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समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए निर्थक मुद्दे न उठाएं, विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग

By विश्वनाथ सचदेव | Published: November 27, 2020 12:37 PM

देश के प्रबुद्ध नागरिक का दायित्व बनता है कि वह भारतीय समाज को बांटने की खतरनाक कोशिशों को पहचाने और विफल बनाए. हमारे प्रधानमंत्नी ने देश के संविधान को सबसे बड़ा धार्मिक ग्रंथ बताया है.

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ठळक मुद्देसमाज को बांटने की किसी भी कोशिश को असफल बनाना हर भारतीय का कर्तव्य है.मिड-डे मील के नाम पर बच्चों को नमक-रोटी परोसी जा रही है.बिहार में हुए चुनावों में हमने देखा कि किस तरह पंद्रह साल पुराने ‘जंगल राज’ के सहारे चुनाव ‘जीत’ लिया गया.

 ‘आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्या क्या है?’ इस सवाल का उचित जवाब कोरोना ही हो सकता है. यह सही है कि देश के कई हिस्सों में कोरोना का प्रकोप कुछ कम होता दिख रहा है, पर ऐसे हिस्से भी कम नहीं हैं, जहां यह महामारी फिर से सिर उठाती दिख रही है.

बात चाहे देश की राजधानी दिल्ली की हो या आर्थिक राजधानी मुंबई की, खतरा दूसरी और तीसरी लहर का दिख रहा है और जिस तरह यूरोप आदि में स्थिति सामने आ रही है, संकट की भयावहता का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं होना चाहिए. निश्चित रूप से आज हमारी सबसे बड़ी चिंता इस महामारी से मुक्ति पाना है. इसी के साथ जुड़ा है आर्थिक मंदी का मामला भी.

कई माह के लॉकडाउन के चलते देश का व्यापार चौपट-सा हो गया है. बेरोजगारी का संकट लगातार बढ़ रहा है. किसानों की समस्याएं कम होती नहीं दिख रहीं. होना तो यह चाहिए था कि हमारे नेता, हमारे राजनीतिक दल, हमारी सरकार इन मुद्दों की चिंता करते दिखते, पर ऐसा कुछ होता दिख नहीं रहा.

हमारी समूची राजनीति की चिंता राजनीतिक सत्ता से चिपटे रहने तक सीमित होती जा रही है. हमारी राजनीति के कर्णधार लगातार इस कोशिश में रहते हैं कि देश की जनता असली मुद्दों से बेखबर बनी रहे, इसलिए उसे लगातार भरमाया जाता है, भरमाया जा रहा है. हाल ही में बिहार में हुए चुनावों में हमने देखा कि किस तरह पंद्रह साल पुराने ‘जंगल राज’ के सहारे चुनाव ‘जीत’ लिया गया.

सत्तारूढ़ पक्ष लगातार यही कोशिश करता रहा कि उसके कार्यकाल की खामियों पर परदा पड़ा रहे. भले ही भारतीय जनता पार्टी कभी ‘सबका विकास’ के नारे से चुनाव जीती हो, पर बिहार के इस चुनाव में तेजस्वी सारी कोशिश के बावजूद बेरोजगारी और जनता की बेहाली को चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बनाने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाए. कुल मिलाकर सत्ता की राजनीति जनता के लिए राजनीति पर हावी हो गई. जनता के लिए राजनीति का मतलब है केंद्र में जनता के हित का होना. पर हमारी राजनीति के कर्णधारों का मानना है कि जनता नासमझ होती है, उसे समझाना पड़ता है कि असली मुद्दे क्या हैं!

हमारा भारत बहुधर्मी देश है. विभिन्न धर्मों के लोगों का साझा चूल्हा हमारी विशेषता है. हम ‘ईश्वर-अल्लाह तेरा नाम’ की भावना में विश्वास करते हैं. हमारी मान्यता है कि ईश्वर एक है, भले ही उसे अलग-अलग नाम दिए जाएं. एक बहुत ही सुंदर गुलदस्ता बनाया है हमने अलग-अलग धर्मो, जातियों, भाषाओं का. यह गुलदस्ता हमारी पहचान भी है और हमारा गौरव भी. इसीलिए हमने अपने संविधान में पंथ-निरपेक्षता को आमुख का हिस्सा बनाया है. हमें गर्व है अपने इस संविधान पर. ऐसे में धर्म के नाम पर समाज को बांटने की किसी भी कोशिश को असफल बनाना हर भारतीय का कर्तव्य है.

राजनीति के सौदागर अपने हितों के लिए हमारे इस कर्तव्य की पूर्ति में बाधक ही बन रहे हैं. अब यह इस देश के प्रबुद्ध नागरिक का दायित्व बनता है कि वह भारतीय समाज को बांटने की खतरनाक कोशिशों को पहचाने और विफल बनाए. हमारे प्रधानमंत्नी ने देश के संविधान को सबसे बड़ा धार्मिक ग्रंथ बताया है. इसके नाम पर शपथ लेते हैं हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि.

इस शपथ का वास्ता है कि हम असली मुद्दों से भटकाने की कोशिशों को असफल बनाएं. इसकी पहली और सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि हम स्वयं इन कोशिशों को पहचानें. हमें कोरोना से लड़ना है, गरीबी से लड़ना है, बेरोजगारी मिटाना है. लगातार घटती औद्योगिक विकास-दर को ठीक करना है. किसानों और मजदूरों को उनके हक दिलवाने हैं. आज भी देश में लाखों बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं, मिड-डे मील के नाम पर बच्चों को नमक-रोटी परोसी जा रही है और इस अपराध को उजागर करने वाला पत्नकार दंड भोगता है!

ऐसे में निर्थक मुद्दे उठाना, हिंदुस्तान के बजाय भारत के नाम पर शपथ लेने वाले को पाकिस्तान जाने का फतवा सुनाना एक षड्यंत्न नहीं तो षड्यंत्न से कम भी नहीं है. देश की सामाजिक और धार्मिक समरसता को बनाए रखना हर सच्चे और विवेकशील भारतीय का कर्तव्य है. आप अपनी गणना ऐसे भारतीय में करते हैं या नहीं?

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