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ब्लॉग: भारतीय कृषि के महान स्तंभ: स्वामीनाथन

By अरविंद कुमार | Updated: September 30, 2023 15:26 IST

2004 में भारत सरकार ने उनकी अध्यक्षता में राष्ट्रीय कृषक आयोग गठित किया, जिसकी 5 रिपोर्टें उनकी श्रम साधना और ज्ञान को दर्शाती हैं।

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प्रोफोसर एमएस स्वामीनाथन दो साल और रहते तो उनका सफल एक सदी का रहता लेकिन उन्होंने भारतीय कृषि क्षेत्र को जो कुछ दिया, उसने उनको अमर बना दिया है। भारतीय कृषि क्षेत्र के महान स्तंभ के रूप में वे हमेशा याद रखे जाएंगे।

कोरोना काल में जब तमाम देशों में खाद्यान्न संकट था तो भारत दाता की भूमिका में था। यह स्थिति स्वामिनाथनजी जैसे कृषि नायकों और किसानों के श्रम की देन रही। कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाने और कायकल्प में उनका महान योगदान था। तमिलनाडु के कुंभकोणम में 7 अगस्त 1925 को एक स्वाधीनता सेनानी परिवार में उनका जन्म हुआ।

पिता डॉ. एम.के. संबासिवम विख्यात सर्जन, महात्मा गांधी के अनुयायी और स्वदेशी आंदोलन के नायक थे। खुद के विदेशी कपड़ों को जला कर पिता ने विदेशी आयात पर निर्भरता से मुक्ति और ग्रामोद्योग के विकास का नारा दिया। इन बातों का बालक स्वामीनाथन के दिल पर गहरा असर पड़ा।

1943 के बंगाल के भयावह अकाल में हुए 20 लाख मौतों ने स्वामीनाथन के जीवन की राह बदल दी। अपना पूरा जीवन कृषि क्षेत्र को समर्पित करने का फैसला प्रो. स्वामीनाथन ने कर लिया। वे कृषि शिक्षा की ओर बढ़े।

गृह राज्य में आरंभिक पढ़ाई के बाद 1947 में दिल्ली में पूसा इंस्टीट्यूट में उन्होंने आनुवंशिकी और पादप प्रजनन में स्नातकोत्तर में दाखिला ले लिया। इसी दौरान भारती पुलिस सेवा में उनका चयन हो गया लेकिन उन्होंने किसानों के लिए काम करने का फैसला किया।

नीदरलैंड में शोध किया और विदेश से काफी डिग्रियां ली ज्ञान हासिल किया. अमेरिका में काफी अच्छी नौकरी मिली पर 1954 में वे भारत लौट आए और आखिरी सांस तक देश की सेवा का फैसला कर लिया। विदेशों में हासिल ज्ञान और कौशल का उपयोग देश के लिए ही किया।

भारत में हरित क्रांति के नायकों प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन, डॉ. एम.वी. राव, डॉ. एनजीपी राव, प्रो. आर.बी. सिंह जैसे कई बड़े वैज्ञानिक आते हैं पर केंद्रीय भूमिका स्वामीनाथनजी की ही थी। उन्होंने गेहूं क्रांति को जमीन पर उतारने का काम किया, जिसकी बदौलत गेहूं उत्पादन चार गुना बढ़ा इसी से हमारे किसानों ने 1970 की अकाल की भविष्यवाणी को झूठा साबित किया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने उस दौरान उनके विचारों को जमीन पर उतारने में पूरा साथ दिया। स्वामीनाथनजी ने उस दौरान महान वैज्ञानिक डॉ. नॉर्मन बोरलॉग को भारत आमंत्रित किया और गेहूं की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में उनके साथ काम किया।

18 हजार टन मैक्सिकन गेहूं बीज का 1966 में भारत में आयात हो इस फैसले को अमलीजामा पहनाने का काम बहुत से विरोध के बाद भी किया।

1967 में कल्याण सोना, सोनालिका और कुछ अन्य गेहूं जैसे मैक्सिकन गेहूं के कुछ सलेक्शन से तैयार हुए, जिसकी औसत पैदावार 35 से 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर थी। इसी तरह चावल उत्पादन में आयातित बीज आईआर-8 फिलीपींस से और ताईचुंग नेटिल-1 ताईवान से मंगाए गए। लेकिन बीज ही काफी नहीं थे, हमारे कृषि वैज्ञानिकों और किसानों ने हरित क्रांति को जमीन पर उतारने के लिए बहुत श्रम किया।

इन कामों के लिए उनको दुनिया भर में ख्याति मिली। 1971 में ही उनको मेगसेसे पुरस्कार मिला था। 1967 से 1989 के बीच उनको पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण मिला। उनको दुनिया भर के विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की 80 मानद उपाधियां मिली।वे जिस भूमिका में रहे, खेती बाड़ी हमेशा केंद्र में रही।

2007 से 2013 के दौरान वे राज्य सभा में मनोनीत सदस्य रहे तो उनके भाषण कृषि संबंधी विषयों पर हमेशा समाधान वाले होते थे। वे पहले नायक थे जिन्होंने कृषि क्षेत्र के समक्ष जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के प्रति सबसे पहले आगाह किया। कुपोषण और ग्रामीण गरीबी को दूर करने की उनकी चिंता हमेशा बनी रही।

2004 में भारत सरकार ने उनकी अध्यक्षता में राष्ट्रीय कृषक आयोग गठित किया, जिसकी 5 रिपोर्टें उनकी श्रम साधना और ज्ञान को दर्शाती हैं। उनकी एक अहम सिफारिश किसानों को फसलों का वाजिब दाम अभी भी आधी अधूरी ही स्वीकारी गई है। कई अन्य सिफारिशों को भी जमीन पर उतरने का इंतजार है। 

टॅग्स :FarmersभारतAgriculture DepartmentIndia
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