Maharashtra Assembly Elections 2024: इस बात में अब कोई शक नहीं है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और पार्टी प्रवक्ता संजय राऊत एक ही पटकथा से तैयार संवाद बोलते हैं. यह बात और है कि राऊत रोज सुबह नौ बजे और उद्धव ठाकरे अवसर के अनुसार बोलते हैं. इस बात की पुष्टि शुक्रवार को आयोजित महाविकास आघाड़ी की रैली से हो जाती है, जहां शिवसेना प्रमुख ने कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) और कांग्रेस राज्य विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए अपना चेहरा घोषित करें, वह समर्थन देने के लिए तैयार हैं.
कुछ दिन पहले राऊत ने भी यही कहा था कि उद्धव ठाकरे के मुकाबले यदि कांग्रेस और राकांपा (शरद पवार गुट) के पास उम्मीदवार है तो बताएं. स्पष्ट है कि कहीं न कहीं शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट अपने नेता के चेहरे पर चुनाव लड़ना चाहता है और उसमें उन्हें राकांपा (शरद पवार गुट) के नेता शरद पवार की सहमति की आवश्यकता है.
यदि पवार का साथ मिलता है तो कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले पर दबाव बनाया जा सकता है और कम से कम मुख्यमंत्री की कुर्सी सुरक्षित की जा सकती है. वहीं दूसरी ओर मतदाताओं के समक्ष यह साबित किया जा सकता है कि शिवसेना(उद्धव ठाकरे गुट) भले ही महाराष्ट्र विकास आघाड़ी का हिस्सा है, मगर वह अपनी पहचान और सर्वोच्च स्थान दोनों रखता है.
हाल ही में लोकसभा चुनाव में शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा और नौ सीटें, कांग्रेस ने 17 पर चुनाव लड़कर 13 तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) ने 10 सीटों पर चुनाव लड़कर आठ सीटें जीती थीं. कुल मिलाकर तीनों के खाते में तीस सीटें आईं. एक निर्दलीय का भी समर्थन मिला.
इन परिणामों से दो बातें साफ हुईं. एक, गठबंधन में तीनों दलों को लाभ हुआ, दूसरी, यह भी स्पष्ट हुआ कि किसे अधिक किसे कम फायदा हुआ. कांग्रेस को लगा कि उसकी पुरानी ताकत वापस आई तो शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) को अपनी जमीन बचाने का भरोसा पैदा हुआ. वहीं राकांपा (शरद पवार गुट) को खुद को ‘किंग मेकर’ मानने में गुरेज नहीं हुआ.
इसी के बाद उत्साहित कांग्रेस ने आगे बढ़कर विधानसभा चुनाव की पिच पर खेलना आरंभ किया. बार-बार कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष पटोले ने राज्य विधानसभा की 288 सीटों तक पर चुनाव लड़ने की चर्चा की. हालांकि उनकी बातों को पार्टी के राज्य प्रभारी रमेश चेन्नीथला से लेकर हाईकमान तक ने अधिक महत्व नहीं दिया.
किंतु कांग्रेस की महत्वाकांक्षा ने शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) को चिंता में डाल दिया. इसी के चलते दिल्ली के चक्कर लगाने में भरोसा नहीं करने वाले शिवसेना प्रमुख ठाकरे तीन दिन तक राष्ट्रीय राजधानी में न केवल रुके, बल्कि अनेक दलों के नेताओं से मिले. यद्यपि अपने दौरे में उन्हें किसी से कोई आश्वासन नहीं मिला और उन्होंने भी सार्वजनिक रूप से अपनी मंशा व्यक्त नहीं की.
मगर इसका मतलब यह भी नहीं रहा कि पूरी यात्रा खामोशी में ही पूरी हो गई. वैसे मेल-मुलाकातों से अलग कांग्रेस साफ कह रही है कि चुनाव से पहले किसी नेता का नाम घोषित करना उसकी परंपरा नहीं है, जिसे उसने लोकसभा चुनाव तक कायम रखा और आगे भी निभाएगी. यदि लोकसभा चुनाव के परिणामों के सापेक्ष विधानसभा चुनावों की संभावनाओं को रखा जाए तो उसमें भी कहीं न कहीं यह संकेत मिल रहे हैं कि आगे भी महाविकास आघाड़ी में कांग्रेस और राकांपा(शरद पवार गुट) लाभ में रहेंगे.
