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ई-रिक्शा के क्रैश टेस्ट के साथ इसका संयमित संचालन भी जरूरी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: September 6, 2025 07:24 IST

इ-रिक्शा का ढांचा इतना कमजोर है कि यदि छोटी सी टक्कर भी हो जाए तो खैर नहीं है.

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केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि सरकार ई-रिक्शा के लिए भी सुरक्षा मानक तय करने पर विचार कर रही है. भारत न्यू कार एसेसमेंट प्रोग्राम के तहत देश में बिकने वाली कारों का क्रैश टेस्ट किया जाता है और जिस कार को जितने ज्यादा स्टार मिलते हैं, उतना ही ज्यादा उसे मजबूत माना जाता है. नितिन गडकरी ने ई-रिक्शा के क्रैश टेस्ट की जो बात की है, वह स्वागत योग्य है.

ऐसा होना ही चाहिए लेकिन सवाल यह है कि ई-रिक्शा का अभी जो स्वरूप है, उसमें आप क्या क्रैश टेस्ट कराएंगे. इसके लिए तो आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ेगा. यह स्वीकार करने में कोई दो मत नहीं हो सकता कि ई-रिक्शा पर्यावरण हितैषी और अत्यंत कम खर्चीली परिवहन व्यवस्था है लेकिन यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि ई-रिक्शा ने शहरों के ट्रैफिक को बुरी तरह बिगाड़ कर रख दिया है.

आप किसी भी वाहन चालक से पूछें, वह ई-रिक्शा से होने वाली परेशानी जरूर बताएगा. एक तो ई-रिक्शा के चालकों के लिए ट्रेनिंग और समझाइश की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही पुलिस उन पर कोई कार्रवाई करती है, इसका नतीजा है कि वे कहीं भी घुसे चले जाते हैं. ई-रिक्शा की बॉडी में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके टूटने-फूटने का डर हो, इससे चालक निडर हो जाता है और डरने की बारी अब कार चालकों के समक्ष पैदा हो गई है.

पता नहीं कहां से कोई रिक्शा आए और खरोंच मार कर चला जाए. यदि टक्कर लग जाए तो सारा दोष कार वाले का! ई-रिक्शा चालक से कोई नहीं पूछेगा कि भैया आप ट्रैफिक व्यवस्था के प्रति इतने बेरहम क्यों हैं? आप अपनी लेन में क्यों नहीं चलते? इसलिए क्रैश टेस्ट  से पहले यह जरूरी है कि ई-रिक्शा के संयमित संचालन पर ध्यान दिया जाए ताकि ट्रैफिक पर इसका बुरा असर न पड़े.

वास्तव में ई-रिक्शा का कॉन्सेप्ट बहुत ही शानदार है. आईआईटी कानपुर के विद्यार्थी रहे डॉ. अनिल राजवंशी ने 1995 में महाराष्ट्र के फाल्टन में ई-रिक्शा के कॉन्सेप्ट पर काम करना शुरू किया था. सन् 2000 में पहला प्रोटोटाइप तैयार किया. दुनिया में अपनी तरह का यह पहला प्रयोग था. उसके बाद विभिन्न कंपनियों का ध्यान इस ओर गया. 2014 में जो मोटर यान अधिनियम लागू हुआ, उसने ई-रिक्शा के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोले. हाथ से रिक्शा खींचने की अमानवीय व्यवस्था को बदलने के युग की शुरुआत हुई.

मगर ई-रिक्शा पर उसके बाद यात्रियों की सुविधा के संदर्भ में जो बदलाव होने चाहिए थे, वे नहीं हुए. उदाहरण के लिए आप ई-रिक्शा में बैठेंगे तो आपको महसूस होगा कि इसमें शॉकअप शायद है ही नहीं. छोटे से गड्ढे पर भी कमर टूटने का डर सताने लगता है. भारतीय शहरों और कस्बों में सड़कों का हाल किसी से छिपा नहीं है तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यात्रियों की कमर का क्या हाल होता होगा! इ-रिक्शा का ढांचा इतना कमजोर है कि यदि छोटी सी टक्कर भी हो जाए तो खैर नहीं है.

इस पर ई-रिक्शा चालकों की असावधानी या यूं कहें कि लापरवाही समस्या को और गंभीर बना रही है. ऐसे में नितिन गडकरी ने एक उम्मीद जगाई है. हम उम्मीद करें कि भविष्य में भारतीय सड़कों पर उतरने वाले ई-रिक्शा का ढांचा भी मजबूत होगा और यात्रियों के लिए सुविधाजनक भी होगा

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