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ब्लॉग: अर्थव्यवस्था के लिए सशक्त एमएसएमई जरूरी

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: February 5, 2024 11:49 IST

सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। औद्योगिक उत्पादन का तीस प्रतिशत एमएसएमई क्षेत्र से आता है एवं 48 प्रतिशत निर्यात में इनका योगदान है।

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ठळक मुद्देज्यादातर सूक्ष्म और लघु उद्योग ग्रामीण इलाकों या कस्बों में लगे हैंइन्हें संरचनात्मक सुविधाओं जैसे बिजली, सड़क, पानी आदि की समस्याओं का सामना करना पड़ता हैसूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं

अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए सशक्त और आत्मनिर्भर एमएसएमई का होना आवश्यक है। पांच खरब की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एमएसएमई क्षेत्र का मजबूत होना जरूरी है क्योंकि यह करोड़ों लोगों को रोजगार देता है इसलिए बैंकों द्वारा एमएसएमई को ऋण प्रदान करने में उदारता बरती जाए और स्वीकृति के बाद ऋण देने में देरी न हो इसकी भी व्यवस्था होनी चाहिए।

सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। औद्योगिक उत्पादन का तीस प्रतिशत एमएसएमई क्षेत्र से आता है एवं 48 प्रतिशत निर्यात में इनका योगदान है। और रोजगार की दृष्टि से देखें तो कृषि के बाद कम पूंजी लागत पर सर्वाधिक रोजगार का सृजन करके देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में यह क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा करता है। इन उद्योगों से लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।  वस्तुतः कोविड ने इस क्षेत्र को बुरी तरह से प्रभावित किया है. इस क्षेत्र को मजबूत बनाकर ही बड़े उद्योगों को मजबूत बनाया जा सकता है। 

सबसे बड़ी समस्या यह है कि उद्योग के पास संसाधनों का अभाव है। एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमियों के पास न तो ज्यादा वित्तीय पूंजी होती है और न ही बड़े उद्यमियों की तरह इन्हें व्यवसाय की कोई अच्छी समझ होती है। ज्यादातर सूक्ष्म और लघु उद्योग ग्रामीण इलाकों या कस्बों में लगे हैं, इसलिए इन्हें संरचनात्मक सुविधाओं जैसे बिजली, सड़क, पानी आदि की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योगों का विकास बाजार तक पहुंच, उत्पादों की गुणवत्ता, समय पर ऋण की उपलब्धता और प्रौद्योगिकी के उन्नयन आदि कारकों पर निर्भर करता है।

जीएसटी लागू होने के शुरुआती दौर में छोटे उद्यमों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिससे कच्चे माल की आपूर्ति वाला पक्ष प्रभावित हुआ है. कोई भी उद्यम अगर अपने आप को आज के दौर की उन्नत तकनीक में नहीं ढालता तो वह औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाता है। लेकिन इन तकनीकों के महंगे होने के कारण छोटे उद्योग इनका उपयोग नहीं कर पाते, जिसका असर उनके उत्पादन पर पड़ता है और जिसके फलस्वरूप इनके उत्पाद की गुणवत्ता गिरती है तथा इनकी आपूर्ति श्रृंखला भी प्रभावित होती है।

अनेक सरकारी सुविधाओं और योजनाओं के बावजूद अभी यह क्षेत्र चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसके समाधान के लिए समुचित प्रयास सुनिश्चित किए जाने चाहिए। किसी भी उद्यम को शुरू करने के लिए कुछ बुनियादी जरूरतों का होना बहुत जरूरी है।

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