ये वाकई सतर्क करने वाली खबर है. रेल मंत्रालय ने सभी रेल जोन के महाप्रबंधकों को एक पत्र भेजा है जिसमें निर्देशित किया गया है कि ट्रेन चालक दल को समझाइश दी जाए कि वे रनिंग रूम में बेवजह की बहस न करें. इससे समय नष्ट होता है और चालक दल को आराम करने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है. अब पहला सवाल यह है कि रेल मंत्रालय ने इस तरह का पत्र जारी किया है तो इसका मतलब है कि ट्रेन चालकों की नींद पूरी न हो पाने का मसला गंभीर है और इसके दुष्परिणाम सामने आए हैं. जी हां, दुष्परिणाम सामने आए हैं.
लाल सिग्नल पार करने की घटनाएं चिंता पैदा कर रही हैं. पिछले साल अर्थात 2024-25 के आंकड़े बताते हैं कि रेलवे की सुरक्षा सूचना प्रबंधन प्रणाली पर सिग्नल पासिंग एट डेंजर यानी लाल सिग्नल पार करने की 33 घटनाएं दर्ज की गईं. वर्ष 2025-26 के पहले दो महीने में ही इस तरह की छह घटनाएं सामने आ चुकी हैं. इसका मतलब है कि जिन ट्रेन चालकों ने रेड सिग्नल पार किया वे निश्चित रूप से सजग नहीं थे.
सजगता की कमी तभी हो सकती है जब ट्रेन चलाना प्रारंभ करने के पहले उन्होंने पर्याप्त आराम नहीं किया हो और पूरी नींद नहीं ली हो. रेलवे इस बात का पूरा ध्यान रखता है कि ट्रेन चालकों को पर्याप्त आराम और नींद का मौका मिले. इसके लिए जो स्थान निर्धारित है और जहां सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं, उसे रेलवे की भाषा में रनिंग रूम कहते हैं. स्वाभाविक रूप से वहां विभिन्न रूट पर चलने वाले चालक आराम करने के लिए आते हैं.
आपस में बातचीत करते हैं और कई बार किसी विषय को लेकर बातचीत का दायरा बहस और तर्क-वितर्क तक भी पहुंच जाना स्वाभाविक है. ऐसी स्थिति में जिस समय का उपयोग उन्हें आराम करने के लिए करना था, वह बातचीत या बहस में खर्च हो जाता है. इसीलिए रेलवे ने पत्र जारी करके कहा है कि ट्रेन चालकों को समझाइश दी जाए कि वे आराम करें, वक्त बर्बाद न करें.
उनकी नींद हजारों यात्रियों की सुरक्षा से जुड़ा मामला है. लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी पत्र से यह समस्या हल हो सकती है? इसका जवाब तो यही है कि पत्र से समझाइश मिल सकती है लेकिन इस पर अमल तो ट्रेन चालकों को ही करना पड़ेगा. पत्र में एक बात और कही गई है कि जब वे ड्यूटी पर हों तो मोबाइल बैग में रखें.
इसका मतलब है कि बेवजह की बातचीत इस दौरान न करें. वास्तव में मोबाइल भी इस तरह की समस्याओं के लिए एक जिम्मेदार उपकरण है. मोबाइल एक सुविधा है लेकिन जब यह वक्त खाने लगे तो सुविधा से ज्यादा समस्या का स्वरूप प्राप्त कर लेता है. बातचीत तो एक अलग मसला है, उससे ज्यादा गंभीर मसला इन दिनों रील्स ने पैदा कर दिया है. कौन व्यक्ति कितना समय मोबाइल पर स्क्रॉल करता है, यह तो वही व्यक्ति बता सकता है लेकिन औसत समय की चर्चा हम कर सकते हैं.
विभिन्न तरह के सर्वे बताते हैं कि भारत में एक व्यक्ति औसतन ढाई घंटे मनोरंजन के लिए मोबाइल स्क्रॉल करता है. इसमें से 40 मिनट वह रील्स देखने में लगाता है. यदि रील्स देखने की लत लग जाए तो यह और भी समय खाने लगता है. आंकड़े बताते हैं कि 1995 के बाद जन्मे लोग रील्स देखने में एक घंटे से भी ज्यादा खर्च करते हैं. अब जरा सोचिए कि यह मोबाइल हमारा कितना वक्त खराब कर रहा है. हमारे पास समय तो एक दिन-रात में वही चौबीस घंटे हैं. इसमें हमें सारे काम करने हैं.
निश्चित रूप से जीवन में मनोरंजन भी जरूरी है लेकिन किस तरह का मनोरंजन? जो रील्स लोग देखते हैं उसका दो-चार प्रतिशत काम का हो सकता है लेकिन बाकी सस्ते मनोरंजन के अलावा कुछ नहीं है. उसके लिए हम अपनी नींद और स्वास्थ्य खराब करें, यह कहां की बुद्धिमानी है?