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सस्ती होने के बजाय महंगी होती बिजली

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 31, 2025 07:15 IST

मुख्यमंंत्री भले ही तीन-पांच साल के सब्जबाग जरूर दिखाएं, मगर प्रत्यक्ष प्रमाण तो बिजली शुल्क एक अंक से दोहरे अंक में बदल जाना है, जिससे तीन से चार अंकों के बिल के भुगतान के लिए हमेशा ही तैयार रहना पड़ता है.

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यह बात बहुत पुरानी नहीं है, जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने बीते दिसंबर माह में कहा था कि उनकी सरकार ने राज्य के ऊर्जा क्षेत्र के लिए अगले 25 साल का खाका तैयार किया है, जिससे वह उद्योगों समेत सभी को सस्ती बिजली उपलब्ध कराएंगे. ऊर्जा मंत्रालय के प्रभारी मंत्री फडणवीस ने यह भी कहा था कि उनकी विभिन्न सरकारी योजनाओं से गरीबों को मिलने वाले मकानों में बिजली बिल न देने की भी योजना है.

मगर उनके बयान के कुछ माह बाद महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग (एमईआरसी) के एक नए आदेश के आधार पर बिजली दरों में परिवर्तन का निर्णय लिया गया है. इसमें यह दावा किया गया है कि अब दिन में उपयोग में लाई जाने वाली बिजली पर प्रति यूनिट के हिसाब से अस्सी पैसे की छूट दी जाएगी, जिसका घरेलू उपभोक्ताओं को लाभ होगा.

मगर यह सुविधा स्मार्ट मीटरों पर उपलब्ध होगी, जिनका महाराष्ट्र में विरोध किया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि आम तौर पर दिन में घरों में बिजली की खपत कम होती है, क्योंकि बच्चों के स्कूल-कॉलेज जाने तथा घर के कामकाजी लोगों के अधिक समय घर से बाहर रहने के कारण बिजली का उपयोग कम ही होता है. दूसरी ओर ज्यादातर घरों में बिजली की मांग शाम और रात में अधिक होती है.

मगर नए आदेश के अनुसार शाम-रात के दौरान छूट नहीं मिलेगी. इसका लाभ कार्यालय, उद्योग, संस्थाएं आदि उठा सकेंगे, लेकिन सरकार ने पहले ही उन्हें सौर ऊर्जा का रास्ता दिखा दिया है. हालांकि सौर ऊर्जा से तैयार यूनिट का समायोजन मार्च में होने के कारण गर्मियों के दिनों में होने वाली अधिक खपत का लाभ नहीं मिल पाता है.

सौर ऊर्जा के उपभोक्ताओं के मन में नाराजगी इस बात की भी रहती है कि उन्हें देते समय महंगी दर से बिजली दी जाती है और उनके माध्यम से तैयार बिजली के एक समान तो नहीं, बल्कि बहुत कम दाम दिए जाते हैं. इसलिए आंकड़ेबाजी के हिसाब से बिजली के सस्ता या महंगा होने का हिसाब लगाया जा सकता है, लेकिन असलियत को स्वीकार करते समय झटका ही लग सकता है.

राज्य सरकार चुनाव से पहले वादों में अवश्य ही बिजली के दामों के संवेदनशील मुद्दे को उठाकर आशा जगाती है, मगर सरकार बनते ही हर पार्टी बिजली के दाम बढ़ाती चली जाती है. मुख्यमंंत्री भले ही तीन-पांच साल के सब्जबाग जरूर दिखाएं, मगर प्रत्यक्ष प्रमाण तो बिजली शुल्क एक अंक से दोहरे अंक में बदल जाना है, जिससे तीन से चार अंकों के बिल के भुगतान के लिए हमेशा ही तैयार रहना पड़ता है.

ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता के चलते वर्तमान परिदृश्य में आम बिजली ग्राहक के समक्ष दूसरा कोई विकल्प नहीं है. इसलिए पेट्रोलियम पदार्थों की तरह इस क्षेत्र में भी मजबूरी का लाभ आसानी से उठाना संभव है. दामों के हेर-फेर का महंगाई पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव दिखेगा, जो बिल भुगतान के बाद भुगतना आम आदमी की एक मजबूरी होगी.यह बात बहुत पुरानी नहीं है, जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने बीते दिसंबर माह में कहा था कि उनकी सरकार ने राज्य के ऊर्जा क्षेत्र के लिए अगले 25 साल का खाका तैयार किया है, जिससे वह उद्योगों समेत सभी को सस्ती बिजली उपलब्ध कराएंगे.

ऊर्जा मंत्रालय के प्रभारी मंत्री फडणवीस ने यह भी कहा था कि उनकी विभिन्न सरकारी योजनाओं से गरीबों को मिलने वाले मकानों में बिजली बिल न देने की भी योजना है. मगर उनके बयान के कुछ माह बाद महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग (एमईआरसी) के एक नए आदेश के आधार पर बिजली दरों में परिवर्तन का निर्णय लिया गया है.

इसमें यह दावा किया गया है कि अब दिन में उपयोग में लाई जाने वाली बिजली पर प्रति यूनिट के हिसाब से अस्सी पैसे की छूट दी जाएगी, जिसका घरेलू उपभोक्ताओं को लाभ होगा. मगर यह सुविधा स्मार्ट मीटरों पर उपलब्ध होगी, जिनका महाराष्ट्र में विरोध किया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि आम तौर पर दिन में घरों में बिजली की खपत कम होती है, क्योंकि बच्चों के स्कूल-कॉलेज जाने तथा घर के कामकाजी लोगों के अधिक समय घर से बाहर रहने के कारण बिजली का उपयोग कम ही होता है. दूसरी ओर ज्यादातर घरों में बिजली की मांग शाम और रात में अधिक होती है.

मगर नए आदेश के अनुसार शाम-रात के दौरान छूट नहीं मिलेगी. इसका लाभ कार्यालय, उद्योग, संस्थाएं आदि उठा सकेंगे, लेकिन सरकार ने पहले ही उन्हें सौर ऊर्जा का रास्ता दिखा दिया है. हालांकि सौर ऊर्जा से तैयार यूनिट का समायोजन मार्च में होने के कारण गर्मियों के दिनों में होने वाली अधिक खपत का लाभ नहीं मिल पाता है. सौर ऊर्जा के उपभोक्ताओं के मन में नाराजगी इस बात की भी रहती है कि उन्हें देते समय महंगी दर से बिजली दी जाती है और उनके माध्यम से तैयार बिजली के एक समान तो नहीं, बल्कि बहुत कम दाम दिए जाते हैं.

इसलिए आंकड़ेबाजी के हिसाब से बिजली के सस्ता या महंगा होने का हिसाब लगाया जा सकता है, लेकिन असलियत को स्वीकार करते समय झटका ही लग सकता है.

राज्य सरकार चुनाव से पहले वादों में अवश्य ही बिजली के दामों के संवेदनशील मुद्दे को उठाकर आशा जगाती है, मगर सरकार बनते ही हर पार्टी बिजली के दाम बढ़ाती चली जाती है. मुख्यमंंत्री भले ही तीन-पांच साल के सब्जबाग जरूर दिखाएं, मगर प्रत्यक्ष प्रमाण तो बिजली शुल्क एक अंक से दोहरे अंक में बदल जाना है, जिससे तीन से चार अंकों के बिल के भुगतान के लिए हमेशा ही तैयार रहना पड़ता है.

ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता के चलते वर्तमान परिदृश्य में आम बिजली ग्राहक के समक्ष दूसरा कोई विकल्प नहीं है. इसलिए पेट्रोलियम पदार्थों की तरह इस क्षेत्र में भी मजबूरी का लाभ आसानी से उठाना संभव है. दामों के हेर-फेर का महंगाई पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव दिखेगा, जो बिल भुगतान के बाद भुगतना आम आदमी की एक मजबूरी होगी.

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