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ब्लॉग: 'आप' है कांग्रेस का विकल्प! केजरीवाल को 'राष्ट्र-विरोधी' या हिंदू-विरोधी साबित करने में नाकाम भाजपा की बढ़ रही चिंता

By हरीश गुप्ता | Updated: September 1, 2022 08:33 IST

भाजपा के लिए भारत को ‘कांग्रेस मुक्त’ बनाने का दांव क्या अब उसी पर भारी पड़ने वाला है? अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी के उभार ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है.

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भारत को ‘कांग्रेस मुक्त’ बनाने के लिए भाजपा 2014 से जुटी है. वह कांग्रेस के गढ़ को केवल दो राज्यों (राजस्थान और छत्तीसगढ़) तक सीमित करने और कई अन्य राज्यों में बड़े पैमाने पर दल-बदल कराने में भले सफल रही हो लेकिन पार्टी नेतृत्व इस बात से चिंतित है कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी राज्यों में कांग्रेस के एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में उभर रही है. 

रणनीतिक रूप से आप जहां भी संभव हो राज्यों में जिला स्तर के कांग्रेस नेताओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है और कांग्रेस के किसी भी वरिष्ठ नेता को आप में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर रही है. इस रणनीति ने पंजाब में भरपूर लाभ दिया और अब हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भाजपा को चिंतित कर रही है जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. 

इसी संदर्भ में भाजपा नेतृत्व आप और कांग्रेस नेताओं पर खुल कर शाब्दिक हमले कर रहा है. इन राज्यों में आए दिन कांग्रेस से पलायन जारी है. लेकिन जो लोग भाजपा को हटाना चाहते हैं, वे जमीनी स्तर पर बड़े पैमाने पर आप में शामिल हो रहे हैं. जिस तेजी से सरकारी जांच एजेंसियां और दिल्ली के नए उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना केजरीवाल की सरकार और उसके मंत्रियों को निशाना बना रहे हैं, उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. 

कई हफ्तों से केजरीवाल पर हमला करने के लिए केंद्रीय मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं का दल प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहा है. शिक्षा क्षेत्र के कुप्रबंधन और शराब नीति पर महीनों से बात हो रही है. सितंबर में हमले और तेज हो जाएंगे. रेवड़ियों (फ्रीबीज) पर पीएम के हमले के केंद्र में केजरीवाल थे. लेकिन भाजपा को अभी तक सुप्रीम कोर्ट से अनुकूल निर्णय नहीं मिल सका है. 

दूसरी ओर केजरीवाल खुद को अधिक हिंदू समर्थक और साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय के हितैषी के रूप में पेश कर रहे हैं. भाजपा केजरीवाल को ‘राष्ट्र-विरोधी’ या हिंदू-विरोधी साबित करने में नाकाम रही है. अगर कांग्रेस कमजोर होती है तो इसका फायदा आप को होगा और यही भाजपा की बड़ी चिंता है.

मोदी का मिशन कश्मीर

पीएम मोदी धीरे-धीरे ‘मिशन कश्मीर’ के लक्ष्य को हासिल करने की ओर बढ़ रहे हैं. केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव अगले साल की शुरुआत में हो सकते हैं क्योंकि जम्मू और कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन और मतदाता सूची को अद्यतन करने की प्रक्रिया चल रही है. राज्य विधानसभा में पहले के 83 के बजाय अब 90 सीटें होंगी (जम्मू क्षेत्र में छह अतिरिक्त सीटें और घाटी में एक). मतदाताओं की संख्या 75 लाख से बढ़कर लगभग एक करोड़ हो जाएगी. 

इन 25 लाख नए मतदाताओं को जोड़ने पर विवाद है क्योंकि जरूरी नहीं कि वे राज्य के स्थायी निवासी हों. पांच पार्टियों का गुपकार गठबंधन इस कदम का विरोध कर रहा है क्योंकि यह निश्चित रूप से विधानसभा चुनावों के परिणाम को बदल सकता है. लेकिन भाजपा अडिग है और आगे बढ़ रही है. वह जम्मू-कश्मीर में मित्र दलों की मदद से पहले हिंदू मुख्यमंत्री को स्थापित करने की उम्मीद कर रही है. 

गुलाम नबी आजाद ने इस बात से इनकार किया कि वह जम्मू-कश्मीर में भाजपा के साथ जाएंगे, इसके बावजूद उनके संगठन का भाजपा के साथ चुनाव के बाद गठबंधन हो सकता है. आरएसएस भी उस दिन का इंतजार कर रहा है जब जम्मू-कश्मीर में एक हिंदू सीएम बनेगा. अनुच्छेद 370 का उन्मूलन और जम्मू-कश्मीर का दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन आरएसएस की नीति का हिस्सा है जिसे मोदी ने लागू किया है. विधानसभा चुनाव तब होंगे जब ‘मिशन मोदी’ को हासिल करने के लिए जमीन उर्वर होगी.

राहुल गांधी बेफिक्र

हाल के दिनों में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के चले जाने से राहुल गांधी चिंतित नहीं हैं. उनका विचार बहुत स्पष्ट है: जो मोदी से नहीं लड़ सकते और भाजपा के खिलाफ जेल जाने को तैयार नहीं हैं, उन्हें पार्टी छोड़ देनी चाहिए. वे खुद जेल जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं और ‘मोदी की प्रतिशोध की नीति’ से नहीं डरते. 

ईडी द्वारा पूछताछ के बाद उन्होंने अपने वकीलों से कहा है कि वह जेल जाने के लिए तैयार हैं लेकिन वह झुकेंगे नहीं. उन्होंने गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा को राज्यसभा सीट के लिए उपकृत नहीं किया क्योंकि अकेले वरिष्ठता मानदंड नहीं हो सकती. यही मुख्य कारण है कि पूरा गांधी परिवार विदेश चला गया है ताकि पलायन का मामला ठंडा हो सके. 

सभी की निगाहें मनीष तिवारी, रवनीत सिंह बिट्टू और शशि थरूर जैसे कांग्रेस के कई लोकसभा सांसदों पर उनकी अगली कार्रवाई पर टिकी हैं. दूसरी ओर, आनंद शर्मा ने अभी तक कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद और अन्य की तरह कांग्रेस छोड़ने का मन नहीं बनाया है, हालांकि भाजपा उनका खुले हाथों से स्वागत करने को तैयार है.

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