Bihar Elections 2025: बिहार न केवल एक और विधानसभा चुनाव का गवाह बनने के लिए तैयार है, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच पहली बड़ी राजनीतिक टक्कर का भी गवाह बनने वाला है-एक ऐसा हाई-वोल्टेज मुकाबला जो राष्ट्रीय मूड को आकार दे सकता है. महाराष्ट्र, हरियाणा या दिल्ली के उलट, बिहार वह मैदान बन गया है जहां मोदी और राहुल दोनों ने व्यक्तिगत रूप से अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाई है, यह अच्छी तरह जानते हुए कि यहां जो कुछ भी होगा उसका असर पूरे भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर पड़ेगा.
इस साल जनवरी से अब तक मोदी बिहार के नौ दौरे कर चुके हैं - रैलियों को संबोधित किया, परियोजनाओं का उद्घाटन किया और स्थानीय समूहों से वर्चुअली बातचीत की. उनके लिए बिहार सिर्फ वोटों का सवाल नहीं, बल्कि हिंदी पट्टी से अपने जुड़ाव को पुख्ता करने का भी सवाल है. चुनाव के दौरान वह 12 रैलियां करेंगे.
दूसरी ओर, राहुल गांधी असामान्य रूप से उत्साहित दिख रहे हैं - अपनी नई सक्रियता को परखने के लिए बिहार को एक राजनीतिक प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने राज्य का सात बार दौरा किया है, राज्य के नेताओं के साथ लंबी रणनीतिक बैठकें की हैं, और मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के विरोध में दो हफ्ते की यात्रा के साथ सड़कों पर भी उतरे हैं.
पूर्णिया में उनका ‘मताधिकार मार्च’ और उसके बाद बिहार में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक उनके इरादे को रेखांकित करती है: राहुल बिहार को अपनी वापसी का अखाड़ा बनाना चाहते हैं. मोदी और राहुल, दोनों के लिए, बिहार सिर्फ एक और चुनाव नहीं है - यह कथानक, दमखम और सड़क पर अपनी ताकत की परीक्षा है. इसके नतीजे अगले राष्ट्रीय राजनीतिक अध्याय की दिशा तय कर सकते हैं.
पी.चिदंबरम का नया राग, कार्ति को राहत
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और मनमोहन सिंह सरकार में पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री, पी. चिदंबरम के बेटे और तमिलनाडु के शिवगंगा से कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम को अदालत से बड़ी राहत मिली है. उन पर आईएनएक्स मीडिया घोटाले समेत कई मामलों में आरोप लगे हैं और वे कुछ समय जेल में भी बिता चुके हैं. उनका पासपोर्ट पहले ही जब्त कर लिया गया था और जब भी उन्हें विदेश यात्रा करनी होती थी,
उन्हें अदालत से पूर्व अनुमति लेनी होती थी - कम से कम दो हफ्ते पहले अपनी यात्रा का विवरण जमा करना होता था. अब, दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें एक बड़ी राहत दी है. अदालत ने विदेश यात्रा के लिए पूर्व अनुमति की शर्त को समाप्त कर दिया है. इसका मतलब है कि कार्ति चिदंबरम अब अदालत की पूर्व अनुमति के बिना विदेश यात्रा कर सकते हैं.
अदालत के फैसले पर कोई सवाल नहीं उठा सकता, लेकिन कार्ति चिदंबरम को मिली इस राहत का समय ध्यान खींच रहा है. उन जांच एजेंसियों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं, जिन्होंने अदालत के सामने उन्हें यह राहत देने का विरोध नहीं किया. यह राहत ऐसे समय में मिली है जब उनके पिता पी. चिदंबरम ने ऐसे रुख अपनाना शुरू कर दिया है जो कांग्रेस पार्टी के लिए असहज लग रहे हैं.
