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ब्लॉग: पेयजल क्यों नहीं बन पाता चुनावी मुद्दा?

By विश्वनाथ सचदेव | Published: March 06, 2024 12:23 PM

अखबार के भीतरी पन्नों में एक खबर थी देश में पीने के पानी के बारे में। इस खबर के अनुसार देश के 485 नगरों में से सिर्फ 46 में ही पीने का शुद्ध पानी है। इस आंकड़े के लिए किसी एजेंसी का हवाला दिया गया था।

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ठळक मुद्देपानी की बोतल तो वह भेज देंगे पर वहां बाथरूम का पानी ही पीने के लिए काम आता हैदेश के 485 नगरों में से सिर्फ 46 में ही पीने का शुद्ध पानी हैपता नहीं यह कितना सही है पर यह बात तो हम सब जानते हैं

कई साल पुरानी बात है। विदेश यात्रा के दौरान न्यूयाॅर्क के एक बड़े होटल में जब मैं अपने कमरे में गया तो देखा पीने का पानी नहीं था। मैंने संबंधित कर्मचारी से फोन पर बात की। उसने बताया कि पानी की बोतल तो वह भेज देंगे पर वहां बाथरूम का पानी ही पीने के लिए काम आता है। सब वही पानी पीते हैं। पूरी तरह सुरक्षित है वह पानी पीने के लिए। जब उसने यह बात कही तो उसकी आवाज में एक गर्व की अनुभूति खनक रही थी। आज यह घटना मुझे तब अचानक याद आ गई जब मैं सुबह का अखबार पढ़ रहा था।

अखबार के भीतरी पन्नों में एक खबर थी देश में पीने के पानी के बारे में। इस खबर के अनुसार देश के 485 नगरों में से सिर्फ 46 में ही पीने का शुद्ध पानी है। इस आंकड़े के लिए किसी एजेंसी का हवाला दिया गया था। पता नहीं यह कितना सही है पर यह बात तो हम सब जानते हैं कि हमारे देश में धनी तबका घरों में पीने के पानी के लिए ‘वॉटर प्यूरीफायर’ का उपयोग करता है।

सच कहें तो शहरी इलाकों में, घरों में ऐसी मशीन का होना एक अनिवार्य आवश्यकता बन गई है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष 5 वर्ष से कम आयु के तीन लाख से अधिक बच्चे डायरिया से मरते हैं और यह डायरिया दूषित पानी पीने से ही होता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि पीने के पानी को लेकर जागरूकता बढ़ी है। हर घर में ‘नल से जल’ जैसी योजनाओं का असर भी कुछ देखने को मिल रहा है पर नल के इस पानी की शुद्धता को लेकर आए दिन सवाल उठते रहते हैं। मेरी जिज्ञासा और चिंता तो यह है कि हमारे देश में हम कब गर्व से कह सकेंगे कि गुसलखाने के नल का पानी ही पीने के काम में भी आता है। आज यह सवाल इसलिए भी अधिक मुखर होकर सामने आ रहा है कि शुद्ध पानी जैसा मुद्दा हमारे राजनेताओं को चुनावी मुद्दा क्यों नहीं लगता।

हर घर में नल जैसी बात होती है, पर उस शिद्दत के साथ नहीं जिसके साथ होनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि शुद्ध पानी का मुद्दा कभी उठा नहीं। उठता रहता है अक्सर, पर फिर उतनी ही तेजी से भुला दिया जाता है। अब जो चुनाव सामने आ रहे हैं उनमें हमारे नेताओं के मुंह से कितनी बार शुद्ध पानी का उच्चारण हुआ है?

10 साल पहले गंगा नदी के पानी को शुद्ध बनाने वाला ‘नमामि गंगे प्रोजेक्ट’ चुनावी चर्चा का मुद्दा बना था, पर इस आधी-अधूरी रह गई परियोजना की बात आज कोई नहीं कर रहा। कोई नहीं पूछ रहा कि करोड़ों की आस्था का प्रतीक बनी ‘मां गंगा’ का पानी अब तक शुद्ध क्यों नहीं हो पाया अथवा हमारे राजनेताओं ने इस महत्वपूर्ण परियोजना को चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बनाया?

टॅग्स :Water Resources DepartmentभारतIndia
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