लाइव न्यूज़ :

नेताजी: ‘थी उग्र साधना पर जिनका जीवन नाटक दु:खांत हुआ’

By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: January 23, 2025 06:48 IST

यह जानकर उनके पिता ने उनसे कहा कि इससे तुम्हें भी चेचक हो सकती है. इसलिए सावधान रहने की जरूरत है.

Open in App

वह चार जुलाई, 1944 का दिन था, जब आजाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर के तौर पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने बर्मा (अब म्यांमार) में ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ के नारे के साथ भारतीयों से आजादी की कीमत चुकाने का आह्वान किया. उस वक्त उनके शब्द थे, ‘...अपनी कमर कस लें. यहां किसी को भी आजादी का आनंद लेने के लिए जीने की इच्छा नहीं होनी चाहिए. एक लंबी लड़ाई हमारे सामने है.

आज हमारे अंदर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए- मरने की इच्छा...ताकि भारत जी सके...ताकि आजादी के रास्ते शहीदों के खून से प्रशस्त हो सकें. दोस्तों! आज मैं इस बात पर आप सभी से एक बड़ी मांग करता हूं...खून की मांग...केवल खून ही है जो आजादी की कीमत चुका सकता है. तुम मुझे खून दो और मैं तुमसे आजादी का वादा करता हूं.’ अनंतर, उन्होंने एक इससे भी बड़ी बात कही थी. यह कि आजादी दी नहीं जाती, ली जाती है और जो लोग अपने लिए आजादी चाहते हैं, उनका कर्तव्य है कि उसकी कीमत अपने खून से चुकाएं.

इससे पहले उनके नेतृत्व में न सिर्फ निर्वासित आजाद हिंद सरकार का गठन किया जा चुका था, बल्कि इस सरकार की इसी नाम की फौज ने अपने सैन्य अभियान का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया था और अपने ऐतिहासिक ‘दिल्ली चलो’ अभियान की कामयाबी के विश्वास से भरी थी.

लेकिन विडम्बना कि इसके कुछ ही दिनों बाद भारत की एक-एक इंच भूमि को फिरंगियों के कब्जे से आजाद कराने की उसकी उम्मीदों पर घोर तुषारापात का दौर आरंभ हो गया और कोहिमा में 4 अप्रैल, 1944 से 22 जून 1944 के बीच तीन चरणों में लड़े गए विकट युद्ध में हाथ आई पराजय ने उसकी धुन व सपनों, दोनों का अंत कर दिया. ऐसा नहीं हुआ होता तो निस्संदेह, आज हमारे देश का इतिहास कुछ और होता.

वह तब भी कुछ और ही होता, अगर हमने असमय नेताजी को खो नहीं दिया होता. क्योंकि यह मानने के एक नहीं अनेक कारण हैं कि वे इस एक पराजय से विचलित होकर फिरंगियों का प्रतिरोध त्याग देने वाले नहीं थे. आजादी के लिए खून देने के आह्वान से किसी को यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि वे  पत्थरदिल या संवेदनहीन थे. उनकी सहृदयता की एक मिसाल यह थी कि छात्र जीवन में उनके हॉस्टल के एक मित्र को चेचक हो गई. दूसरे छात्रों को जैसे ही इसका पता चला,  वे हॉस्टल में  उस मित्र को उसके हाल पर छोड़कर चले गए. लेकिन सुभाष ने उस मित्र की सेवा-सुश्रूषा शुरू कर दी.

यह जानकर उनके पिता ने उनसे कहा कि इससे तुम्हें भी चेचक हो सकती है. इसलिए सावधान रहने की जरूरत है. सुभाष का उत्तर था : अब तो जो भी हो,  मैं अपने मित्र को अकेला नहीं छोड़ सकता. जवाब सुनकर पिता भाव-विभोर हो उठे थे. उनकी आंखें भर आई थीं और उन्होंने कहा था, ‘‘मुझे गर्व है कि तुम मेरे बेटे हो.’’ निस्संदेह, बाबा नागार्जुन भी अपनी ‘उनको प्रणाम’ कविता में नेताजी जैसे नायकों के लिए यह पंक्ति लिखते हुए उतने ही भाव-विभोर रहे होंगे : ‘थी उग्र साधना पर जिनका जीवन नाटक दु:खांत हुआ.’

टॅग्स :सुभाष चंद्र बोस जन्मदिननेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंतीभारत
Open in App

संबंधित खबरें

भारत‘पहलगाम से क्रोकस सिटी हॉल तक’: PM मोदी और पुतिन ने मिलकर आतंकवाद, व्यापार और भारत-रूस दोस्ती पर बात की

भारतPutin India Visit: एयरपोर्ट पर पीएम मोदी ने गले लगाकर किया रूसी राष्ट्रपति पुतिन का स्वागत, एक ही कार में हुए रवाना, देखें तस्वीरें

भारतPutin India Visit: पुतिन ने राजघाट पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी, देखें वीडियो

भारतPutin Visit India: राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे का दूसरा दिन, राजघाट पर देंगे श्रद्धांजलि; जानें क्या है शेड्यूल

भारतपीएम मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन को भेंट की भगवत गीता, रशियन भाषा में किया गया है अनुवाद

भारत अधिक खबरें

भारतशशि थरूर को व्लादिमीर पुतिन के लिए राष्ट्रपति के भोज में न्योता, राहुल गांधी और खड़गे को नहीं

भारतIndiGo Crisis: सरकार ने हाई-लेवल जांच के आदेश दिए, DGCA के FDTL ऑर्डर तुरंत प्रभाव से रोके गए

भारतबिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र हुआ अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित, पक्ष और विपक्ष के बीच देखने को मिली हल्की नोकझोंक

भारतBihar: तेजप्रताप यादव ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास के खिलाफ दर्ज कराई एफआईआर

भारतबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम हुआ लंदन के वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज, संस्थान ने दी बधाई