आप आम हों या खास, कोई फर्क नहीं पड़ता, सभी एक दिन दुनिया से रुख्सत हो जाते हैं। लेकिन फर्क पड़ता है, इस बात का फर्क पड़ता है कि आपके पीछे, पीछे रह जाने वाले आपको कैसे याद करते हैं। ऑस्ट्रिलिया में पैदा हुए एक बालक के लिए कल लाखों भारतीयों के दिल में एक हूक उठी होगी। शुक्रिया वार्न।
हमारे जीवन में सुख और रोमांच भरे वो साल देने के लिए जिन सालों में आपने 'इस सदी की वह अव्वल गेंद' फेंकी थी। आपने लाखों किशोरों-नवजवानों को उस लफ्ज का मानी समझाया था जिसे 'जादुई' कहते हैं। आप इस बात का सजीव प्रमाण थे कि 'प्रतिभा' वही है जो प्रतिद्वंद्वी को भी आपका सम्मान करने के लिए बाध्य कर दे।
आपके देहांत की खबर सुनकर, दिल वैसे ही धक सा कर गया जैसे आपके गेंद में हाथ में आने पर कर जाता था- वार्न आ गया! स्ट्राइक किसके पास है? खेल लेगा? हर बार की वह धक, आपकी हर गेंद की वह धक-धक कल दो दशक बाद कुछ यूँ लौटी की, लगा बगैर आवाज के दिल किरक गया हो। किसी बहुत महीन, बहुत महीन जो नंगी आँखों से न दिखे, ऐसे किसी दरार से उतना ही, नँगी आँखों को न दिखने वाला खून दिल से रिसकर आँखों में उतर रहा हो।
जब भी क्रिकेट की बात होगी, गेंदबाजी की बात होगी, फिरकी की बात होगी, और हम में से एक भी वहाँ जिन्दा रहा तो कोई न कोई एक आपको उस महफिल में जरूर याद करेगा। आप जैसे रहती दुनिया तक यूँ ही यादों में जिन्दा रहते हैं। उम्मीद है, आप भी अपने चाहने वालों को नहीं भूलेंगे। फिर मिलेंगे, आज के लिए अलविदा, सर।