ब्लॉग: चुनाव आयोग की साख पर सवाल उठने की न आए नौबत

By राजकुमार सिंह | Published: August 22, 2023 08:27 AM2023-08-22T08:27:28+5:302023-08-22T08:32:27+5:30

भारत के चुनाव आयोग की विश्व भर में प्रतिष्ठा है पर देश में उसकी साख पर सवालिया निशान लगते रहे हैं। ताजा प्रकरण चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा है।

Blog: The credibility of the Election Commission should not be questioned | ब्लॉग: चुनाव आयोग की साख पर सवाल उठने की न आए नौबत

ब्लॉग: चुनाव आयोग की साख पर सवाल उठने की न आए नौबत

Highlightsभारत के चुनाव आयोग की विश्व भर में प्रतिष्ठा है लेकिन अब उसकी साख पर सवालिया निशान लग रहा हैआरोप हैं कि सरकार चुनाव आयोग को वास्तविक रूप से स्वायत्त और निष्पक्ष नहीं रहने देना चाहतीसरकार द्वारा संसद के मानसून सत्र में चुनाव आयोग संबंधी विधेयक को उसी निगाह से देखा जा रहा है

चुनाव प्रक्रिया अगर लोकतंत्र की प्राणवायु है तो उसे किसी भी तरह के प्रदूषण से मुक्त बनाए रखना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी-जवाबदेही है। भारत के चुनाव आयोग की विश्व भर में प्रतिष्ठा है पर देश में उसकी साख पर सवालिया निशान लगते रहे हैं। ताजा प्रकरण चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा है।

सरकार द्वारा संसद के मानसून सत्र में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी विधेयक राज्यसभा में पेश किए जाने से फिर इस बहस को बल मिला है कि सरकार चुनाव आयोग को वास्तविक रूप से स्वायत्त और निष्पक्ष नहीं रहने देना चाहती।

10 अगस्त को राज्यसभा में पेश मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, शर्तें और पद अवधि) विधेयक, 2023 में यह प्रावधान किया गया है कि कैबिनेट सचिव की अध्यक्षतावाली सर्च कमेटी पांच नाम सुझाएगी और तीन सदस्यीय समिति अंतिम फैसला करेगी, जिसमें प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता के अलावा स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा नामांकित एक कैबिनेट मंत्री होंगे। यह समिति सुझाए गए नामों के अलावा भी किसी का चयन कर सकती है। यह प्रावधान इस बाबत सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई अंतरिम व्यवस्था के विपरीत है।

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया था कि सात दशक में भी इस बाबत अपेक्षित कानून नहीं बनाया गया और बिना पारदर्शी-निष्पक्ष प्रक्रिया के नियुक्तियों से यह धारणा बन रही है कि केंद्र सरकार अपने पसंदीदा नौकरशाह को ही चुनाव आयुक्त बनाती है। सर्वोच्च अदालत ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन को उनकी सख्ती और निष्पक्षता के लिए याद किया तथा आनन-फानन में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेनेवाले राजीव कुमार की चंद घंटे में ही मुख्य चुनाव आयुक्त पद पर नियुक्ति पर भी सवाल उठाए।

सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति संबंधी कानून बनाने को कहा था, उसी के लिए यह विधेयक पेश किया गया है, लेकिन विपक्ष इसमें किए गए प्रावधान को पारदर्शिता-निष्पक्षता विहीन, और इसीलिए लोकतंत्र के लिए अहितकर बताते हुए विरोध कर रहा है।

दरअसल पेश किए गए विधेयक के मुताबिक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करनेवाली समिति में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के बजाय प्रधानमंत्री द्वारा नामांकित एक कैबिनेट मंत्री को रखा गया है। विपक्ष का तर्क है कि इस तरह तीन सदस्यीय समिति में दो सदस्य सत्तापक्ष के हो जाएंगे और सरकार के मनोनुकूल ही नियुक्तियां होती रहेंगी।

Web Title: Blog: The credibility of the Election Commission should not be questioned

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