(लेखक-शशांक द्विवेदी) इंटरनेट ने पूरी दुनिया को ग्लोबल विलेज की तरह बनाने में एक बड़ी भूमिका बनाई लेकिन अब यही इंटरनेट पूरी दुनिया के बच्चों, किशोरों और युवाओं को तेजी से साइबर एडिक्ट भी बना रहा है. दुनियाभर में नशीले पदार्थो का कारोबार जिस तेजी से फैल रहा है, उससे अधिक रफ्तार से बच्चे इंटरनेट और सोशल मीडिया की लत में घिरते जा रहे हैं.
पिछले दिनों दिल्ली पुलिस और एम्स की बिहेवियर एडिक्शन यूनिट द्वारा संयुक्त रूप से किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि स्कूलों में पढ़ने वाले हर पांच छात्न में से एक छात्न प्रॉब्लमैटिक इंटरनेट यूजर यानी पीआईयू का शिकार है. पीआईयू का अर्थ है कि हर पांच में से एक छात्न इंटरनेट की बुरी लत का शिकार है. इंटरनेट गेमिंग, सर्फिग या सोशल नेटवर्किग साइट्स के दीवाने इन युवाओं का इंटरनेट का क्रेज इनकी पढ़ाई, सोशल लाइफ और करियर को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. सर्वे के मुताबिक 37 प्रतिशत छात्न अपने मिजाज और पढ़ाई के प्रेशर से ध्यान हटाने के लिए इंटरनेट का सहारा ले रहे हैं.
वर्तमान दौर में सोशल मीडिया से बच्चे और किशोर न सिर्फ तेजी से जुड़ रहे हैं बल्कि इसकी लत के शिकार हो रहे हैं. इसी डिजिटल लत से छुटकारा पाने के लिए अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया, अल्जीरिया सहित कई देशों में क्लीनिक खोले गए हैं. अपने देश के भी बेंगलुरु और दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में इंटरनेट डी-एडिक्शन सेंटर्स खोले जा रहे हैं. इन डी-एडिक्शन सेंटर्स पर ‘जिंदगी को ऑफलाइन बनाने’ पर काम किया जाता है. डिजिटल लत की वजह से लोग अपनी वास्तविक समस्याओं से कतरा रहे हैं, मौलिक चिंतन और मौलिक सोच कम हो रही है, साथ ही लोगों का सामाजिक दायरा भी कम हो रहा है. इंटरनेट एडिक्शन एक ऐसी मन:स्थिति है, जब लोग घंटों ऑनलाइन गेम, नेट सर्फिग या सोशल साइट्स पर असीमित समय बिताने लगते हैं. खुद पर नियंत्नण कम होता जाता है.
पिछले कई वर्षो में सूचना तकनीक ने जिस तरह से तरक्की की है, इसने मानव जीवन पर बेहद गहरा प्रभाव डाला है. न सिर्फ प्रभाव डाला है, बल्कि एक तरह से इसने जीवनशैली को ही बदल डाला है. शायद ही ऐसा कोई होगा, जो इस बदलाव से अछूता होगा. बच्चों का बचपन भी अब इंटरनेट की गिरफ्त में आ चुका है या यह कहें कि बच्चे भी अब तेजी से इंटरनेट की गुलामी की तरफ बढ़ रहे हैं. असल में युवा वर्ग सूचनाओं के बोझ से दबा जा रहा है और उसके खुद के सोचने और समझने की क्षमता लगातार कम होती जा रही है. साथ ही काम में मौलिकता का अभाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है. साइबर एडिक्शन की लत से छुटकारा पाने के लिए सरकार के साथ सामाजिक और परिवार के स्तर पर भी पहल करनी होगी.