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ब्लॉग: दत्तात्रेय होसबले का हड़कंप मचाने वाला बयान और फिर भागवत की सरकार को क्लीन चिट, बिगड़ते मामले को आरएसएस ने ऐसे संभाला!

By हरीश गुप्ता | Published: October 13, 2022 8:50 AM

दत्तात्रेय होसबले ने कुछ दिनों पहले भारत में गरीबी और देश की अर्थव्यवस्था को लेकर ऐसा कुछ कह दिया था, जिससे हड़कंप मच गया था। हालांकि चार दिन बाद मोहन भागवत ने नागपुर में दशहरा रैली में सरकार को क्लीन चिट दे दी।

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आरएसएस के दूसरे नंबर के पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबले द्वारा कुछ दिनों पहले भारतीय अर्थव्यवस्था की एक गंभीर तस्वीर पेश करने से हड़कंप मच गया था, जिसके बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी सरकार की जमकर तारीफ की. अगर होसबले ने कहा कि गरीबी हमारे सामने एक दानव की तरह खड़ी है और भारत में 20 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, तो मोहन भागवत ने यह दावा करते हुए आग बुझाई कि अर्थव्यवस्था पूर्व-कोविड स्तर पर लौट रही है. 

आरएसएस-भाजपा संबंधों पर करीब से नजर रखने वालों को इससे झटका लगा क्योंकि होसबले को प्रधानमंत्री मोदी का करीबी माना जाता है. वास्तव में, आरएसएस पदानुक्रम में होसबले के नंबर दो पर पहुंचने में देरी हुई क्योंकि भैयाजी जोशी खराब स्वास्थ्य के बावजूद इस पद पर बने रहे. 

इसलिए होसबले की यह टिप्पणी कि ‘23 करोड़ भारतीय प्रतिदिन 375 रु. से भी कम कमाते हैं, बेरोजगारी 7.6 प्रतिशत के उच्च स्तर पर है और एक प्रतिशत भारतीयों के पास राष्ट्रीय आय का पांचवां हिस्सा है, जबकि 50 प्रतिशत भारतीय 13.5 प्रतिशत राष्ट्रीय आय के मालिक हैं.’ हलचल का कारण बन गई. स्वदेश जागरण मंच द्वारा आयोजित एक समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते समय होसबले की यह टिप्पणी अनायास नहीं थी. लेकिन चार दिन बाद भागवत ने नागपुर में दशहरा रैली में नौकरी के संकट पर सरकार को क्लीन चिट दे दी. 

उन्होंने कहा कि अकेले केंद्र समस्या का समाधान नहीं कर सकता और समाज को अवसर पैदा करने और आत्मनिर्भर बनने के लिए आगे आना चाहिए. जैसे कि यह पर्याप्त नहीं था, उन्होंने संकटग्रस्त श्रीलंका को भारत की सहायता और रूस-यूक्रेन संघर्ष पर अपनाए गए रुख का हवाला देते हुए मोदी सरकार की जमकर प्रशंसा की. उन्होंने आगे कहा कि यह देश की ताकत का संकेत है कि वैश्विक स्तर पर इसकी आवाज सुनी जा रही है. भागवत के बयान से साफ है कि शीर्ष पर आरएसएस मोदी के पीछे मजबूती से खड़ा है.

ओडिशा में विधानसभा चुनाव समयपूर्व!

भारत में वर्तमान में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों के पहले कराने पर विचार कर रहे हैं. हालांकि सिक्किम के पवन कुमार चामलिंग 24 साल तक मुख्यमंत्री रहे थे और पटनायक ने 22 साल पूरे कर लिए हैं तथा दो साल और बाकी हैं. लेकिन 75 वर्षीय पटनायक ओडिशा में मजबूत हो रहे हैं जबकि चामलिंग सेवानिवृत्त हो चुके हैं. 

ओडिशा से आने वाली रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि पटनायक मई, 2024 में लोकसभा चुनावों से पहले ही विधानसभा चुनाव कराने के विचार पर काम कर रहे हैं. हालांकि वे राज्य के निर्विवाद नेता बने हुए हैं, लेकिन भाजपा एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरी है. 

