किसानों से किए गए वादे कागजी ही क्यों रह जाते हैं?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: September 14, 2023 08:58 AM2023-09-14T08:58:53+5:302023-09-14T09:05:03+5:30

किसानों की आत्महत्या पर लगातार बहस होती है। सरकारें बदल जाती हैं लेकिन किसानों की आत्महत्याओं के मामले आने खत्म नहीं होते।

Why do the promises made to farmers remain only on paper? | किसानों से किए गए वादे कागजी ही क्यों रह जाते हैं?

फाइल फोटो

Highlightsकिसानों की आत्महत्या पर लगातार बहस होती है, सरकारें बदलती हैं लेकिन किसानों की समस्या खत्म नहीं होतीहर सरकार खुद को किसानों की हितैषी बताती है बावजूद उसके किसान लगातार जान दे रहे हैंऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों हो रही है उनकी अनदेखी और कैसे खत्म की जाए इस अनदेखी को

किसानों की आत्महत्या पर लगातार बहस होती है। सरकारें बदल जाती हैं लेकिन किसानों की आत्महत्याओं के मामले आने खत्म नहीं होते। हर सरकार खुद को किसानों की हितैषी बताती है फिर भी किसान जान दे रहे हैं। आखिर क्यों हो रही है उनकी अनदेखी? बड़ा सवाल यह भी है कि इस अनदेखी को कैसे खत्म किया जाए।

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में तो किसानों के लिए साल 2023 बेहद खराब साबित हुआ है। सरकार और प्रशासन के तमाम दावों और वादों के बावजूद महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या के मामले थम नहीं रहे हैं। हाल के आंकड़े खुद इस भयावह परिस्थिति की तस्वीर पेश कर रहे हैं। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में इस साल 31 अगस्त तक 685 किसानों ने आत्महत्या की है, जिनमें से सबसे ज्यादा 186 मौतें राज्य के कृषि मंत्री धनंजय मुंडे के गृह जिले बीड में हुई हैं।

अक्सर यह माना जाता है कि खेती एक जोखिम भरा व्यवसाय है। यही वजह है कि युवा खेती के बजाय नौकरी करना पसंद करते हैं। नौकरी में एक निश्चित आमदनी की गारंटी होती है, जबकि कृषि में कितनी आमदनी होगी या कितना नुकसान होगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं होती है। कई बार तो किसान अपनी लागत तक भी नहीं निकाल पाते हैं। वहीं कृषि में होने वाले नुकसान के कारण ही किसान आत्महत्या करने को मजबूर होते हैं।

पिछले कुछ सालों से प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसान आर्थिक संकट में हैं। एक किसान को बैंक से कर्ज लेकर फसल बोना पड़ता है। कर्ज मिलने में देरी होने से ज्यादातर किसानों को निजी साहूकारों से उधार लेना पड़ता है। किसान को उर्वरक, बीज, कीटनाशक जैसे आवश्यक सामानों की समस्या से भी जूझना पड़ता है।

किसानों के लिए परिवार, बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा है। निजी साहूकार कर्ज वापसी के लिए किसानों को मजबूर करते हैं। हर सरकार किसानों को लेकर बड़े-बड़े वादे तो करती है लेकिन ये वादे कागजी ही रह जाते हैं।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी ‘किसान आत्महत्या मुक्त महाराष्ट्र’ की घोषणा की, लेकिन जमीन पर इसका बहुत ज्यादा असर होता नहीं दिख रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार की ओर से किसान हित में तमाम तरह के कदम उठाने के दावे किए जाते हैं, इसके बावजूद आत्महत्या की घटनाएं क्यों हो रही हैं? इस पर गंभीरता से विचार करके सरकारी अमले को सक्रिय होना होगा।

फसलों का उचित मूल्य दिलवाना होगा, सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ-साथ मुआवजों का समय पर उचित वितरण भी होना चाहिए। सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों के लिए तत्काल कोई ठोस योजना भी बनानी होगी।

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