Maharashtra Assembly: महाराष्ट्र के चिकित्सा शिक्षा मंत्री हसन मुश्रीफ ने विधानसभा में भाजपा विधायक मोहन मते के एक सवाल का लिखित जवाब दिया है कि राज्य के कुछ सरकारी अस्पतालों में नकली दवाइयों की खरीदी हुई है. मानवता तो यही कहती है कि इस मामले को लेकर हंगामा बरपना चाहिए था क्योंकि किसी मरीज को नकली दवाई देना वास्तव में उसकी हत्या की कोशिश के रूप में देखा जाना चाहिए. आश्चर्य है कि विधानसभा में यह एक सवाल का महज जवाब माना गया और कोई हंगामा नहीं बरपा. कायदे से विधानसभा के माध्यम से आम आदमी के सामने यह जानकारी आनी चाहिए थी कि नकली दवाई खरीदे जाने के मामले में कितने लोगों की गिरफ्तारी अभी तक हो चुकी है और उन्हें सजा दिलवाने के लिए सरकार क्या कर रही है?
जरा सोचिए कि जो गरीब या मध्यमवर्ग का व्यक्ति इस उम्मीद के साथ अस्पताल पहुंचता है कि उसकी जिंदगी बच जाएगी, उस अस्पताल में यदि नकली दवाइयों का उपयोग हो रहा है तो यह कितना बड़ा अपराध है. जांच का विषय केवल इतना नहीं है कि किसने नकली दवाइयों के ऑर्डर दिए, किसने बिना जांच के उन दवाइयों को अस्पताल के स्टोर में पहुंचाया और उससे भी बड़ा सवाल है कि कितने मरीज नकली दवाई खाने को मजबूर हुए और इससे उनकी सेहत को कितना नुकसान हुआ. लेकिन इस बात की उम्मीद कम ही है कि इतने व्यापक पैमाने पर कोई जांच होगी.
इसका बड़ा कारण यह भी है कि देश में नकली दवाइयों के कारोबारी इतने सशक्त हैं कि वे हर विपरीत हवा को अपनी ओर मोड़ सकते हैं. चूंकि जांच पूरी पारदर्शिता से हो तो ऐसे लोग भी फंस सकते हैं जिनकी जड़ें राजनीति में गहरी हों. इसलिए यह मान कर चलिए कि किसी का कुछ खास बिगड़ने वाला नहीं है. यह आशंका इसलिए होती है कि देश में कई जगह नकली दवाइयों के कारोबार पर छापे पड़ते रहे हैं,
कार्रवाई होती रही है लेकिन नकली कारोबार का बाजार थमता नजर नहीं आ रहा है. पिछले साल अकेले पश्चिम बंगाल में एक जगह से साढ़े छह करोड़ रुपए से ज्यादा की नकली दवाइयां जब्त की गई थीं. ये दवाइयां खास तौर पर कैंसर और मधुमेह के उपचार वाली दवाइयों के नकली स्वरूप थे.
उत्तराखंड की कुछ फर्जी कंपनियों पर छापे पड़े थे तो पता चला कि नकली दवाइयां बड़े पैमाने पर तेलांगना में सप्लाई हुई थी. दिल्ली पुलिस ने एक सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया था जो भारत से नकली दवाइयां पड़ोसी मुल्कों में भेजा करता था. इस तरह के छापे हर साल पड़ते हैं, सिंडिकेट का खुलासा होता है लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का आकलन है कि विश्व में नकली दवाइयों का कारोबार करीब 17 लाख करोड़ रुपए का है. 65 प्रतिशत से ज्यादा नकली दवाइयां जीवन के लिए खतरनाक होती हैं. शेष दवाइयां भले ही खतरनाक नहीं होतीं लेकिन उनसे मर्ज ठीक भी नहीं होता और बीमार आदमी कई बार मौत का शिकार हो जाता है.
एसोसिएटेड चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया की एक अध्ययन रिपोर्ट कहती है कि नकली या घटिया दवाइयों से देश भरा पड़ा है. आपको याद ही होगा कि कोविड-19 के समय भी देश भर में नकली रेमडिसीवर के इंजेक्शन की आपूर्ति के कई मामले तक सामने आए थे. महाराष्ट्र में नकली दवाइयों की खरीदी के इस मामले में ऐसी कार्रवाई होनी चाहिए कि कोई अपराधी बच न पाए. लेकिन क्या ऐसा होगा?