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शोभना जैन का ब्लॉग: यूएस की बाइडेन-कमला टीम और भारत के बीच सहजता के बिंदु

By शोभना जैन | Updated: November 13, 2020 12:23 IST

यह भारतीय मूल के रोहित दुबे अपने इस असाधारण मानवीय कृत्य के लिए हिंसा और नफरत की नस्लीय हिंसा के दौर में सहिष्णुता के प्रतीक बन गए.

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कल्पना कीजिए इस वर्ष जून के झुटपुटे की एक सांझ की, जहां अमेरिका में राष्ट्रपति निवास, व्हाइट हाउस से कुछ दूरी पर हो रहे ‘ब्लैक लाइफ मैटर्स’ के आंदोलनकारी पुलिस के दमनचक्र से बचने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे तभी भारतीय मूल के रोहित दुबे ने लगभग 75 श्वेत-अश्वेत आंदोलनकारियों को अपने घर के कोने में शरण दी.

यह भारतीय मूल के रोहित दुबे अपने इस असाधारण मानवीय कृत्य के लिए हिंसा और नफरत की नस्लीय हिंसा के दौर में सहिष्णुता के प्रतीक बन गए. गत त्नासद दौर के बाद इसी सहिष्णुता को आगे बढ़ाते हुए अमेरिकी मतदाताओं ने पिछले सप्ताह अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के जरिये समाज में फिर से सहिष्णुता लाने का जनादेश दे डाला.

अमेरिकी इतिहास के सबसे कटु और विवादास्पद राष्ट्रपति चुनाव माने जा रहे इस चुनाव में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जहां अब चुनाव में पराजित होने के बावजूद हार स्वीकार नहीं करने की धमाचौकड़ी में लगे हैं, वहीं निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन अपनी टीम के साथ आगामी 20 जनवरी की दोपहर शपथ ग्रहण करने से पहले अपनी टीम चुनने में मशगूल हैं.

भारतीयों के लिए यह भी गौरव की बात है कि बाइडेन ने कोविड से निपटने के टास्क फोर्स की सह अध्यक्षता की अहम जिम्मेदारी एक भारतीय मूल के डॉ. विवेक मूर्ति को दी, साथ ही 20 भारतवंशियों को अपनी टीम में शामिल करने की घोषणा की है. 

भारत सहित दुनिया की भी निगाहें इस ओर लगी हैं कि नया डेमोक्रेटिक बाइडेन प्रशासन आंतरिक चुनौतियों के साथ-साथ नई अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से कैसे निपटेगा. डेमोक्रेट खास तौर पर पूर्ववर्ती ओबामा-बाइडेन सरकार के साथ भारत की तत्कालीन सरकार के साथ अच्छे संबंधों के चलते विश्वास व्यक्त किया जा रहा है कि संबंधों में निरंतरता बनी रहेगी, एक सहजता तो रहेगी ही, संबंध एक नए रूप में और आगे जा सकते हैं. दोनों के बीच हर क्षेत्न में सहयोग हैं, सामरिक साझेदारी से लेकर रक्षा, व्यापार, निवेश और जनता के बीच आपसी संपर्क यानी द्विपक्षीय संबंधों का ग्राफ काफी अच्छा है और पिछले सभी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में ये संपर्क निरंतर बढ़े ही हैं.

लेकिन फिर भी भारत में निगाहें खास तौर पर इस बात पर लगी हैं कि बाइडेन प्रशासन की विदेश नीति कैसी रहती है, कुछ संभावित बदलाव कैसे आते हैं. कारोबार से लेकर एच-1 बी वीजा, अमेरिका में भारतीयों को मिलने वाली नौकरियों, रक्षा भागीदारी, पाकिस्तान को लेकर अमेरिका का रुख, चरमपंथ, ईरान, चीन को लेकर फैसले, कश्मीर पर रुख जैसे ऐसे कई अहम पहलू हैं जिन पर बाइडेन की अगुवाई में बनने वाला नया प्रशासन किस तरह का रवैया रखता है, यह देखना होगा. हालांकि शुरुआती संकेतों से पता चलता है कि आव्रजन संबंधी नीति भारतीयों सहित प्रवासियों के लिए अच्छे दिन लाएगी.

बाइडेन के लिए परिवार कितना महत्वपूर्ण है, निश्चय ही यह आव्रजन संबंधी उनकी नीति को प्रभावित करेगा और सिलिकॉन वैली से आने वाली कमला हैरिस जानती हैं कि अमेरिकी टेक दिग्गजों के लिए तकनीकी विशेषज्ञ कितने महत्वपूर्ण हैं, इसलिए एच-1 बी वीजा के मुद्दे पर कुछ लचीलेपन की उम्मीद की जानी चाहिए. दोनों के बीच के कुछ ‘असहज मुद्दों’ की अगर बात करें तो अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कश्मीर और मानवाधिकार मुद्दे पर अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन और कमला हैरिस का अब क्या स्टैंड होता है.

वैसे भारत में इस बारे में निश्चितता है कि कुछ असहजता वाले मुद्दों को छोड़ कर बाइडेन-कमला टीम भी द्विपक्षीय संबंधों को आगे ही ले जाएगी और असहमति वाले मुद्दों पर भी संवाद के जरिये भारत के पक्ष, चिंताएं और सरोकार को समझाने के प्रयास तो जारी ही रहेंगे यानी सहज संबंधों वाले बिंदुओं के बावजूद असहजता वाले बिंदुओं पर भी नजर रहेगी. वैसे कुल मिला कर देखें तो मोटे तौर पर तो भारत और अमेरिका के संबंधों में ‘व्यक्तियों’ का रोल कम होता जा रहा है और संस्थाओं की भूमिका बढ़ती जा रही है. 

जब ट्रम्प ने कहा था कि भारत की हवा बहुत गंदी है, तब बाइडेन ने कहा था कि यह मित्नों से बात करने का सही तरीका नहीं है. इसलिए वह अपने समकक्षों के बयान को नहीं काटेंगे, बल्कि दूसरे देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए ट्विटर के बजाय पारंपरिक कूटनीतिक चैनल का इस्तेमाल करेंगे. बौद्धिक संपदा अधिकार, आयात शुल्क, डाटा संरक्षण और स्थानीयकरण, डिजिटल सेवा कर, डब्ल्यूटीओ और जीएसपी जैसे मुद्दों पर बाइडेन द्वारा ट्रम्प की नीतियों को पलटने की संभावना नहीं है.

टॅग्स :जो बाइडनअमेरिकाकमला हैरिस
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