मध्यप्रदेश और राजस्थान के बीच पार्वती, कालीसिंध और चंबल का पानी एक बड़े जलस्रोत के रूप में बहता है. मध्यप्रदेश में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना की शुरुआत के बाद अब उपरोक्त नदियों को जोड़े जाने की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयपुर में रख दी है. इसके प्रतीकस्वरूप तीनों नदियों के पानी को एक घड़े में भरा गया. तत्पश्चात भारत सरकार और राजस्थान एवं मध्यप्रदेश राज्य सरकारों के बीच त्रिपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए. 72000 करोड़ रुपए इस परियोजना पर खर्च होंगे.
इसमें 90 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार देगी. इस राशि में से 35000 करोड़ रुपए मध्यप्रदेश और 37000 करोड़ रुपए राजस्थान सरकार खर्च करेगी. इसमें मध्यप्रदेश के 13 जिलों के 3217 ग्रामों की सूरत बदल जाएगी. दोनों प्रदेशों में मिलाकर 27 नए बांध बनेंगे और 4 पुराने बांधों पर नहरों की जलग्रहण क्षमता बढ़ाई जाएगी. इसी के साथ 64 साल पुरानी ग्वालियर-चंबल संभाग की चंबल-नहर प्रणाली का उद्धार नए तरीके से किया जाएगा.
तय है कि ये नदियां निर्धारित अवधि में जुड़ जाती हैं तो सिंचाई के लिए कृषि भूमि का रकबा बढ़ने के साथ अन्न की पैदावार बढ़ेगी. किसान खुशहाल होंगे और उनके जीवन स्तर में सुधार आएगा. प्रस्तावित करीब 120 अरब डाॅलर अनुमानित खर्च की नदी जोड़ो परियोजना को दो हिस्सों में बांटकर अमल में लाया जाएगा. एक तो प्रायद्वीप स्थित नदियों को जोड़ना और दूसरे, हिमालय से निकली नदियों को जोड़ना. प्रायद्वीप भाग में 16 नदियां हैं, जिन्हें दक्षिण जल क्षेत्र बनाकर जोड़ा जाना है.
इसमें महानदी, गोदावरी, पेन्नार, कृष्णा, पार, तापी, नर्मदा, दमनगंगा, पिंजाल और कावेरी को जोड़ा जाएगा. पश्चिम के तटीय हिस्से में बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ा जाएगा. इस तट से जुड़ी तापी नदी के दक्षिण भाग को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है. केरल और कर्नाटक की पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में मोड़ी जाएगी.
यमुना और दक्षिण की सहायक नदियों को भी आपस में जोड़ना इस परियोजना का हिस्सा है. हिमालय क्षेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल को संग्रह करने की दृष्टि से भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं. ताकि वर्षाजल इकट्ठा हो और उत्तर-प्रदेश, बिहार, असम को बाढ़ से छुटकारा मिले.