक ऐसे युवा के रूप में पेश करते हैं जो किसी चीज़ में विश्वास करने के लिए बेचैन है, भले ही वह मार्ग कितना भी विनाशकारी क्यों न हो. उनके मौन भाव और परेशान करने वाली नज़रें बिना किसी संवाद के भी गहरा प्रभाव छोड़ जाती हैं.

उनके अभिनय में अपने पिता सैफ अली खान के प्रतिष्ठित 'लंगड़ा त्यागी' किरदार की एक सूक्ष्म, विचलित कर देने वाली झलक मिलती है. इब्राहिम ने इस भूमिका के लिए अपने भीतर के 'अंधेरे' को उभारा है, और एक शक्तिशाली व अविस्मरणीय प्रदर्शन दिया है. 'चॉकलेटी बॉय' वाली छवि से एक कच्चे, तीव्र आतंकवादी में उनका परिवर्तन अत्यंत प्रभावशाली है. उन्होंने हरमन के किरदार में संवेदनशीलता और गंभीरता का एक अनूठा मिश्रण डाला है, जिससे आप उसके खंडित मन की गहराई को समझना चाहते हैं.

निर्देशन और पटकथा: बारीकी से बुनी गई, बेबाक़ और प्रामाणिक दृष्टि

फ़िल्म की पटकथा बेहद तीक्ष्ण है, और इसका छायांकन शानदार होने के बावजूद कभी भी कृत्रिम या दिखावटी नहीं लगता. 'सरज़मीं' एक क्रूर, असहज प्रश्न पूछती है: क्या होता है जब युद्ध दूर की सीमाओं पर नहीं, बल्कि आपके अपने घर की चारदीवारी के भीतर लड़ा जाए? जब आपके देश प्रेम और संतान प्रेम के बीच एक असहनीय टकराव हो जाए?

यह ऐसी फ़िल्म नहीं है जिसे आप देखकर आसानी से भुला पाएँगे. यह आपके भीतर गहरे तक उतर जाती है, आपके विचारों में लंबे समय तक बनी रहती है. 'सरज़मीं' देशभक्ति, प्रेम और उस जटिल 'ज़मीन' की एक गहरी कहानी है, जो सीधे दिल पर चोट करती है. यह निश्चित रूप से ऋतिक रोशन के 'मिशन कश्मीर' और 'फिज़ा' जैसे दमदार प्रदर्शनों की याद दिलाती है, जहाँ किरदारों को समान नैतिक दुविधाओं से जूझना पड़ा था. यह दिलचस्प है कि 'मिशन कश्मीर' ऋतिक की रोमांटिक डेब्यू 'कहो ना प्यार है!' के बाद उनकी दूसरी फ़िल्म थी!

इब्राहिम अली खान 'सरज़मीं' के साथ यकीनन एक बड़ी छलाँग लगा रहे हैं, और यह फ़िल्म एक असाधारण थ्रिलर होने का वादा करती है, जो उन्हें हिंदी सिनेमा में एक विशिष्ट पहचान दिला सकती है. काजोल और पृथ्वीराज जैसे ज़बरदस्त प्रदर्शन के साथ, यह फ़िल्म निश्चित रूप से दर्शकों पर एक अमिट छाप छोड़ेगी.

Sarzameen Review:

निर्देशक: कायोज़ ईरानीलेखक: सौमिल शुक्ला, क़ौसर मुनीर, अरुण सिंहकलाकार: पृथ्वीराज सुकुमारन, काजोल, इब्राहिम अली खानरेटिंग: ★★★★☆ (4 स्टार)

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