चेन्नई के उमस भरे मौसम में खेलने के बाद से कोलकाता नाइटराइडर्स के लिए चीजें वैसी नहीं रहीं हैं। कोलकाता का मौसम भले ही चेन्नई से ज्यादा अलग न हो, लेकिन दोनों शहरों की पिच में अंतर जरूर है। गेंदबाजी केकेआर के लिए समस्या रही है।
अपनी बेहतरीन फॉर्म में ईडन गार्डंस के पुराने मैदान पर सुनील नरेन के चार ओवर बेहद अहम होते थे। मगर अब वह उतने खतरनाक दिखाई नहीं देते। साथ ही कुलदीप यादव को भी बिना विकेट के ही अपना स्पैल खत्म करना पड़ा जो बेहद कम देखने को मिलता है।
कप्तान को ऐसे गेंदबाज की जरूरत है जो उसके लिए मैच खत्म कर सके। फिलहाल ऐसा कोई भी नजर नहीं आता। यही वजह है कि टीम को मैच जीतने के लिए बल्लेबाजों की ओर देखना पड़ता है। कोलकाता के लिए अच्छी बात ये है कि दिल्ली कैपिटल्स की तुलना में चेन्नई सुपरिकंग्स को ईडन की पिच पर अतिरिक्त गति और उछाल रास नहीं आएगी।
धोनी स्वीकार भी कर चुके हैं कि चेन्नई की पिच ने उन्हें टीम का सर्वश्रेष्ठ संतुलन बनाने में मदद की है। कोलकाता की टीम के लिए इस बात में निश्चित ही अपने अभियान को पटरी पर लाने का एक अवसर छिपा हुआ है।
चोटें कभी मददगार नहीं होतीं, लेकिन सुखद सच्चाई यह भी है कि सुनील नरेन की चोट की वजह से कोलकाता को शुभमन गिल को शीर्ष क्रम पर भेजने को मजबूर होना पड़ा, जहां उन्होंने अपना कौशल और क्षमता से परिचय कराया।
शुभमन की बल्लेबाजी में बेहद सहजता नजर आती है और वे जल्दबाजी में बिल्कुल भी दिखाई नहीं देते। ठीक वैसे ही जैसे मैच से पहले बल्लेबाजी अभ्यास कर रहे हों। उन्हें अब फिर से छठे या सातवें नंबर पर नहीं उतारा जाएगा।
फिनिशर की जिम्मेदारी नीतीश राणा को दी जा सकती है। सीएसके की टीम जीत का रास्ता तलाश रही होगी, लेकिन धोनी का गुस्सैल रूप देखना हैरानी भरा था। इससे यह भी पता चला कि शांत चेहरे के पीछे कितना दबाव भी है। चेन्नई की टीम एक मैच हार भी जाए तो इतना फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर कोलकाता की टीम लगातार दूसरा मैच हारती है तो उसके लिए राह निश्चित ही मुश्किल हो जाएगी।