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ब्लॉग:बस्तियों का रुख क्यों कर रहे हैं तेंदुए ?

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: October 18, 2024 09:24 IST

यदा-कदा जंगल महकमे के लोग इन्हें पिंजरा लगा कर पकड़ते हैं और फिर पकड़े गए स्थान के करीब ही किसी जंगल में छोड़ देते है. चूंकि तेंदुए की याददाश्त  बेहतरीन होती है, सो वह लौट कर वहीं आ जाता है.

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कहा जाता है कि बरसात के मौसम में जंगल में मंगल होता है. घने वन झूमते हैं और हर जानवर के लिए पर्याप्त भोजन होता है. लेकिन इस बार अकेले उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के अलग-अलग हिस्सों में तेंदुए ऐसे मौसम में बस्ती की तरफ आ रहे हैं और उनकी भिड़ंत इंसान से हो रही है.

मुरादाबाद-अमरोहा के सैकड़ों किसान तेंदुए के डर से खेत नहीं जा रहे तो लोगों ने दिन में भी जंगल या एकांत से गुजरना छोड़ दिया है. हापुड़ और मेरठ में भी घनी बस्ती में तेंदुआ पालतू जानवरों का शिकार कर चुका है. बिजनौर में तेंदुआ 25 से अधिक जान ले चुका है. पीलीभीत के आसपास एक हजार से अधिक तेंदुओं के घूमने की बात  जंगल महकमा कह रहा है. उत्तर प्रदेश में तो भेड़िये, सियार, कुछ जगह बाघ के कारण लोगों में दहशत है.

लेकिन असम, राजस्थान,  हिमाचल प्रदेश से भी तेंदुए के गांवों तक आने की खबर को सामान्य नहीं माना जा सकता. यह सच है कि जंगलों में बाघ की संख्या बढ़ने से तेंदुओं को पलायन  करना पड़ रहा है लेकिन बरसात में पलायन का बड़ा कारण बदलता मौसम है. तेंदुए जैसे जानवर को क्या जलवायु परिवर्तन से जूझने में दिक्कत हो रही है?

चीता हमारे सामने उदाहरण है कि आजादी के बाद कैसे वह हमारे देश से लुप्त हुआ था. आज भले ही तेंदुए की संख्या पर्याप्त है लेकिन जब उसका इंसान से टकराव बढ़ेगा तो जाहिर है कि उसके प्रजनन, भोजन, पर्यावास सभी पर कुप्रभाव पड़ेगा, खासकर जब जलवायु परिवर्तन की मार अब जानवरों पर बुरी तरह से पड़  रही है.

 यह बात गौर करने की है कि कुछ साल पहले तक  तेंदुए के शावक जनवरी से मार्च तक दिखाई देते थे, लेकिन इस बार भारी बरसात में अर्थात जुलाई में जगह-जगह शावक दिखे. जाहिर है कि बदलते मौसम ने तेंदुए के प्रजनन काल में बदलाव कर दिया है. हो यह रहा है कि बाघ के कारण तेंदुए गहरे जंगल को छोड़ने पर जब मजबूर होते हैं तो वे बस्ती-शहर के पास डेरा डालते हैं, जहां तापमान बढ़ने का कुप्रभाव सबसे अधिक है और इसने उनके मूल स्वभाव में परिवर्तन ला दिया है.

घने  जंगल कम होने से तेंदुए के इलाके में बाघ का कब्जा हो गया और पानी और घास पर जीने वाले जीव, जो कि मांसाहारी जानवरों के भोजन होते हैं, उनकी पर्याप्त संख्या होने के बावजूद तेंदुए को अधिक गरम इलाके में आना पड़ रहा है. जान लें कि जंगल का जानवर इंसान से सर्वाधिक भयभीत रहता है और वह बस्ती में तभी घुसता है जब वह पानी या भोजन की तलाश में बेहाल हो जाए.

चूंकि तेंदुआ कुत्ते से लेकर मुर्गी तक को खा सकता है, अतः जब एक बार  लोगों की बस्ती की राह पकड़ लेता है तो सहजता से शिकार मिलने के लोभ में बार-बार यहां आता है. यदा-कदा जंगल महकमे के लोग इन्हें पिंजरा लगा कर पकड़ते हैं और फिर पकड़े गए स्थान के करीब ही किसी जंगल में छोड़ देते है. चूंकि तेंदुए की याददाश्त  बेहतरीन होती है, सो वह लौट कर वहीं आ जाता है.

यदि इंसान चाहता है कि वह तेंदुए जैसे जंगली जानवरों का निवाला न बने तो जरूरत है कि  नैसर्गिक जंगलों को  छेड़ा न जाए, जंगल में इंसानों की गतिविधियों पर सख्ती से रोक  लगे. खासकर जंगलों में नदी-नालों पर खनिज या रेत उत्सर्जन के नाम पर नैसर्गिक संरचनाओं को उजाड़ा न जाए.

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