लाइव न्यूज़ :

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान-चीन पसोपेश में

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: June 8, 2021 13:15 IST

तालिबान के जितने भी गुट हैं, वे सब पाकिस्तान में स्थित हैं. पाकिस्तान खुले में तो तालिबान का विरोध करता है लेकिन ये भी सच है कि उसने तालिबान को अपनी अफगान-नीति का मुख्य अस्त्र बना रखा है.

Open in App

अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान और चीन का ताजा रवैया  तारीफ के काबिल है लेकिन यह रवैया बहुत ही हैरान करनेवाला भी है. दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मो. हनीफ अतमार के साथ जो संवाद किया, उसमें साफ-साफ कहा कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी में जल्दबाजी न की जाए. यों तो ये फौजें एक मई को लौटनी थीं लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस तारीख को बढ़ाकर 11 सितंबर कर दिया है.

पाकिस्तान और चीन उन देशों में से हैं, जो अमेरिकी और नाटो फौजों के अफगानिस्तान में रहने का घोर विरोध करते रहे हैं, क्योंकि उनके द्वारा पोषित तालिबान का उन्मूलन करना उनका मुख्य उद्देश्य रहा है.

यदि पाकिस्तान का समर्थन और सक्रिय सहयोग नहीं होता तो क्या मुजाहिदीन और तालिबान काबुल पर कब्जा कर सकते थे? बबरक कारमल और नजीबुल्लाह को अपदस्थ करने में उस समय अमेरिका ने भी पाकिस्तान की सक्रिय सहायता की थी लेकिन आतंकवादियों द्वारा अमेरिका में किए गए हमलों ने सारा खेल उलट दिया.

अमेरिका ने तालिबान को काबुल से बेदखल कर दिया लेकिन पिछले 20 वर्षो में अफगान जनता द्वारा चुनी हुई हामिद करजई और अशरफ गनी सरकारों के विरुद्ध तालिबान की पीठ कौन ठोंक रहा है? क्या पाकिस्तान की सक्रिय सहायता के बिना तालिबान जिंदा रह सकते हैं?

तालिबान के जितने भी गुट हैं, वे सब पाकिस्तान में स्थित हैं. उनके नाम हैं- क्वेटा शूरा, पेशावर शूरा और मिरानशाह शूरा! पाकिस्तान अब खुले में तो तालिबान का विरोध करता है लेकिन उसने तालिबान को अपनी अफगान-नीति का मुख्य अस्त्र बना रखा है.

इसके बावजूद उसे पता है कि गिलजई पठानों का यह संगठन अंततोगत्वा पाकिस्तान के पंजाबी शासकों को धता बता देगा. जो पठान अंग्रेजों, रूसियों और अमेरिकियों के हौसले पस्त कर सकते हैं, वे पाकिस्तान के लिए भी बहुत बड़ा सिरदर्द बन सकते हैं. वे पख्तूनिस्तान की मांग फिर से जीवित कर सकते हैं. वे काबुल नहीं, पेशावर को अपनी राजधानी बनाना चाहेंगे.

पाकिस्तानियों को यह डर तो है ही और चीनियों को भी यह डर है कि यदि काबुल में तालिबान आ गए तो अफगानिस्तान से लगा हुआ उसका शिनच्यांग प्रांत अस्थिर हो जाएगा. शिनच्यांग के उइगर मुसलमानों को दबाना मुश्किल हो जाएगा. इसीलिए अब इन दोनों देशों के विदेश मंत्री घुमा-फिराकर तालिबानी सत्ता का विरोध कर रहे हैं. यदि इनका विरोध इतना ही प्रामाणिक है तो ये दोनों राष्ट्र अपने लाख - दो लाख सैनिक अफगानिस्तान क्यों नहीं भिजवा देते? वे वहां लोकतांत्रिक सरकार को कायम रखने में मदद क्यों नहीं करते?

पाकिस्तान बहुत गंभीर पसोपेश में फंसा हुआ है. एक तरफ वह अमेरिकियों को काबुल में टिके रहने को कह रहा है और दूसरी तरफ उनकी वापसी के बाद वे अफगानिस्तान को जो हवाई सुरक्षा देना चाहते हैं, वह भी नहीं दे रहा है.

टॅग्स :पाकिस्तानचीनअफगानिस्तानतालिबान
Open in App

संबंधित खबरें

विश्व'अगर भारत ने बांग्लादेश की तरफ बुरी नज़र से देखने की हिम्मत की...': पाकिस्तानी लीडर की युद्ध की धमकी, VIDEO

क्रिकेटमोहसिन नकवी ने U19 एशिया कप फाइनल के बाद ICC में शिकायत की धमकी दी, बोले- 'भारतीय खिलाड़ी उकसा रहे थे'

विश्व2021 में चीन छोड़कर हांगकांग, इक्वाडोर और बहामास होते हुए छोटी नाव से फ्लोरिडा पहुंचा गुआन हेंग?, शिनजियांग के निरोध केंद्रों का गुप्त रूप से वीडियो यूट्यूब पर जारी कर चीनी सच को दिखाया?

भारतबांग्लादेश में हिन्दू युवा के साथ हुई हिंसा के लिए बिहार के मंत्री दिलीप जायसवाल ने पाकिस्तान को ठहराया जिम्मेवार, कहा- भारत की शांति में खलल पैदा करना चाहता है

क्रिकेटIND vs PAK, FINAL: अंडर-19 एशिया कप का चैंपियन बना पाकिस्तान, फाइनल में भारत को 191 रनों से हराया

विश्व अधिक खबरें

विश्वअमेरिका ने नाइजीरिया में ISIS आतंकियों पर गिराए बम, जानिए ट्रंप ने क्यों दिए एयरस्ट्राइक के आदेश

विश्वCanada: टोरंटो में भारतीय छात्र की हत्या, अज्ञात ने मारी गोली; भारतीय दूतावास ने कही ये बात

विश्वBangladesh: दीपू चंद्र दास के बाद बांग्लादेश में एक और हिंदू की हत्या, अमृत मंडल के रूप में हुई पहचान

विश्वबांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना पर शिकंजा, अवामी लीग को फरवरी 2026 के राष्ट्रीय चुनावों में भाग लेने पर किया बैन

विश्वहोंडुरास में ट्रंप समर्थित उम्मीदवार नासरी अस्फुरा ने मारी बाजी, 4 बार के उम्मीदवार साल्वाडोर नसराला को करीबी मुकाबले में हराया