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विजय दर्डा का ब्लॉग: महाराष्ट्र की इज्जत से खिलवाड़ बंद कीजिए

By विजय दर्डा | Updated: October 25, 2021 09:31 IST

यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि महाराष्ट्र में बहुत खतरनाक सियासी लड़ाई लड़ी जा रही है. इसमें बड़े प्रशासनिक अधिकारियों को ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें कहां तक अपने कदम बढ़ाने हैं.

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इन दिनों मैं जहां भी जाता हूं, चाहे वो देश का कोई हिस्सा हो या फिर विदेश, लोग बस एक ही सवाल पूछते हैं कि महाराष्ट्र में क्या चल रहा है? मैं क्या जवाब दूं इन सवालों का? बस दुख होता है, क्रोध आता है कि कुछ लोगों के कारण हमारा प्रदेश, देश और दुनिया में बदनाम हो रहा है. 

ओछी राजनीति और ड्रग्स ने महाराष्ट्र के पूरे वातावरण को दूषित कर दिया है. इस कुचक्र का शिकार हमारा प्रशासनिक अमला भी हो रहा है और इसका सीधा असर प्रदेश की प्रगति पर पड़ रहा है. प्रगति की इस राह में रोड़े अटकाने वालों से केवल इतना कहना चाहता हूं कि महाराष्ट्र की इज्जत के साथ यह खिलवाड़ तत्काल बंद कीजिए. प्रदेश के दामन पर बदनामी के दाग से लोगों को ठेस लगी है.

मैंने वो दिन देखे हैं जब महाराष्ट्र के विकास की कहानी को प्रत्यक्ष रूप से देखने के लिए दूसरे राज्यों के प्रशासनिक अधिकारी और राजनेता यहां का दौरा करते थे. पूरे देश में महाराष्ट्र पुलिस को सर्वश्रेष्ठ माना जाता रहा है लेकिन आज जो हालात हैं वह कई सवाल खड़े कर रहे हैं. ये कितनी हैरत की बात है कि मुंबई पुलिस के कमिश्नर पद पर रहते हुए महाराष्ट्र के गृह मंत्री पर 100 करोड़ रुपए प्रतिमाह की वसूली का आरोप लगाने वाले परमबीर सिंह को पुलिस तलाश नहीं पा रही है. 

परमबीर सिंह धरती में समा गए या आकाश में गुम हो गए, पुलिस को पता ही नहीं है! कितनी हैरत की बात है न! जिन पर आरोप लगा वो अनिल देशमुख गृह मंत्री के पद से तो गए ही, पता नहीं कहां गायब भी हो गए! सीबीआई उन्हें तलाश रही है. लुक आउट नोटिस तक जारी हो गए लेकिन उनका कहीं अता-पता नहीं है. क्या उन्हें तलाश पाना सीबीआई के लिए असंभव है? 

जो भी हो, इतना तो तय है कि इन दोनों के गायब होने की अविश्वसनीय कहानी ने महाराष्ट्र के दामन पर दाग जरूर लगाया है. यह तो वक्त के साथ हमारी न्यायिक प्रक्रिया से स्पष्ट होगा कि परमबीर के आरोपों में कितना दम है और गृह मंत्री के पद पर रहते हुए क्या अनिल देशमुख ने वाकई ऐसा किया जैसा परमबीर ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में आरोप लगाया? लेकिन इस पूरे मामले से जो हालात पैदा हुए हैं वे कुचक्र के नजरिये को दरकिनार नहीं करते हैं.

सीबीआई टीम ने हाल ही में महाराष्ट्र के चीफ सेक्रेटरी सीताराम कुंटे और राज्य के डीजीपी संजय पांडे को समन भेजा तो कैश फॉर ट्रांसफर डाटा लीकमामले में मुंबई पुलिस ने सीबीआई डायरेक्टर सुबोध जायसवाल को समन भेज दिया! मैं यह नहीं कह रहा कि कौन सही है या कौन गलत है लेकिन यह सवाल तो पैदा होता ही है कि जब प्रशासनिक संस्थाएं इस तरह एक दूसरे के खिलाफ खड़ी हो जाएं तो हालात क्या बनेंगे? 

