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हरीश गुप्ता का ब्लॉगः मोदी-पवार के बीच हुई थी अकेले में बातचीत !

By हरीश गुप्ता | Updated: May 19, 2022 10:31 IST

प्रधानमंत्री के कथन से दो बातें स्पष्ट हैं: पहली, विपक्ष का वह नेता मोदी के बहुत करीब है और उसका कद व योग्यता ऐसी है कि वह उनसे ऐसे व्यक्तिगत मुद्दों पर बात कर सकता है। दूसरा, जो लोग सोच रहे हैं कि वर्ष 2025 में 75 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने के बाद मोदी अपने आपको अलग कर लेंगे, वे उनके मनोभावों को नहीं जानते हैं।

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राजनीतिक पंडित उस विपक्षी नेता का नाम जानने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, जिसका संदर्भ मोदी ने गुजरात के भरूच में जनता को संबोधित करते हुए दिया था।

प्रधानमंत्री ने कहा था, 'एक बार एक वरिष्ठ नेता, जो हमेशा हमारा राजनीतिक रूप से विरोध करते हैं, मुझसे मिले। मैं उनका आदर करता हूं। वे कुछ मुद्दों को लेकर मुझसे मिलने आए। उन्होंने कहा कि देश ने आपको दो-दो बार प्रधानमंत्री बना दिया, अब और आप क्या चाहते हैं। उनको लगता है कि मेरा दो बार प्रधानमंत्री बन जाना ही बहुत है। लेकिन वे नहीं जानते हैं कि मोदी अलग ही मिट्टी का बना है। गुजरात की इस मिट्टी ने उसको बनाया है। मैं आराम नहीं कर सकता।'

प्रधानमंत्री के कथन से दो बातें स्पष्ट हैं: पहली, विपक्ष का वह नेता मोदी के बहुत करीब है और उसका कद व योग्यता ऐसी है कि वह उनसे ऐसे व्यक्तिगत मुद्दों पर बात कर सकता है। दूसरा, जो लोग सोच रहे हैं कि वर्ष 2025 में 75 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने के बाद मोदी अपने आपको अलग कर लेंगे, वे उनके मनोभावों को नहीं जानते हैं।

मोदी के लिए दो कार्यकाल पर्याप्त नहीं हैं क्योंकि वे अलग ही मिट्टी के बने हैं। मोदी की इस दृढ़ता में कुछ भी गलत नहीं है। कोई भी प्रधानमंत्री खुद पद छोड़ना नहीं चाहता लेकिन सभी ने बीच-बीच में छुट्टियां ली हैं और अपने परिवार के साथ समय बिताया है। लेकिन राजनीतिक पंडितों को यह बात समझ में नहीं आ रही है कि मोदी ने इस नितांत निजी बातचीत को इस समय सार्वजनिक क्यों किया और विपक्ष का वह कौन सा नेता है जिसने मोदी के साथ ऐसी निजी बातचीत की।

मोदी के करीबी सूत्रों का कहना है कि शरद पवार, कमल नाथ, गुलाम नबी आजाद, भूपिंदर सिंह हुड्डा जैसे कई विपक्षी नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध हैं। मोदी ने ये रिश्ते तब विकसित किए थे जब वे 12 वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। लेकिन शरद पवार के अलावा और किसी के मोदी के साथ ऐसे नजदीकी संबंध नहीं हैं।

इस मजबूत संबंध की एक कहानी भी है: मोदी ने वर्ष 2006 में किसी समय पवार से संपर्क किया था जब पवार खाद्य मंत्री थे। वे चाहते थे कि गुजरात कैडर के उनके विश्वस्त आईएएस अधिकारी पीके मिश्रा को उनके अधीनस्थ मंत्रालय में सचिव नियुक्त किया जाए।

मिश्रा को सचिव के रूप में पैनलबद्ध किया गया था लेकिन उनके मोदी के साथ संबंध के कारण यूपीए का कोई भी मंत्री उन्हें अपने मंत्रालय में लेना नहीं चाहता था।  पवार ने उन्हें उपकृत किया और तब से मोदी-पवार के बीच अच्छे संबंध हैं।

