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ब्लॉग: दो मूर्तिकार और नई संसद की छत पर लगे अशोक स्तंभ पर विवाद

By विवेक शुक्ला | Updated: July 14, 2022 09:50 IST

सरकार और दोनों मूर्तिकार दावा कर रहे हैं कि अगर सारनाथ स्थित राष्ट्रीय प्रतीक के आकार को बढ़ाया जाए या नए संसद भवन पर बने प्रतीक के आकार को छोटा किया जाए तो दोनों में कोई अंतर नहीं होगा.

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मूर्तिशिल्पियों लक्ष्मण व्यास और सुनील देवड़े ने गढ़ा है उस अशोक स्तंभ को, जिसे देश की नई संसद की छत पर स्थापित करने के साथ ही विवाद खड़ा हो गया है. विवाद इसलिए हो रहा है क्योंकि कहा जा रहा कि नई संसद में स्थापित अशोक स्तंभ उस अशोक स्तंभ से काफी हटकर है जो सारनाथ के संग्रहालय में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अशोक स्तंभ को विगत सोमवार को देश के सामने प्रस्तुत किया. यह चार शेरों वाला स्तंभ भारत के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में विख्यात है.

यह अशोक स्तंभ दिल्ली, जयपुर और औरंगाबाद में लक्ष्मण व्यास और सुनील देवड़े ने अपने-अपने स्टूडियो में बनाया. दरअसल नई संसद के निर्माण का कांट्रैक्ट टाटा ग्रुप को मिला है. उसकी तरफ से लक्ष्मण व्यास तथा सुनील देवड़े को अशोक स्तंभ बनाने का दायित्व मिला था. ये बेहद खास प्रोजेक्ट दो मूर्तिकारों को इसलिए दिया गया क्योंकि ये वास्तव में बड़ा काम था. 

भारत के चोटी के मूर्तिशिल्पी राम सुतार की तरफ से भी अशोक स्तंभ के निर्माण की इच्छा जताई गई थी. पर उन्हें यह अहम काम नहीं मिल सका. राम सुतार के पुत्र और स्वय़ंसिद्ध मूर्तिशिल्पी अनिल सुतार ने कहा कि टाटा समूह के सस्ते में काम करवाने के फेर में राष्ट्रीय स्तंभ के साथ न्याय नहीं हो सका. 

वे कहते हैं, “जो राष्ट्रीय चिह्न संसद भवन में स्थापित हुआ है, वह उस अशोक स्तंभ से बहुत अलग है जो सारनाथ के संग्रहालय में है. संसद में लगे अशोक स्तंभ में शेरों के भाव बिल्कुल अलग दिख रहे हैं.’’

अगर बात राष्ट्रीय चिह्न और उसके अंदर के शेरों से हटकर करें तो अशोक देवड़े तथा लक्ष्मण व्यास पहले भी कई महत्वपूर्ण प्रतिमाएं बना चुके हैं. व्यास ने हरियाणा के पलवल में लगी महाराणा प्रताप की विशाल धातु प्रतिमा बनाई है. इसके अलावा उन्होंने परशुरामजी की आदमकद प्रतिमाएं भी बनाई हैं. लक्ष्मण व्यास ने ही इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर हाथियों की कुछ मूरतें भी बनाई हैं. 

राम किंकर और देवीप्रसाद राय चौधरी जैसे मूर्ति शिल्पियों के काम से प्रभावित 46 साल के लक्ष्मण व्यास ने अभी तक करीब 300 आदमकद तथा धड़ प्रतिमाएं बनाई हैं. इसके अलावा बहुत से प्रतीकों की भी मूर्तियां बना चुके हैं.  

उधर, मुंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स में पढ़े सुनील देवड़े ने अजंता-एलोरा की गुफाओं पर कई अतुलनीय प्रतिमाएं बनाई हैं. ये अजंता एलोरा के विजिटर्स सेंटर पर रखी हैं. इसके अलावा वे भी कई महापुरुषों की मूरतें बन चुके हैं. सुनील देवड़े के काम पर महाराष्ट्र के महान मूर्तिकार सदाशिव साठे का असर दिखाई देता है.  

बहरहाल, अशोक स्तंभ को बनाकर सुनील देवड़े और लक्ष्मण व्यास कला के संसार में अपने को स्थापित करने में सफल रहे हैं. लेकिन जानकार मानते हैं कि दोनों मूर्तिशिल्पी राष्ट्रीय स्तंभ को और बेहतर बना सकते थे. मूल स्तंभ के शेरों में जो गरिमा, भव्यता और सिंहत्व अकारण ही लोगों की नजर खींच लेता है वह इस नए बने प्रतीक में नहीं है.

मूर्तिकला केवल पत्थरों, कांस्य, या किसी भी धातु को तराशना या उसे गढ़ना ही नहीं होती है बल्कि वह प्रतिमा में, एक प्रकार से जान डाल देना भी होता है. सारनाथ म्यूजियम में जो लोग घूमने गए हैं, वे यह भलीभांति जानते हैं कि म्यूजियम के मुख्य हॉल के बीच में रखा गया चार शेरों वाला भव्य स्तंभ न केवल अपनी विलक्षण पॉलिश के लिए प्रसिद्ध है बल्कि भव्यता, राजत्व, गरिमा और मूर्तिकला का एक अनुपम उदाहरण भी है. 

हालांकि सरकार और दोनों मूर्तिकार दावा कर रहे हैं कि अगर सारनाथ स्थित राष्ट्रीय प्रतीक के आकार को बढ़ाया जाए या नए संसद भवन पर बने प्रतीक के आकार को छोटा किया जाए तो दोनों में कोई अंतर नहीं होगा. इनका ये कहना है कि ‘सारनाथ स्थित मूल प्रतीक 1.6 मीटर ऊंचा है, जबकि नए संसद भवन के ऊपर बना प्रतीक विशाल और 6.5 मीटर ऊंचा है.’

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