लाइव न्यूज़ :

किसानों के लिए बहुत सारी योजनाएं...ढेरों दावे, फिर भी क्यों नहीं रूक रहे आत्महत्या के मामले?

By विश्वनाथ सचदेव | Published: September 29, 2022 11:58 AM

संसद में इसी साल सरकार ने जानकारी दी थी कि 2016 से 2020 के बीच देश में 17 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की. वहीं, इस साल जनवरी से लेकर जुलाई तक में केवल महाराष्ट्र में 600 से अधिक किसानों ने मौत को गले लगा लिया.

Open in App

हाल में एक उपन्यास पढ़ा मैंने- ढलती सांझ का सूरज. मधु कांकरिया के इस उपन्यास में सिमटी (या फैली?) है देश के उन किसानों की व्यथा-कथा जो कहलाते तो अन्नदाता हैं, पर अभावों की मार से हारकर मरने के लिए अभिशप्त हैं. इस उपन्यास में एक ऐसे बेटे के माध्यम से इन अभिशप्त आत्माओं से परिचय कराया गया है जो बीस साल पहले अपनी विधवा मां और अपना देश छोड़कर सुविधा का जीवन जीने के लिए विदेश चला गया था. 

बीस साल बाद लौटकर आया तो सही, पर तब वह अपनी मां को नहीं देख पाया था! मर चुकी थी उसकी मां. पर उन किसानों की जिंदगी में वह जिंदा थी जिनकी सेवा को उसने अपनी जिंदगी बना लिया था. परेशान है बेटा यह सोच कर ‘किसान मौत को गले क्यों लगाता है? शायद तभी जब उम्मीद से भी उम्मीद नहीं रह जाती होगी.’ अपने किसान मामा से वह यही सवाल पूछता है और जब मामा कहता है, ‘दलदल में फंसा किसान क्या एक दिन मरता है? हर दिन वह थोड़ा-थोड़ा मरता है... असफलता से नहीं डरता वह, हिम्मत हार जाता है वह जब अपनी क्षमता पर विश्वास खो देता है. हमारा सिस्टम किसान को लगातार यही अहसास करवा रहा है...’

कहीं भीतर तक हिला देता है यह उपन्यास. उस दिन मैं इसे पढ़ते हुए इसी अहसास को जी रहा था. तभी एक खबर सामने आ गई. एक किसान की आत्महत्या की खबर थी यह. महाराष्ट्र के इस 42 वर्षीय किसान ने मरने से पहले देश के प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखी थी.

इसी साल की शुरुआत में संसद में सरकार ने यह जानकारी दी थी कि 2016 से 2020 के चार सालों में देश में 17 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की थी. जनवरी से लेकर जुलाई 2022 तक की अवधि में अकेले महाराष्ट्र में 600 से अधिक किसान जिंदगी की लड़ाई हार गए थे.   आज देश में किसानों के लिए बहुत सारी योजनाएं चल रही हैं. ढेरों दावे किए जा रहे हैं किसानों के कल्याण के बारे में. पिछले पांच-सात दशकों में किसानों की स्थिति में कुछ सुधार भी आया ही होगा, पर यह हकीकत हमें सोचने के लिए बाध्य क्यों नहीं करती कि देश में होने वाली आत्महत्याओं में बड़ी संख्या कृषकों और कृषि-मजदूरों की है. 

आज हम अपने ही नहीं, दुनिया के कई देशों के लोगों के लिए भी खाद्यान्न का उत्पादन करने में सक्षम हैं. लेकिन इस सबके बावजूद किसानी से जीवन-यापन करने वालों के जीवन में अपेक्षित खुशहाली क्यों नहीं आ पा रही? पांच साल पहले उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा था ‘यह सुनिश्चित करना सरकार का काम है कि किसानों को आत्महत्या न करनी पड़े.’ पर इसके बावजूद साल-दर साल यह संख्या कम नहीं हो रही. आखिर क्यों?

टॅग्स :किसान आत्महत्या
Open in App

संबंधित खबरें

भारतब्लॉग: थम रही खेती, बढ़ रहा पलायन, खतरे में खाद्य सुरक्षा

भारतFarmers protest: 'हम पाकिस्तान से नहीं हैं' किसानों का छलका दर्द

भारत"मोदी सरकार ने 10 साल में उद्योगपतियों का 7.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया", राहुल गांधी ने भाजपा राज में किसानों की आत्महत्या को मुद्दा बनाते हुए कहा

भारतKarnataka: कर्ज और सूखे के कारण 2023 में कर्नाटक में 456 किसानों ने की आत्महत्या

भारतकिसानों से किए गए वादे कागजी ही क्यों रह जाते हैं?

भारत अधिक खबरें

भारतVIDEO: 'मैं AAP को वोट दूंगा, अरविंद केजरीवाल कांग्रेस को वोट देंगे', दिल्ली की एक चुनावी रैली में बोले राहुल गांधी

भारत'मोदी सरकार पाकिस्तान के परमाणु बमों से नहीं डरती, पीओके वापस लेंगे', झांसी में बोले अमित शाह

भारतUP Lok Sabha election 2024 Phase 5: राजनाथ, राहुल और ईरानी की प्रतिष्ठा दांव पर!, लखनऊ, रायबरेली, अमेठी, कैसरगंज, फैजाबाद, कौशांबी सीट पर 20 मई को पड़ेंगे वोट

भारतस्वाति मालीवाल को लेकर पूछे गए सवाल पर भड़क गए दिग्विजय सिंह, बोले- मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी

भारतUP Lok Sabha Elections 2024: भाजपा को आखिर में 400 पार की आवश्‍यकता क्‍यों पड़ी, स्वाति मालीवाल को लेकर पूछे सवाल का दिग्विजय सिंह ने नहीं दिया जवाब