चौंकाने वाला खुलासा

किसी को भी इस पर आश्चर्य हो सकता है कि मोदी ने क्यों अपनी निजी बातचीत को सार्वजनिक किया और वह भी तब जब लोकसभा के चुनाव अभी दो वर्ष दूर हैं। मोदी सरकार भी अपने आठ साल पूरे होने का जश्न धूमधाम से मनाने की तैयारी में है। क्या मोदी अपने भीतर-बाहर के विरोधी नेताओं को यह बताना चाहते हैं कि उन्हें निकट भविष्य में उनकी जगह लेने का सपना नहीं देखना चाहिए।

चाहे वे राहुल गांधी हों, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, के. चंद्रशेखर राव या यहां तक कि शरद पवार भी, उन्होंने एक सांस में ही सभी को यह संकेत दे दिया कि वे तब तक जनता की सेवा करने का इरादा रखते हैं जब तक कि वे लोगों की पूरी सौ प्रतिशत भलाई का लक्ष्य हासिल नहीं कर लेते।

मोदी ने इशारों में कह दिया है कि विरोधियों को उनकी जगह लेने की रणनीति बनाने में अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। 75 वर्ष की कटऑफ डेट उन पर नहीं बल्कि भाजपा के अन्य नेताओं पर लागू होती है। यह वह कटऑफ डेट है जिसे भाजपा ने वर्ष 2014 में निर्धारित किया था और दर्जनों वरिष्ठ भाजपा नेताओं को एक झटके में ही सेवानिवृत्त कर दिया गया था।

ये दिल मांगे मोर

मोदी प्रधानमंत्री के रूप में दो से अधिक कार्यकाल क्यों चाहते हैं? उन्होंने अपने भरूच के भाषण में इस बारे में जो कहा उसे आश्चर्यजनक रूप से राष्ट्रीय मीडिया में रिपोर्ट नहीं किया गया।

मोदी ने कहा, 'मेरा सपना है संतृप्ति, आगे बढ़ना और सौ प्रतिशत लक्ष्य हासिल करना। सरकारी मशीनरी खुद को अनुशासित करने की आदत डाले।' मोदी ने खुलासा किया कि वे जब तक संतृप्ति की अवस्था अर्थात् सौ प्रतिशत लक्ष्य को हासिल नहीं कर लेते, तब तक आराम नहीं कर सकते।

इस खुलासे में नया कुछ नहीं है क्योंकि नेहरू से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक उनके किसी भी पूर्ववर्ती ने कभी नहीं कहा कि वे आराम करना और सेवानिवृत्त होना चाहते हैं।

वाजपेयी ने तो यहां तक कहा था कि वे न तो टायर्ड हैं और न ही रिटायर्ड हैं, जो तत्कालीन पीएम इन वेटिंग पर कटाक्ष था। लेकिन मोदी की सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी यह थी कि वे चाहते हैं कि सरकारी मशीनरी को 'अनुशासन' की आदत हो। जाहिर है कि वे चाहते हैं कि नौकरशाही अनुशासित हो और इंदिरा गांधी को छोड़कर और किसी ने पहले ऐसा नहीं कहा था।

2014 में जब से मोदी सत्ता में आए, वे नौकरशाही के कामकाज को चुस्त-दुरुस्त बनाते रहे हैं। उनके कुछ कदमों ने तो नौकरशाही को झकझोर कर रख दिया है। वे दिन गए जब नौकरशाह रातों को पार्टियां किया करते थे, पांचसितारा होटलों में लंच करते थे और उपहारों व विदेश यात्राओं का लाभ उठाते थे।

उन्होंने उपसचिव से लेकर सचिव स्तर तक जांच पड़ताल के बाद प्रवेश प्रणाली लागू की है ताकि जनकल्याणकारी योजनाओं का सौ प्रतिशत फायदा पहुंचाया जाना सुनिश्चित किया जा सके। वे अनथक काम कर रहे हैं और ऊंची तनख्वाह व सुरक्षित भविष्य हासिल करने वाले नौकरशाहों के पास खाली बैठने के लिए समय नहीं है। उन्हें अनुशासित होने और अपने दायित्व को पूर्ण करने की आवश्यकता है।

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