संभव है कि दोनों ही दल शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) की तुलना में कुछ कम-ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ें, लेकिन परिणामों के हिसाब से वे लाभ में रह सकते हैं. लोकसभा चुनाव के बाद यह बात शिवसेना को अच्छी तरह समझ में आ रही है. यदि वह चुनाव से पहले दबाव बनाने की स्थिति में नहीं रहेगी तो परिणामों के बाद उसकी स्थिति अधिक असहाय हो जाएगी.
वहीं दूसरी ओर यदि महाविकास आघाड़ी के मुख्यमंत्री का चेहरा उद्धव ठाकरे बनते हैं तो शिवसेना (शिंदे गुट) थोड़ी मुश्किल में आ जाएगी, क्योंकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) से राज ठाकरे पहले ही अलग और लगभग 250 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं. ऐसे में शिवसेना का शिंदे गुट जहां-जहां ठाकरे गुट के आमने-सामने होगा, वहां-वहां उसे सहानुभूति और शिवसेना के परंपरागत मतों के नाम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. इसी प्रकार यदि राज्य का चुनाव सीधे तौर पर ठाकरे विरुद्ध शिंदे हो जाता है तो भी महाविकास आघाड़ी को सीधा लाभ मिल सकेगा.
इस स्थिति में भारतीय जनता पार्टी के पास अधिक विकल्प नहीं हैं. कुल जमा जहां महाविकास आघाड़ी शिवसेना और राकांपा के मूल नेताओं की छवि के साथ सामने आएगी, तो दूसरी ओर महागठबंधन में टूटने के बाद आए नेता दिखाई देंगे, जिन पर लोकसभा चुनाव से भी अधिक हमले किए जाएंगे.
महाविकास आघाड़ी की तरह महागठबंधन के घटक किसी चेहरे विशेष को लेकर आग्रही नहीं हैं. उनकी राजनीति समझौते से जुड़ी है. यदा-कदा गठबंधन के सहयोगी राकांपा (अजित पवार गुट) के नेता अजित पवार जरूर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री बनने का सपना सार्वजनिक कर देते हैं.
किंतु उन्हें यह मालूम है कि चुनाव परिणामों के बाद उनका राजनीतिक वजन कितना होगा. इसलिए विधानसभा चुनाव के पहले मुख्यमंत्री पद का चेहरा फिलहाल महाविकास आघाड़ी की अपनी समस्या है, जिसे भविष्य की चिंता में शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट प्रमुखता से उभार रहा है. उसे पिछले दिनों की पार्टी की फूट से राकांपा (शरद पवार गुट) से अधिक नुकसान हुआ.
इसी कारण पिछले पचास सालों में भगवा मतों के अलावा किसी अन्य वोट का स्वप्न नहीं देखने वाली पार्टी पिछले पांच साल से धर्मनिरपेक्ष मतों की चिंता करने लगी है. वह यह मान रही है कि लोकसभा चुनाव में उसे मुस्लिम मतदाताओं ने मत दिया, जिनकी उसने पहले कभी अपेक्षा नहीं की. यहां तक कि उद्धव ठाकरे कोरोना काल में अपनी सरकार की मुस्लिमों को दी सेवाओं को भी गिनाने लगे हैं.
कुछ यही वजह है कि राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी आघाड़ी के कार्यकाल के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के फेसबुक लाइव का बार-बार जिक्र कर रहे हैं और उन्हें बंद कमरे से काम करने वाला नेता बता रहे हैं. फिलहाल चेहरा मतदाता के लिए कितना महत्वपूर्ण होगा, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे. हालांकि वह राजनीति में हर एक चेहरे की अपनी चिंता कभी समझ नहीं पाएंगे.