Karur stampede: अभिनेता से नेता बने तमिलगा वेत्री कषगम (टीवीके) प्रमुख जोसेफ विजय के नेतृत्व में तमिलनाडु के करूर में आयोजित एक राजनीतिक रैली में शनिवार को मची भगदड़ से मरने वालों की संख्या 40 हो गई है. वहीं 67 से अधिक घायल हैं. राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का कहना है कि प्रदेश के इतिहास में किसी राजनीतिक दल के कार्यक्रम में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की जान कभी नहीं गई. यह घटना तब हुई जब विजय को सुनने के लिए भारी भीड़ जमा हुई. बताया जा रहा है कि सभा की अनुमति दोपहर 3 बजे से रात 10 बजे तक की थी,
लेकिन भीड़ सुबह 11 बजे से ही जुटनी शुरू हुई और विजय शाम 7 बजकर 40 मिनट पर पहुंचे. तब तक भीड़ बिना पर्याप्त भोजन और पानी के ही इंतजार करती रही. विजय के पहुंचते ही उन्हें सुनने के लिए भीड़ बेकाबू होकर आगे बढ़ने लगी. दबाव बढ़ने पर लोग नीचे गिरे और बेहोश हुए. राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया है.
मृतकों के परिवारों को 10 लाख रुपए का मुआवजा मिलेगा. घायलों को एक लाख रुपए का मुआवजा मिलेगा. यह सारा हाल-हवाल उस राज्य की घटना का है, जहां अक्सर फिल्मी कलाकारों के प्रति दीवानगी देखी जाती है, जिसके चलते वहां भगदड़ कोई नई बात नहीं है. कलाकारों की एक झलक पाने के लिए प्रशंसक किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं.
अब यदि करूर में आयोजित एक लोकप्रिय अभिनेता की रैली के लिए स्टेडियम मांगा गया था तो वह क्यों नहीं दिया गया. आयोजन की सारी तैयारियां दस हजार लोगों के हिसाब से की गईं, लेकिन कार्यक्रम में पहुंचने वालों की संख्या करीब पच्चीस हजार हो गई. पांच सौ पुलिसकर्मियों का इंतजाम दस हजार लोगों के हिसाब से किया गया,
मगर जब दोगुने से अधिक लोग दिखाई देने लगे तो व्यवस्थाओं में परिवर्तन क्यों नहीं किया गया? तमिलनाडु की सरकार इतनी बड़ी दुर्घटना को पहली घटना मानकर गंभीरता कम क्यों कर रही है? समूचा मामला एक राजनीतिक दल से जुड़ा होने के कारण सत्ताधारी और विपक्ष दुर्घटना को अपने-अपने चश्मे से देख रहे हैं.
यह सच ही है कि राजनीतिक-धार्मिक-सामाजिक आयोजनों में अक्सर लापरवाही होती है. विशेष रूप से दक्षिण भारत में समर्थकों के जुनून पर नियंत्रण रखना आसान नहीं होता है. फिर भी विजय अपनी तीन रैलियों के बाद चौथी रैली के दौरान अपने अनुभव से जान-माल के नुकसान की संभावना पर विचार कर सकते थे.
अति आत्मविश्वास के शिकार उनके प्रबंधक आम जनता को भूल गए. सीधी सड़क का लाभ देखकर उसकी परेशानी को नजरअंदाज किया. यह साधारण भूल नहीं कही जा सकती है. राज्य सरकार ने न्यायिक जांच का आदेश दिया है,
लेकिन उसके नतीजों से आगे बढ़कर सार्वजनिक गतिविधियों में नियम-कायदों को अधिक मजबूत बनाना होगा. उन्हें राजनीतिक दबाव या लाभ-हानि से परे इंसान की जान की कीमत समझनी होगी. अन्यथा आपदाएं आगे भी आती रहेंगी, बस अंतर इतना ही होगा कि स्थान बदलते रहेंगे.