हाल ही में एक बयान में पी. चिदंबरम ने अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस पर विदेशी दबाव के आगे झुकने का आरोप लगाते हुए कहा कि 26/11 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारत कार्रवाई करना चाहता था, लेकिन अमेरिकी दबाव में उसने ऐसा नहीं किया. भाजपा लंबे समय से यह आरोप लगा रही थी,
लेकिन अब खुद चिदंबरम ने इसकी पुष्टि कर दी है. इसी तरह, 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार के बारे में भी चिदंबरम ने कहा कि यह एक गलत फैसला था, जिसकी कीमत इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में वह और भी ऐसे बयान दे सकते हैं जिनसे कांग्रेस पार्टी को नुकसान हो सकता है.
दोहरी आत्महत्या : क्राइम थ्रिलर की पटकथा
हरियाणा में एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या से शुरू हुआ मामला अब हाल के दिनों के सबसे चौंकाने वाले और सनसनीखेज मामलों में से एक में बदल गया है - एक ऐसी कहानी जो किसी डार्क क्राइम थ्रिलर की पटकथा जैसी लगती है. 7 अक्तूबर को, आईपीएस अधिकारी पूरन कुमार ने कथित तौर पर अपने आवास पर खुद को गोली मार ली.
उन्होंने ‘फाइनल नोट’ शीर्षक से आठ पन्नों का एक टाइप किया हुआ नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने नौ वरिष्ठ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों पर भ्रष्टाचार और लगातार उत्पीड़न का आरोप लगाया. उन्होंने दावा किया कि गलत कामों में शामिल होने से इनकार करने पर उन्हें किनारे किया जा रहा है.
ठीक आठ दिन बाद, एएसआई संदीप लाठर ने भी खुद को गोली मार ली- ठीक उसी तरह. उनके चार पन्नों के हस्तलिखित ‘फाइनल नोट’ में पूरन कुमार, उनकी आईएएस पत्नी और कई अन्य अधिकारियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था. विडंबना यह है कि जहां आईपीएस अधिकारी ने खुद को ईमानदार और पीड़ित बताया था, वहीं एएसआई के नोट में उन्हें दोषी और भ्रष्ट बताया गया. रहस्य और गहरा हो गया, क्योंकि कथित तौर पर किसी ने भी दोनों मामलों में गोलियों की आवाज नहीं सुनी.
दोनों अधिकारी ऐसे हालात में मृत पाए गए जिन्हें जांचकर्ता ‘बेहद असामान्य’ बता रहे हैं. पूरन कुमार दलित थे, जबकि संदीप लाठर ऊंची जाति के थे - एक ऐसा तथ्य जिसने पहले से ही उलझी हुई कहानी में एक सामाजिक आयाम जोड़ दिया है. पुलिस अब दो मौतों, दो ‘फाइनल नोटों’ और कई आरोपों से जूझ रही है जो हरियाणा के नौकरशाही तंत्र को हिला सकते हैं.
बिहार चुनाव में मौर्य की पदोन्नति!
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सह-प्रभारी नियुक्त करने के भाजपा के फैसले ने नई राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दे दिया है. कई लोग इसे मौर्य की ‘पदोन्नति’ के रूप में देख रहे हैं, और तर्क दे रहे हैं कि अगर एनडीए बिहार में अच्छा प्रदर्शन करता है, तो उन्हें अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश में सीधा राजनीतिक लाभ मिलेगा.
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में लखनऊ में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में मौर्य की प्रशंसा करते हुए उन्हें ‘मेरे मित्र’ कहा था. इसके तुरंत बाद, मौर्य को बिहार की जिम्मेदारियां सौंपी गईं - एक ऐसा संकेत जो किसी की नजर से नहीं छूटा. हालांकि, कई लोग इसकी मौर्य के राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश की दिशा में एक कदम के रूप में व्याख्या करते हैं.
उनके अनुसार, यदि वह बिहार में अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो पार्टी नेतृत्व उन्हें केंद्रीय संगठन में शामिल कर सकता है या 2026 में चुनाव वाले पांच राज्यों में से किसी एक में तैनात कर सकता है. फिर भी, अंदरूनी सूत्र इस पर जोर देते हैं कि बिहार में उनकी मुख्य भूमिका कोइरी (कुशवाहा) वोट बैंक को मजबूत करना है, जो पटना में उनके कार्यभार की व्याख्या करता है.