साल दर साल देश के विकास के साथ अग्निकांड के सिलसिले कम नहीं हो रहे हैं। हर राज्य में साल भर में कई बड़ी घटनाएं सामने आ जाती हैं। वहीं छोटी वारदातें तो गली-मोहल्लों में सिमट कर रह जाती हैं। पिछले चौबीस घंटे में दो मामले- एक गुजरात के राजकोट और दूसरा देश की राजधानी नई दिल्ली से सामने आया। दोनों स्थानों पर मरने वालों में अधिक संख्या बच्चों की है। यदि राजकोट का मामला देखा जाए तो वह एक ‘गेम जोन’ का है, जो आधुनिक दौर में बच्चों के आकर्षण का नया केंद्र है।
वे कहीं अलग और कहीं मॉल में पाए जाते हैं। यह बात तय है कि उन्हें अचानक ही कोई जोड़-तोड़ से तैयार नहीं किया जाता है। उन्हें किसी नक्शे या फिर कोई नक्शा के एक भाग में बनाकर तैयार किया जाता है। उन्हें बनाने का उद्देश्य भी बहुत ही साफ होता है कि वे बड़ी संख्या में बच्चों और युवाओं के आकर्षण के केंद्र बने रहेंगे। इसलिए उनमें अपने आगंतुकों को आकर्षित करने का काफी इंतजाम होता है।
इसमें सुरक्षा के बारे में भी विचार करना जरूरी होता है। किंतु आम तौर पर देखने में यह आता है कि वहां अव्यवस्था फैलने से रोकने के लिए सुरक्षाकर्मियों की व्यवस्था की जाती है, लेकिन संभावित आपदा को लेकर ठोस व्यवस्था नहीं होती है। वहां अक्सर मुसीबत के रूप में कभी भगदड़ तो कभी आग लगना ही सामने आता है, मगर दुर्भाग्य से उनसे बचाव के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है।
हालांकि इन घटनाओं को रोकने के लिए सरकारी तंत्र में बहुत सारे नियम और कायदे होते हैं। फिर भी उनसे बचने के रास्ते कई मिल जाते हैं। यह भी देखने में आता है कि अग्निकांड के बाद जांच में बहुत सालों से इमारतों का ‘फायर ऑडिट’ नहीं हुआ मालूम पड़ता है। कुछ जगह कभी ‘फायर ऑडिट’ नहीं होने जैसी बात भी सामने आती है।
आखिर में कुछ कानूनी कार्रवाई होती है और कुछ दिन के हंगामे के बाद मामला आग की तरह ही ठंडा हो जाता है। इसी कारण आग के मामलों पर अधिक गंभीरता ज्यादा दिन टिकती नहीं है। यदि आग के मामलों को गहराई से देखा जाए तो उनमें उपकरणों की कमजोरी, सस्ते सामान के उपयोग का परिणाम ‘शॉट सर्किट’ समझ में आता है।
कुछ स्थानों पर इलेक्ट्रिक उपकरणों के उपयोग में ओवरलोडिंग बड़ी आग का कारण बनती है, जिसमें बिजली की वायरिंग जल जाती है। यहां तक कि ट्रांसफार्मर भी जल जाते हैं। यह कुछ कारण साबित करते हैं कि आग लगने की संभावना का आकलन किया जा सकता है। किंतु लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना रवैया भोले-भाले लोगों की जान लेता रहता है।
सरकार, प्रशासन, पुलिस, स्थानीय निकाय सांप निकलने के बाद लाठी पीटने से अधिक कुछ नहीं करते हैं। यदि उन्हें कुछ करना है तो सुरक्षा के उपायों की जांच-परख में ईमानदार बनना होगा। अन्यथा उपहार सिनेमागृह के अग्निकांड से लेकर राजकोट ‘गेम जोन’ लोगों की जिंदगी से खेलते रहेंगे।