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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सच्चाई को स्वीकार करें इमरान 

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: August 28, 2019 09:41 IST

कश्मीर के सवाल पर यों ही सारी दुनिया भारत के साथ दिखाई पड़ रही है. ऐसी स्थिति में इमरान खान का बौखला जाना स्वाभाविक है. उन्होंने परमाणु-युद्ध पर भी उंगली रख दी और कश्मीर के लिए आखिरी सांस तक लड़ने का ऐलान कर दिया.

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ठळक मुद्देअमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने साफ-साफ कह दिया है कि कश्मीर पर उनके द्वारा मध्यस्थता अनावश्यक है. भारत और पाक बातचीत से अपना मामला खुद सुलझा लेंगे. इमरान खान को जो थोड़ी-बहुत आशा अमेरिका से बंधी थी, वह भी अब हवा हो गई है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने साफ-साफ कह दिया है कि कश्मीर पर उनके द्वारा मध्यस्थता अनावश्यक है. भारत और पाक बातचीत से अपना मामला खुद सुलझा लेंगे. यानी इमरान खान को जो थोड़ी-बहुत आशा अमेरिका से बंधी थी, वह भी अब हवा हो गई है. इस्लामी देशों ने पहले ही कश्मीर पर पाक को ठेंगा दिखा दिया है लेकिन अफगानिस्तान के बहाने पाकिस्तान ने अमेरिका को अपने लिए अटका रखा था, वह सहारा भी ढह गया. 

अब सिर्फ चीन रह गया है. उसे पाकिस्तान ने कश्मीर की जो 5000 वर्ग मील जमीन 1963 में भेंट की थी, उसका एहसान अब वह दबी जुबान से चुका रहा है. चीन को पता है कि उसके हांगकांग और शिंङिायांग में जो दशा है, वह कश्मीर के मुकाबले कई गुना बदतर है. यह गनीमत है कि इन दोनों मामलों को भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठा रहा है. 

कश्मीर के सवाल पर यों ही सारी दुनिया भारत के साथ दिखाई पड़ रही है. ऐसी स्थिति में इमरान खान का बौखला जाना स्वाभाविक है. उन्होंने परमाणु-युद्ध पर भी उंगली रख दी और कश्मीर के लिए आखिरी सांस तक लड़ने का ऐलान कर दिया. मैं उनकी मजबूरी समझता हूं. यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनका प्रधानमंत्नी की कुर्सी पर बने रहना मुश्किल हो जाता. लेकिन अब बेहतर होगा कि पाकिस्तान यथार्थ को स्वीकार करे और वह सब कुछ करने से बाज आए, जिसके कारण कश्मीर में खून की नदियां बहने लगें. 

यदि कश्मीर में हिंसा भड़काई जाएगी तो प्रतिहिंसा किसी भी हद तक पहुंच सकती है. यह बहुत दुखद होगा. कश्मीर में 5 अगस्त को जो कुछ हुआ है, उससे आम कश्मीरी का रत्तीभर भी नुकसान नहीं होगा. हां, पाकिस्तान और कुछ कश्मीरी नेताओं का धंधा जरूर बंद हो जाएगा. 

आम कश्मीरी का खून न बहे यह इतना जरूरी है कि उसके लिए यदि कुछ दिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्नता स्थगित हो जाए तो हो जाए. कश्मीरियों की जान ज्यादा प्यारी है या नेताओं को अपनी जुबान ज्यादा प्यारी है? फिर भी सरकार को हर कश्मीरी के लिए ज्यादा से ज्यादा सुविधा जुटानी चाहिए ताकि वह तहेदिल से यह समङो कि जो हुआ है, वह उसके लिए बेहतर हुआ है.

टॅग्स :इमरान खानजम्मू कश्मीरडोनाल्ड ट्रंप
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