Tughlak Road Police Station: राष्ट्रीय राजधानी में रेस कोर्स मेट्रो स्टेशन से चंद कदमों पर है 1941 में बना तुगलक रोड थाना. इसके लिए दो तारीखें बहुत अहम रही हैं. पहली 30 जनवरी, 1948 और दूसरी, 31 अक्तूबर, 1984. दरअसल इन दो तारीखों को क्रमश: महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी की हत्या हुई. चूंकि तीस जनवरी मार्ग स्थित बिड़ला हाउस और सफदरजंग रोड इसी थाने के अंतर्गत आते हैं, तो बापू और इंदिरा गांधी की हत्याओं की एफआईआर इसी थाने में लिखी गई. पहले बात करेंगे 31 अक्तूबर, 1984 की. राजधानी में जाड़ा दस्तक देने लगा था.
तुगलक रोड थाने में उस मनहूस दिन थाना प्रभारी राजेंद्र प्रसाद और उनके सबइंस्पेक्टर जे.एस.जून सुबह चाय पीते हुए बातचीत कर रहे थे. योजना बना रहे थे कि आज के दिन किस तरह से काम करना होगा. उधर, तुगलक रोड थाने से कुछ ही दूर हेड कांस्टेबल नारायण सिंह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 1 सफदरजंग रोड स्थित सरकारी आवास पर सुबह 6 बजे ड्यूटी पर पहुंच गए थे.
वे 1980 से प्रधानमंत्री की निजी सुरक्षा में तैनात थे. वैसे वे अटैच तुगलक रोड थाने से ही थे. इंस्पेक्टर राजेंद्र प्रसाद और जून के बीच बातचीत सवा नौ बजे के करीब खत्म हुई और फिर राजेंद्र प्रसाद अपने एरिया के राउंड पर निकलने वाले थे. वक्त रहा होगा सुबह 9.40 बजे. उन्हें तभी वायरलेस पर पता चला कि इंदिरा जी को उनके सुरक्षाकर्मियों ने ही गोली मार दी है.
वे अपने साथियों के साथ घटनास्थल पर भागे. तब तक वहां पर अराजकता फैली हुई थी. इंदिराजी को लोग एम्स लेकर जा चुके थे. उन्होंने उस हादसे के चश्मदीद गवाह और दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल नारायण सिंह के बयान के आधार पर दिन में 11.30 बजे के बाद एफआईआर लिखी. इस बीच, 1948 और 1984 के बीच दिल्ली पुलिस में भारी बदलाव आ गए.
गांधीजी का एफआईआर खालिस उर्दू में लिखा गया था, इंदिरा गांधी का एफआईआर हिंदी में लिखा गया. कुछ साल पहले तुगलक रोड का नाम हो गया है डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम रोड. पर थाने के बाहर पुराना नाम ही चस्पा है. 30 जनवरी, 1948. तुगलक रोड पुलिस थाने के बगीचे में इंस्पेक्टर दसौधा सिंह और पार्लियामेंट थाने के डीएसपी जसवंत सिंह गुरुद्वारा सीसगंज जाने से पहले शाम के साढ़े चार बजे मूंगफलियां खा रहे थे. दोनों ने तय किया कि सीसगंज जाने से पहले एक बार 5 अलर्बुकर रोड (अब 5 तीस जनवरी मार्ग) का भी चक्कर लगा लेंगे. यहां तब महात्मा गांधी रहते थे.
5 बज चुके थे, शाम ढल रही थी. दोनों तुगलक रोड थाने से रवाना हो गए बिड़ला हाउस की तरफ. तभी उन्हें गोली चलने की आवाज सुनाई दी. दोनों करीब 5.22 मिनट पर बिड़ला हाउस के गेट पर पहुंचे तो वहां अफरा-तफरी का मंजर था. आवाजें आ रही थीं- ‘बापू को गोली मार दी’ ‘ गांधीजी को गोली मार दी.‘ बापू को गोली मारी गई थी 5.17 बजे. रात को करीब पौने दस बजे बापू की हत्या का एफआईआर लिखा गया.