2019 में जब लोकसभा और विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव हुए तो भाजपा वोट शेयर के मामले में बीजू जनता दल के बहुत करीब आ गई. भाजपा ने 147 सदस्यीय सदन में 32.49 प्रतिशत वोट प्राप्त किए और 23 विधानसभा सीटें जीतीं. जबकि बीजद को 44.71 प्रतिशत वोट के साथ 112 सीटें मिलीं लेकिन लोकसभा चुनावों के नतीजों ने राजनीतिक रणनीतिकारों को झटका दिया. 

बीजद ने लोकसभा की 12 सीटें 42.80 प्रतिशत वोटों के साथ हासिल कीं, जबकि भाजपा का वोट शेयर 38.40 प्रतिशत हो गया. ओडिशा के मतदाता ने विधानसभा में वोट शेयर की तुलना में लोकसभा चुनावों में भाजपा को 6 प्रतिशत अधिक वोट दिए. पटनायक ने आक्रामक भाजपा के खतरे को भांप लिया है और लोकसभा चुनावों से विधानसभा चुनाव को अलग करने के इच्छुक हैं. वे 2023 में पहले राज्य जीतना चाहते हैं और फिर मई 2024 में लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरना चाहते हैं.

भाजपा के निशाने पर कांग्रेस नहीं केजरीवाल!

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में एक चुनावी रैली के दौरान निमंत्रण मिलने के बाद अहमदाबाद में एक ऑटो चालक के घर भोजन किया. केजरीवाल ने पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करते हुए लुधियाना में भी ऐसा ही किया था और ‘दिल्ली मॉडल’ को सफलतापूर्वक बेचा था. 

केजरीवाल गुजरात में भी वही कर रहे हैं जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. कांग्रेस के चिंतित होने के कारण हैं क्योंकि केजरीवाल दिल्ली और पंजाब में उसका वोट बैंक उड़ा ले गए और भाजपा को भी बड़ा झटका दिया. गुजरात में कांग्रेस अभी भी सुप्त अवस्था में है क्योंकि पार्टी की पूरी मशीनरी या तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा या संगठनात्मक चुनावों में व्यस्त है. लेकिन भाजपा न तो गुजरात में और न ही हिमाचल प्रदेश में कोई चांस ले रही है. 

उसने महसूस किया है कि कांग्रेस की तुलना में आप एक बड़ा खतरा है. भाजपा हर जिले और कस्बे के आप कार्यकर्ताओं और नेताओं को केजरीवाल को पछाड़ने के लिए लुभा रही है और ‘दरवाजा खुला रखने की नीति’ अपना रही है. वह आप को कमजोर करने के लिए अपने शस्त्रागार के हर हथियार का उपयोग कर रही है. 

प्रधानमंत्री ने लगातार तीन दिनों तक गुजरात में डेरा डाला और आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा तथा कांग्रेस की आलोचना करने से परहेज किया. भाजपा चाहती है कि कांग्रेस उसकी प्रमुख चुनौती बने न कि आप. खबरों की मानें तो भाजपा नेतृत्व ने गुजरात में कांग्रेस छोड़ने के लिए तैयार करीब दो दर्जन कांग्रेस विधायकों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. 

यहां तक कि मोदी ने भी अपनी रैलियों में आश्चर्य जताया कि कांग्रेस ने उन्हें गाली देना क्यों बंद कर दिया और ग्रामीण वोट हासिल करने के लिए ‘चुपचाप’ काम कर रही है. उन्होंने आप का नाम लिए बिना उसे ‘अर्बन नक्सल’ करार दिया. जाहिर है, भाजपा के लिए चिंतित होने की वजहें हैं क्योंकि केजरीवाल युवाओं और शहरी इलाकों में दबे-कुचले लोगों के बीच धूम मचाने में कामयाब रहे हैं.

टॅग्स :मोहन भागवतआरएसएसदत्तात्रेय होसबालेनरेंद्र मोदीइकॉनोमीनवीन पटनायकओड़िसागुजरात विधानसभा चुनाव 2022अरविंद केजरीवालआम आदमी पार्टीभारतीय जनता पार्टीकांग्रेस
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