आज महाराष्ट्र ऐसी ही स्थिति से जूझ रहा है. वास्तविक तौर पर काम करने वाले लोग दहशत में हैं कि पता नहीं किस मोड़ पर वे शिकार हो जाएं! जब इस तरह की स्थिति पैदा होती है तो उसका बहुत बुरा असर प्रशासनिक अमले पर पड़ता है. कामकाज ठप हो जाने की आशंकाएं पैदा हो जाती हैं. प्रशासनिक व्यवस्था में ढीलापन आना स्वाभाविक है. आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि अनिल देशमुख पर आरोपों के मामले को जिस तरह से हैंडल किया जाना चाहिए था, वैसा नहीं किया गया. इससे हालात और बदतर होते चले गए. प्रशासनिक तौर पर जो कदम उठाए जाने चाहिए थे, उसे बहुत ढीलेपन के साथ हैंडल किया गया. इसका खामियाजा निश्चय ही महाराष्ट्र को भुगतना पड़ रहा है. 

यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि महाराष्ट्र में बहुत खतरनाक सियासी लड़ाई लड़ी जा रही है. इसमें बड़े प्रशासनिक अधिकारियों को ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें कहां तक अपने कदम बढ़ाने हैं. प्रशासनिक संस्थाएं महत्वपूर्ण होती हैं, उनके बल पर व्यवस्थाएं टिकी होती हैं. संस्थाओं पर कभी कोई आंच नहीं आनी चाहिए. लेकिन अजीब सी स्थिति बन गई है.

इधर ड्रग्स के मामले को लेकर भी हमारा प्रदेश बदनाम हो रहा है. मुंबई ड्रग्स का बड़ा हब बनता हुआ नजर आ रहा है. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के मुंबई जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े ने ड्रग्स के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है लेकिन हम देख रहे हैं कि उन पर राजनीतिक प्रहार किए जा रहे हैं. वो तो समीर की हिम्मत है कि वे किसी के आगे झुक नहीं रहे. 

समीर वानखेड़े वो अधिकारी हैं जिनके नेतृत्व में अब तक करीब 17 हजार करोड़ रुपए के ड्रग्स पकड़े जा चुके हैं. ड्रग्स माफिया उनके नाम से कांपते हैं. ऐसे व्यक्ति की तो पूरी तरह से मदद की जानी चाहिए ताकि वह भारत के युवाओं को तबाह करने की साजिश रचने वाले ड्रग्स माफिया को धूल चटा दे! ..लेकिन दुर्भाग्य है कि उन्हीं पर निशाना साधा जा रहा है.

जहां तक आरोपों का सवाल है तो यह इस प्रदेश की राजनीतिक रगों में शामिल होता जा रहा है. राजनीति में आरोप लगते हैं लेकिन कुछ प्रमाण भी तो होना चाहिए! आज तो हालत यह है कि जिसकी जिस पर मर्जी आ जाए, आरोपों की झड़ी लगा देता है. भले ही कोई भी प्रमाण नहीं हो! 

मुझे लगता है कि बेवजह आरोपों का यह सिलसिला रुकना चाहिए. आरोप लगा रहे हैं तो उसे साबित करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए. अन्यथा वह दिन भी आएगा जब लोग आरोपों को गंभीरता से लेना बंद कर देंगे. मेरी बात से आप भी सहमत होंगे कि इस वक्त राजनीतिक और प्रशासनिक तौर पर जो हालात पैदा हो गए हैं उससे राज्य की इज्जत को बट्टा लगा है.

इससे निपटने में वक्त लगेगा लेकिन कहीं से शुरुआत तो होनी चाहिए. सभी राजनीतिक दलों को साथ आकर शांति के साथ विचार करना चाहिए कि राजनीति बड़ी है या अपना राज्य? मेरा आग्रह तो बस इतना है कि महाराष्ट्र की इज्जत के साथ कोई खिलवाड़ न करे..!

टॅग्स :महाराष्ट्रSameer Wankhedeनारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी)परमबीर सिंहअनिल देशमुखAnil Deshmukh
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