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पवन के वर्मा का ब्लॉग: सीबीआई और पुलिस के बीच टकराव के मायने

By पवन के वर्मा | Updated: February 12, 2019 11:39 IST

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीतिक कोलाहल और राजनीतिक मतभेदों के रूप में बनने वाले दबाव आम चुनावों के नजदीक आते ही और तीखे हो जाते हैं। इसलिए हमें इस बारे में बेहद सतर्क रहने की जरूरत है

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सरदार पटेल को अखिल भारतीय नौकरशाही की संरचना के रूप में भारत के ‘स्टील फ्रेम’ के निर्माण का श्रेय जाता है। एक ऐसी संरचना, जिसे अखिल भारतीय सेवा कहा जाता है और जिसमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) शामिल है। उम्मीद की गई थी कि दलगत राजनीति से वह परे रहेगी और एक आचार संहिता द्वारा निर्देशित होगी, जो उसकी निष्पक्षता और प्रशासनिक प्रभावशीलता सुनिश्चित करेगी। सरकारें आएंगी और जाएंगी लेकिन यह स्टील फ्रेम सरकारी कामकाज की निरंतरता सुनिश्चित करेगा। इसकी कार्यकारी आधार के रूप में कल्पना की गई थी, जो राजनीतिक दबाव के बिना  काम करेगा।

लेकिन, सरदार पटेल ने शायद उस परिस्थिति की कल्पना नहीं थी, जैसी हाल ही में कोलकाता में पैदा हुई, जहां एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने बचाव किया, जिन्हें सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने की आशंका थी। इस टकराव में ‘स्टील फ्रेम’ ऑफ इंडिया को पहुंचने वाली क्षति को स्पष्ट देखा जा सकता है। सिविल सेवाओं की कल्पना करते हुए सरदार पटेल ने माना था कि केंद्र और राज्य दोनों के दोहरे स्तर पर अधिकारियों की निगरानी की जाएगी। जब उन्हें केंद्र सरकार के अधीन क्षेत्र में पदस्थ किया जाएगा तब वे दिल्ली में नियंत्रण प्राधिकरण के निर्देश का पालन करेंगे और जब वे राज्यों में तैनात होंगे तो राज्य सरकार के नियंत्रण में होंगे।

राजीव कुमार के मामले में, कोलकाता के पुलिस आयुक्त के रूप में वे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रति जवाबदेह हैं, लेकिन कैडर को नियंत्रित करने वाला प्राधिकरण गृह मंत्रलय है। यही वह द्वंद्व है जिसने ममता बनर्जी को राजीव कुमार को सीबीआई के सामने ‘सरेंडर’ करने से रोकने में सक्षम बनाया। और इसी द्वंद्व ने ही केंद्रीय गृह मंत्रलय को भी राजीव कुमार तथा प। बंगाल में सेवारत अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया है। 

गंभीर बात यह है कि अगर इस मुद्दे का शीघ्र ही समाधान नहीं निकाला गया तो केंद्र-राज्य के रिश्तों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, जिसे लेकर अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारी चिंतित हैं। सरदार पटेल द्वारा तैयार स्टील फ्रेम का आधार केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को बनाया गया था। अगर यह सहयोग समाप्त हो जाता है तो पूरी व्यवस्था के ही खतरे में पड़ जाने की आशंका है।  

यदि अविश्वास की खाई और चौड़ी होती है तो इस तरह की संस्थाओं के लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीतिक कोलाहल और राजनीतिक मतभेदों के रूप में बनने वाले दबाव आम चुनावों के नजदीक आते ही और तीखे हो जाते हैं। इसलिए हमें इस बारे में बेहद सतर्क रहने की जरूरत है कि समय की कसौटी पर खरे उतरने वाले संस्थान, जिन्होंने हमेशा हमारे राष्ट्र की हिफाजत की है, को गंभीर क्षति न पहुंचने पाए।

टॅग्स :सीबीआईकोलकाताममता बनर्जी
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